Thursday 17 October 2024

.श्लोक १:....इस पुनर्कल्पित प्रस्तुति में, वाल्मीकि रामायण से भगवान राम और सीता के शाश्वत महत्व को भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा संप्रभु अधिनायक श्रीमान की अवधारणा पर आरोपित किया गया है, जो शाश्वत अमर पिता, माता और गुरुमय निवास हैं। यहाँ, भगवान राम और सीता शाश्वत अभिभावकीय चिंता के एक लौकिक अवतार में बदल जाते हैं, जो दिव्य विरासत को भगवान जगद्गुरु के रूप से जोड़ते हैं, जिन्हें गोपाल कृष्ण साईबाबा और रंगा वल्ली के पुत्र अंजनी रविशंकर पिल्ला से एक निरंतरता के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जो राष्ट्र और ब्रह्मांड का मार्गदर्शन करने वाले शाश्वत और दिव्य मन के रूप में रवींद्रभारत में परिवर्तन को चिह्नित करता है।

इस पुनर्कल्पित प्रस्तुति में, वाल्मीकि रामायण से भगवान राम और सीता के शाश्वत महत्व को भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा संप्रभु अधिनायक श्रीमान की अवधारणा पर आरोपित किया गया है, जो शाश्वत अमर पिता, माता और गुरुमय निवास हैं। यहाँ, भगवान राम और सीता शाश्वत अभिभावकीय चिंता के एक लौकिक अवतार में बदल जाते हैं, जो दिव्य विरासत को भगवान जगद्गुरु के रूप से जोड़ते हैं, जिन्हें गोपाल कृष्ण साईबाबा और रंगा वल्ली के पुत्र अंजनी रविशंकर पिल्ला से एक निरंतरता के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जो राष्ट्र और ब्रह्मांड का मार्गदर्शन करने वाले शाश्वत और दिव्य मन के रूप में रवींद्रभारत में परिवर्तन को चिह्नित करता है।

श्लोक १:

संस्कृत: सर्वधर्मज्ञानसम्पन्नं, सर्वभूतहिते रतम्। रामं दीपाशं वन्दे, लोकनाथं महाप्रभुम्॥

ध्वन्यात्मक: सर्वधर्म ज्ञान सम्पन्नं, सर्वभूत हित रतम | रामम दशरथम वन्दे, लोकनाथम महाप्रभुम ||

हिन्दी अनुवाद: "मैं दशरथ के पुत्र राम को नमन करता हूँ, जो समस्त धर्मों के ज्ञान से परिपूर्ण हैं, जो समस्त प्राणियों के कल्याण के लिए सदैव समर्पित हैं, जो जगत के स्वामी हैं और जो सर्वोच्च शासक हैं।"

आरोपित अर्थ: यहाँ, धर्म के अवतार के रूप में भगवान राम भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान के लौकिक स्वरूप में परिवर्तित हो जाते हैं। जिस प्रकार राम विश्व के स्वामी थे, उसी प्रकार सनातन अमर पिता और माता, रविन्द्रभारत, अब राष्ट्र और ब्रह्मांड के जीवंत रूप को मूर्त रूप देते हैं, तथा सभी मन को दिव्य अनुभूति की ओर ले जाते हैं।


श्लोक २:

संस्कृत: सीतायाः पतिश्रेष्ठः, सत्यवाक्यो दृढ़व्रतः। राघवः शरणं मे अस्तु, कृष्णं धर्ममशेषतः॥

ध्वन्यात्मक: सीतायः पतिश्रेष्ठः, सत्यवाक्यो दृढ़व्रतः | राघवः शरणं मे अस्तु, कृत्स्नं धर्ममशेषातः ||

हिन्दी अनुवाद: "सीता के श्रेष्ठ पति, सत्यनिष्ठ और दृढ़निश्चयी राघव मेरे शरण हों, क्योंकि उनमें सम्पूर्ण धर्म समाहित हैं।"

आरोपित अर्थ: इस परिवर्तन में, भगवान राम, सीता के दृढ़ पति के रूप में, प्रकृति (प्रकृति) और पुरुष (चेतना) की शाश्वत एकता को दर्शाते हैं। यह एकता अब भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा संप्रभु अधिनायक श्रीमान के बीच के रिश्ते में देखी जाती है, जो पिता और माता के शाश्वत बंधन का प्रतिनिधित्व करती है। जिस तरह राघव एक शरण है, उसी तरह भौतिक माता-पिता गोपाल कृष्ण साईबाबा और रंगा वल्ली से उभरने वाला मास्टरमाइंड रवींद्रभारत में बदल जाता है, जो ब्रह्मांड में सभी मन को शरण और मार्गदर्शन प्रदान करता है।


श्लोक 3:

संस्कृत: रामो राजमणिः सदा विजयते, रामं रामं भजे। रामेणाभिहता निशाचरचमु, रामाय तस्मै नमः॥

ध्वन्यात्मक: रामो राजमणिः सदा विजयते, रामं रमेशं भजे | रामेणभिहता निशाचरचमु, रामाय तस्मै नमः ||

हिन्दी अनुवाद: "राजाओं में रत्न राम सदैव विजयी होते हैं। मैं लक्ष्मीपति राम की पूजा करता हूँ। राम के द्वारा राक्षसों का समूह परास्त हो गया है। उन राम को मैं नमस्कार करता हूँ।"

आरोपित अर्थ: यहाँ, दुष्ट शक्तियों पर भगवान राम की विजय भगवान जगद्गुरु महामहिम की विजय का प्रतिनिधित्व करती है, जो रवींद्रभारत के रूप में मन को भ्रम (माया) और अज्ञानता से दूर ले जाते हैं। राक्षस भौतिक और मानसिक दुनिया की अराजकता का प्रतीक हैं, और जिस तरह राम उनका नाश करते हैं, उसी तरह रवींद्रभारत द्वारा सन्निहित शाश्वत अमर अभिभावकीय चिंता मानवता को परस्पर जुड़े हुए मन के रूप में सुरक्षित करती है, उन्हें दिव्य चेतना की ओर मार्गदर्शन करती है।


श्लोक 4:

संस्कृत: सीता लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न सहित:, रामो दूतं प्रेश्यमास, रावणं सह युद्धे।

ध्वन्यात्मक: सीता लक्ष्मण भारत शत्रुघ्न सहित:, रामो दूतं प्रीशयमास, रावणम सह युद्धे ||

हिन्दी अनुवाद: "सीता, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न को साथ लेकर राम ने युद्ध हेतु रावण के पास एक दूत भेजा।"

आरोपित अर्थ: रामायण के इस दृश्य को शाश्वत गुरु, जगद्गुरु महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान के प्रतीक के रूप में देखा जा सकता है, जो रावण द्वारा प्रस्तुत भौतिक और मानसिक चुनौतियों को दूर करने के लिए दिव्य शक्तियों के साथ मिलकर काम करते हैं। आधुनिक संदर्भ में, रवींद्रभारत में सन्निहित यह दिव्य एकता अज्ञानता, भ्रम और अलगाव के खिलाफ एक ब्रह्मांडीय लड़ाई की शुरुआत करती है, जो मानवता को उच्च मन के दायरे में ले जाती है।


श्लोक 5:

संस्कृत: पत्युराज्ञमनुप्राप्तता, सीता धर्मपतिव्रता। स्निग्धया वाचया देवी, रामं वचनमब्रवीत्॥

ध्वन्यात्मक: पत्युराज्ञम् अनुप्राप्त, सीता धर्मपतिव्रता | स्निग्धया वाच्या देवी, रामं वचनं अब्रवित् ||

हिन्दी अनुवाद: "सदा धर्म में तत्पर रहने वाली और पति की आज्ञा का पालन करने वाली सीता ने भगवान राम से प्रेम और आदर के साथ धीरे से बात की।"

आरोपित अर्थ: भगवान राम के प्रति सीता की अटूट भक्ति प्रकृति और पुरुष की एकता, स्त्री और पुरुष दिव्य शक्तियों के संतुलन का प्रतिनिधित्व करती है। रूपांतरित दृष्टि में, यह भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान के बीच शाश्वत संबंध का प्रतीक है। यह मिलन दिव्य ऊर्जाओं का एक ब्रह्मांडीय विवाह है, जो राष्ट्र भारत, रवींद्रभारत के जीवंत रूप के रूप में ब्रह्मांड का मार्गदर्शन करने वाली शाश्वत अमर माता-पिता की चिंता को सामने लाता है।

श्लोक 6:

संस्कृत: तं दृष्ट्वा रामः श्रीमान्, सौम्यवक्त्रां मनोहरम्। प्रहसन प्रियया सार्धं, सीतया मिथिलेश्वरः॥

ध्वन्यात्मक: तम दृष्ट्वा रामः श्रीमान्, सौम्यवक्त्रं मनोहरम् | प्रहसं प्रिया सारधाम, सीतया मिथिलेश्वरः ||

हिन्दी अनुवाद: "शान्त और मनमोहक मुख वाली सीता को देखकर, कुलीन राम, मिथिला के राजा के समान, उनके पास प्रेम से मुस्कुराये।"

आरोपित अर्थ: इस परिवर्तन में, राम और सीता के बीच शांत और दिव्य बातचीत चेतना और प्रकृति के ब्रह्मांडीय मिलन का प्रतीक है। भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान, पिता और माता के शाश्वत अवतार के रूप में, ब्रह्मांड के अंतिम शासकों के रूप में इस दिव्य संबंध को साझा करते हैं, जो अब रवींद्रभारत के जीवंत रूप के माध्यम से सभी प्राणियों का मार्गदर्शन कर रहे हैं।


श्लोक 7:

संस्कृत: सर्वलोकप्रियं शाश्वत्, सर्वधर्मसमन्वितम्। रामं रक्षितुमिचन्ति, देवाः सर्वे समग्रः॥

ध्वन्यात्मक: सर्वलोकप्रियं शाश्वत, सर्वधर्मसमन्वितम् | रामम रक्षितुम इच्छन्ति, देवाः सर्वे समागतः ||

हिन्दी अनुवाद: "सभी देवता एकजुट होकर, राम की रक्षा करना चाहते हैं, जो पूरे संसार के प्रिय हैं और सभी गुणों से संपन्न हैं।"

आरोपित अर्थ: देवताओं द्वारा राम की सुरक्षा ब्रह्मांड में धर्म की रक्षा करने की दिव्य इच्छा को दर्शाती है। आरोपित दृष्टि में, देवता अब भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा संप्रभु अधिनायक श्रीमान की रक्षा और सशक्तीकरण करते हैं, जो मास्टरमाइंड के रूप में, रविंद्रभारत के पूरे राष्ट्र को सुरक्षित रखने वाले ब्रह्मांडीय सिद्धांतों का प्रतीक हैं। यह शाश्वत अभिभावकीय चिंता सभी मानवता का मार्गदर्शन करने वाली दिव्य चेतना की रक्षा करती है।


श्लोक 8:

संस्कृतः सर्वभूतहिते रतः, सत्यधर्मपरायणः। रामो राज्यमुपासिनः, पितृवाक्यं परिपालयन्॥

ध्वन्यात्मक: सर्वभूतहिते रता:, सत्यधर्मपरायण: | रामो राज्यम उपासिनः, पितृवाक्यं परिपालयन् ||

हिन्दी अनुवाद: "सभी प्राणियों के कल्याण में तत्पर तथा सत्य और धर्म पर दृढ़तापूर्वक टिके रहने वाले राम अपने पिता के वचन को पूरा करते हुए सिंहासन पर बैठे।"

आरोपित अर्थ: राम का धर्म और अपने पिता की आज्ञाओं का पालन करना दिव्य शासक की शाश्वत भूमिका का प्रतीक है। आरोपित संदर्भ में, भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान रवींद्रभारत के रूप में ब्रह्मांड के सिंहासन पर चढ़ते हैं, ब्रह्मांडीय पिता और माता की शाश्वत इच्छा को पूरा करते हुए, सभी मन को धार्मिकता और सद्भाव की ओर निर्देशित करते हैं।


श्लोक 9:

संस्कृत: यत्र यत्र रघुनाथः कीर्तयन्ति द्विजाः सदा। तत्र तत्र कृतमस्तकञ्जलिः, रामायणं पथति हि॥

ध्वन्यात्मक: यत्र यत्र रघुनाथः कीर्तियन्ति द्विजः सदा | तत्र तत्र कृतमस्तकाञ्जलिः, रामायणं पथति हि ||

हिन्दी अनुवाद: "जहाँ भी ऋषिगण निरन्तर रघुनाथ (राम) का गुणगान करते हैं, वहाँ वे हाथ जोड़कर आदरपूर्वक रामायण का पाठ करते हैं।"

आरोपित अर्थ: भगवान राम की निरंतर स्तुति और रामायण का पाठ दिव्य चेतना के प्रति शाश्वत भक्ति को दर्शाता है। आरोपित वास्तविकता में, स्तुति अब भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा संप्रभु अधिनायक श्रीमान तक विस्तारित होती है, जिनकी शाश्वत अभिभावकीय चिंता दिव्य पूजा और मार्गदर्शन का केंद्र बिंदु है। राष्ट्र के जीवंत रूप रवींद्रभारत के रूप में, स्तुति और श्रद्धा मानवता को ज्ञान की ओर मार्गदर्शन करने वाले ब्रह्मांडीय मास्टरमाइंड के लिए है।

श्लोक 10:

संस्कृत: रामो दाशरथिर्देवः, सर्वधर्मार्थसाधकः। धर्मेण राज्यमस्तेय, लोकानां हितकाम्यया॥

ध्वन्यात्मक: रामो दाशरतीर्देवः, सर्वधर्मार्थसाधकः | धर्मेण राज्यं अस्तेय, लोकानां हितकाम्यया ||

हिन्दी अनुवाद: "राम, दशरथ के दिव्य पुत्र, सभी धर्मों और उद्देश्यों को पूरा करने वाले, धर्म द्वारा राज्य पर शासन करते हैं, हमेशा लोगों के कल्याण की तलाश करते हैं।"

आरोपित अर्थ: धर्म के माध्यम से राम का दिव्य शासन न्याय और सत्य के शाश्वत शासन का प्रतीक है। यह अब भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा संप्रभु अधिनायक श्रीमान के शासन में परिवर्तित हो गया है, जिनका शाश्वत शासन रवींद्रभारत के रूप में सभी प्राणियों के कल्याण के लिए धर्म के लौकिक शासन का प्रतिनिधित्व करता है। राष्ट्र का जीवंत रूप अब इस दिव्य शासन को मूर्त रूप देता है, जो दैवीय हस्तक्षेप के माध्यम से मानवता के मन को सुरक्षित करता है।


श्लोक 11:

संस्कृत: धर्मेण राघवो राजा, सत्येन च महात्मना। शाश्वतं लोकनाथस्य, यशः पति हि सर्वदा॥

ध्वन्यात्मक: धर्मेण राघवो राजा, सत्येन च महात्मना | शाश्वतम् लोकनाथस्य, यशः पति हि सर्वदा ||

हिन्दी अनुवाद: "धर्म और सत्य के माध्यम से, महान राघव (राम) ने शासन किया, और उनकी चिरस्थायी प्रसिद्धि ने हमेशा लोगों की रक्षा की।"

आरोपित अर्थ: धर्म और सत्य के माध्यम से राम का शासन समय के साथ प्रतिध्वनित होता है, जैसा कि भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान का शाश्वत अमर शासन है। यह दिव्य अधिकार अब रवींद्रभारत के रूप में व्यक्त किया गया है, जो सभी प्राणियों का शाश्वत मार्गदर्शक और रक्षक है। राष्ट्र का जीवंत रूप यह सुनिश्चित करता है कि धर्म और सत्य के सिद्धांत सर्वोच्च अभिभावकीय चिंता के तहत मानवता के मन को नियंत्रित करते हैं।


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श्लोक १२:

संस्कृत: शरणगतविज्ञप्तिं, प्रतिज्ञाय महयशाः। राघवोऽभ्यागमद्धर्मं, न जातु पलयेद्रते॥

ध्वन्यात्मक: शरणागतविज्ञप्तिम्, प्रतिज्ञाय महायशाः | राघवोऽभयगमद् धर्मं, न जातु पालयेद ऋते ||

हिन्दी अनुवाद: "महान यश वाले राघव ने अपने शरणागतों की रक्षा करने का वचन निभाया, और कभी धर्म के मार्ग से विचलित नहीं हुए।"

आरोपित अर्थ: भगवान राम का अपने शरणागतों की रक्षा करने का वचन अब भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा अधिनायक श्रीमान की शाश्वत, सर्वव्यापी चिंता द्वारा प्रतिबिम्बित होता है। रवींद्रभारत के रूप में, यह ब्रह्मांडीय अभिभावक शक्ति यह सुनिश्चित करती है कि सभी मन धर्म के शाश्वत नियम के तहत संरक्षित, सुरक्षित और निर्देशित हों, सभी प्राणियों को दिव्य शरण प्रदान करें।


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श्लोक 13:

संस्कृत: सीता लक्ष्मणसहितः, राघवः परमाधिपः। धर्मसं स्थापनार्थाय, लोकमंगलकाम्यया॥

ध्वन्यात्मक: सीता लक्ष्मणसहितः, राघवः परमाधिपः | धर्मसंस्थापनार्थाय, लोकमंगलकामाय ||

हिन्दी अनुवाद: "सर्वोच्च शासक राघव ने सीता और लक्ष्मण के साथ मिलकर सभी लोगों के कल्याण की इच्छा रखते हुए धर्म की स्थापना के लिए काम किया।"

आरोपित अर्थ: राम, सीता और लक्ष्मण की दिव्य तिकड़ी धर्म, प्रेम और कर्तव्य की एकता का प्रतीक है। परिवर्तित वास्तविकता में, भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान, शाश्वत माता-पिता और मास्टरमाइंड के रूप में, राष्ट्र के जीवित रूप रवींद्रभारत के कल्याण को सुनिश्चित करते हुए, सभी प्राणियों के मन को सुरक्षित करने के लिए धर्म की स्थापना करते हैं। यह मिलन भौतिक अस्तित्व से परे है और ब्रह्मांडीय सद्भाव की रक्षा करता है।


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श्लोक 14:

संस्कृत: न तु राघवसम्मितः, कश्चित् कालेन लोके हि। धर्मेण राघवो राजा, सत्येनैव महात्मना॥

ध्वन्यात्मक: न तु राघवसम्मितः, कश्चित् कालेन लोके हि | धर्मेण राघवो राजा, सत्येनैव महात्मना ||

हिन्दी अनुवाद: "इस संसार में राघव के समान कोई नहीं था, क्योंकि वह एक महान आत्मा के रूप में धर्म और सत्य के द्वारा शासन करता था।"

आरोपित अर्थ: दुनिया में राम की बेजोड़ महानता अब भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा संप्रभु अधिनायक श्रीमान की संप्रभु ब्रह्मांडीय उपस्थिति द्वारा दर्शायी जाती है, जो सभी सृष्टि के शाश्वत अमर पिता और माता के रूप में शासन करते हैं। उनका मार्गदर्शन बेजोड़ है, क्योंकि रवींद्रभारत अब इस ब्रह्मांडीय प्राधिकरण का प्रतीक हैं, जो दिव्य धर्म और सत्य के माध्यम से नेतृत्व करते हैं, उनकी देखरेख में सभी मन की सामूहिक उन्नति सुनिश्चित करते हैं।


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श्लोक 15:

संस्कृत: सर्वेषां जीवनं धर्मं, राघवो धारयति स्म। सीता लक्ष्मणयुतो रामः, लोकनायक उच्यते॥

ध्वन्यात्मक: सर्वेषां जीवनं धर्मं, राघवो धारयति स्म | सीता लक्ष्मणयुतो रामः, लोकनायक उच्यते ||

हिन्दी अनुवाद: "राघव ने धर्म को सभी प्राणियों का जीवन माना और सीता और लक्ष्मण के साथ उन्हें विश्व का नेता माना गया।"

आरोपित अर्थ: राम द्वारा सभी प्राणियों की जीवन शक्ति के रूप में धर्म को बनाए रखना शाश्वत सत्य को दर्शाता है कि दिव्य उपस्थिति सभी अस्तित्व को बनाए रखती है। भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा संप्रभु अधिनायक श्रीमान अब इस शाश्वत नेतृत्व को मूर्त रूप देते हैं, जो रवींद्रभारत के रूप में सभी प्राणियों का मार्गदर्शन करते हैं। उनका ब्रह्मांडीय मिलन धर्म को जीवन की नींव के रूप में स्थापित करता है, मानवता को चेतना की एक उच्च अवस्था में ले जाता है, जहाँ दिव्य अभिभावकीय चिंता हर मन को सुरक्षित करती है।


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श्लोक 16:

संस्कृत: नारायणं नमस्कृत्य, नारायणाय धीयते। धर्मपाठेन सत्वेन, रामो धर्ममुपासते॥

ध्वन्यात्मक: नारायणं नमस्कृत्य, नारायणाय धीयते | धर्मपथेण सत्वेन, रामो धर्मं उपासते ||

हिन्दी अनुवाद: "नारायण को श्रद्धा अर्पित करने के बाद, राघव ने पवित्रता के साथ धर्म के मार्ग का अनुसरण किया, और सदैव धर्म की पूजा की।"

आरोपित अर्थ: नारायण के प्रति राम की श्रद्धा और धर्म के प्रति उनका पालन सर्वोच्च सत्य के साथ दिव्य संरेखण को दर्शाता है। इस परिवर्तित दृष्टि में, भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान, नारायण के शाश्वत अवतार के रूप में, धर्म के मार्ग को उसके शुद्धतम रूप में प्रस्तुत करते हैं। राष्ट्र का जीवंत रूप, रवींद्रभारत अब इस मार्ग पर चलते हैं, शाश्वत अभिभावकीय चिंता के माध्यम से मानवता को ज्ञान और दिव्य प्राप्ति की ओर मार्गदर्शन करते हैं।


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श्लोक 17:

संस्कृत: धर्मं योगं च सर्वत्र, राघः प्रथयिष्यति। सत्यं च धर्मसंयुक्तं, लोकमङ्गलकारकम्॥

ध्वन्यात्मक: धर्मं योगं च सर्वत्र, राघवः प्रथयिष्यति | सत्यं च धर्मसंयुक्तम्, लोकमंगलकारकम् ||

हिन्दी अनुवाद: "राघव ने धर्म और योग को सर्वत्र फैलाया, सत्य और धार्मिकता को एकजुट किया, जिससे विश्व का कल्याण हुआ।"

आरोपित अर्थ: धर्म और योग के प्रसार का राम का मिशन समय के साथ गूंजता है, और वर्तमान युग में, यह मिशन भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान द्वारा पूरा किया जाता है। उनकी दिव्य अभिभावकीय चिंता रवींद्रभारत में धर्म और आध्यात्मिक एकता के मार्ग का प्रसार करती है, यह सुनिश्चित करती है कि सभी प्राणी सत्य और धार्मिकता के माध्यम से उन्नत हों, जो ब्रह्मांडीय मास्टरमाइंड को मूर्त रूप देता है।



श्लोक 18:

संस्कृत:
रामो राजमणिः सदा विजयते, रामं रामं भजे।
रामेणाभिहता निशाचरचमु, रामाय तस्मै नमः॥

ध्वन्यात्मक:
रामो राजमणिः सदा विजयते, रामम् रमेशम् भजे |
रामेणभिहता निशाचरचमु, रामाय तस्मै नमः ||

अंग्रेजी अनुवाद:
"राजाओं में रत्न राम सदैव विजयी हैं; मैं लक्ष्मीपति राम की पूजा करता हूँ। राम के द्वारा राक्षसों की सेना परास्त हुई, और उन राम को मैं नमस्कार करता हूँ।"

आरोपित अर्थ:
राम, शाश्वत राजा, हमेशा विजयी, भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा संप्रभु अधिनायक श्रीमान के दिव्य शासन को दर्शाते हैं। ब्रह्मांडीय शक्ति और ज्ञान के शाश्वत अवतार के रूप में, रवींद्रभारत, दिव्य हस्तक्षेप के माध्यम से, मानवता के दिलों में अज्ञानता और भ्रम (माया) के अंधेरे को दूर करते हैं। मन और आत्मा अब शाश्वत अमर पिता, माता और संप्रभु अधिनायक भवन के दिव्य निवास के तहत अपने दिव्य आश्रय में उत्थान करते हैं, जो शाश्वत ज्ञान के प्रकाश के माध्यम से सभी का मार्गदर्शन करते हैं।


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श्लोक 19:

संस्कृत:
सर्वदा सर्वकार्येषु, रामो धर्मं प्रपलयेत्।
न तु यस्यास्ति लोकस्य, राघात् परतो भवः॥

ध्वन्यात्मक:
सर्वदा सर्वकार्येषु, रामो धर्मं प्रपालयेत |
न तु यस्यास्ति लोकस्य, राघवात् परतो भवः ||

अंग्रेजी अनुवाद:
"सभी कर्तव्यों और कार्यों में, राम ने हमेशा धर्म को कायम रखा। दुनिया में राघव से श्रेष्ठ कोई नहीं है।"

आरोपित अर्थ:
जिस प्रकार राम ने सभी कार्यों में धर्म का पालन किया, उसी प्रकार भगवान जगद्गुरु परम पूज्य महारानी समेथा महाराजा अधिनायक श्रीमान इस युग में धर्म के शाश्वत मार्ग का पालन करते हैं। रवींद्रभारत के जीवंत रूप के रूप में उनकी ब्रह्मांडीय उपस्थिति यह सुनिश्चित करती है कि मानवता के सामूहिक मन की सुरक्षा और मार्गदर्शन में कोई भी उनके शासन को पार न कर सके। उनका नेतृत्व भौतिक सीमाओं से परे है, दिव्य शासन को प्रकट करता है जो हर मन को उच्च बोध की ओर ले जाता है।


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श्लोक 20:

संस्कृत:
रामो हि भगवान च, सीता च पराशक्ति:।
युगपत संवयं पश्येत्, जगेकं समाश्रितम्॥

ध्वन्यात्मक:
रामो हि परमात्मा च, सीता च पराशक्तिः |
युगपत संवयं पश्येत्, जगदेकं समाश्रितम् ||

अंग्रेजी अनुवाद:
"राम वास्तव में परमात्मा हैं और सीता सर्वोच्च दिव्य शक्ति हैं। दोनों मिलकर ब्रह्मांड को एक मानते हैं और सभी को शरण प्रदान करते हैं।"

आरोपित अर्थ:
राम और सीता, जो सर्वोच्च आत्मा और दिव्य ब्रह्मांडीय ऊर्जा के मिलन का प्रतीक हैं, अब भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान के रूप में प्रकट होते हैं। यह शाश्वत मिलन ब्रह्मांडीय अभिभावकीय चिंता का प्रतीक है, जहाँ रवींद्रभारत सभी मनों के लिए शरणस्थल बन जाते हैं, हर प्राणी को शाश्वत अमर पिता और माता के दिव्य आलिंगन में सुरक्षित रखते हैं। उनकी सर्वोच्च उपस्थिति के माध्यम से ब्रह्मांड एकीकृत होता है, जो मानवीय चेतना के सामूहिक उत्थान को दिव्य कृपा की छत्रछाया में लाता है।


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श्लोक 21:

संस्कृत:
न स एव गुणैर् विशिष्टताः, राघवो जगतां पतिः।
अधिनायकतया स्थिरं, लोकं सर्वं समर्पितम्॥

ध्वन्यात्मक:
न सा एव गुणैर विशिष्टः, राघवो जगतम् पतिः |
अधिनायकतया स्थिरं, लोकं सर्वं समर्पितम् ||

अंग्रेजी अनुवाद:
"राघव, संसार के शासक, न केवल अपने गुणों के कारण बल्कि सभी के भगवान के रूप में भी प्रतिष्ठित थे। संपूर्ण विश्व उनके नेतृत्व में समर्पित है।"

आरोपित अर्थ:
जिस तरह पूरा विश्व भगवान राम के नेतृत्व में समर्पित था, उसी तरह अब सभी मन और प्राणी भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान के दिव्य शासन के अधीन हैं। अधिनायक (सर्वोच्च नेता) के रूप में उनका शाश्वत शासन भौतिक स्तर से परे है, जहाँ रवींद्रभारत इस सर्वोच्च शासन का प्रतीक हैं। सभी प्राणी उनके शाश्वत संरक्षण में सामंजस्य स्थापित करते हैं, मानवता को सामूहिक आध्यात्मिक जागृति की ओर ले जाते हैं, जिसका आधार दिव्य हस्तक्षेप और माता-पिता का मार्गदर्शन है।


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श्लोक 22:

संस्कृत:
सर्वत्र तिष्ठति रामो, यथा सूर्यः प्रकाशते।
एवमधिनायकस्त्वं, सर्वमंडलमाश्रयः॥

ध्वन्यात्मक:
सर्वत्र तिष्ठति रामो, यथा सूर्यः प्रकाशते |
एवमधिनायकस्त्वं, सर्वमंडलमाश्रयः ||

अंग्रेजी अनुवाद:
"राम सर्वत्र निवास करते हैं, जैसे सूर्य सब पर प्रकाश डालता है। इसी प्रकार, हे अधिनायक, आप सभी लोकों के आश्रय हैं।"

आरोपित अर्थ:
भगवान राम की सर्वव्यापकता अब भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान की सर्वव्यापकता में परिलक्षित होती है। रवींद्रभारत के रूप में, वे सूर्य की तरह चमकते हैं, ब्रह्मांड भर में सभी मन को प्रकाशित और संरक्षित करते हैं। उनकी दिव्य उपस्थिति हर क्षेत्र में व्याप्त है, सभी प्राणियों को शाश्वत शरण प्रदान करती है, उन्हें अपने अनंत ज्ञान और कृपा के तहत परस्पर जुड़े हुए मन के रूप में सुरक्षित करती है।


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श्लोक 23:

संस्कृत:
यत्र यत्र रघुनाथः कीर्तयन्ति मनुष्याः।
तत्र तत्र धृतं योगं, वसो श्रीमदाधिनायके॥

ध्वन्यात्मक:
यत्र यत्र रघुनाथः किर्तयन्ति मनुष्यः |
तत्र तत्र धृतं योगम्, वसो श्रीमदाधिनायके ||

अंग्रेजी अनुवाद:
"जहाँ भी लोग रघुनाथ (राम) का नाम गाते हैं, वहाँ अधिनायक की कृपा से योग और समृद्धि का वास होता है।"

आरोपित अर्थ:
जहाँ भी भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा अधिनायक श्रीमान का दिव्य नाम लिया जाता है, वहाँ योग, शांति और समृद्धि की सर्वोच्च अवस्था का वास होता है। रवींद्रभारत के ब्रह्मांडीय शासकों के रूप में, वे सुनिश्चित करते हैं कि सभी प्राणी दिव्य मिलन (योग) की स्थिति में जुड़े हुए हैं, उन्हें आध्यात्मिक समृद्धि और शाश्वत आनंद के माध्यम से ऊपर उठाते हैं। उनका शाश्वत शासन सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक मन इस दिव्य प्रणाली के भीतर सामंजस्य स्थापित करे, जिससे मानवता मुक्ति और सामूहिक प्राप्ति की ओर अग्रसर हो।


श्लोक 24:

संस्कृत:
रामो दाशरथिर्नित्यं, धर्ममूलं प्रतिष्ठितः।
तं प्रपद्ये महायोगं, शाश्वतं परमं पदम्॥

ध्वन्यात्मक:
रामो दाशरथिर्नित्यं, धर्ममूलं प्रतिष्ठितः |
तम प्रपद्ये महायोगम्, शाश्वतम् परमम् पदम् ||

अंग्रेजी अनुवाद:
"हे दशरथ के पुत्र राम, जो सदैव धर्म में स्थित रहते हैं, मैं उस महान योग को, जो शाश्वत और परमपद है, समर्पण करता हूँ।"

आरोपित अर्थ:
राम, जिन्होंने कभी धर्म की नींव रखी थी, अब भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान के शाश्वत रूप में परिवर्तित हो गए हैं। रवींद्रभारत के शाश्वत, अमर शासकों के रूप में, वे योग के सर्वोच्च मार्ग की स्थापना करते हैं, सभी मन को शाश्वत सत्य की ओर निर्देशित करते हैं। सभी प्राणियों को इस ब्रह्मांडीय मिलन के प्रति समर्पण करने के लिए कहा जाता है, जो बोध की सर्वोच्च अवस्था है, जहाँ धर्म सभी कार्यों का शाश्वत सार बन जाता है। यह परम मिलन मानवता के मन और जीवन को शाश्वत मास्टरमाइंड की दिव्य छत्रछाया में सुरक्षित करता है।


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श्लोक 25:

संस्कृत:
कौशल्या सुप्रजा रामः, पितृमान्यः प्रियनवदाः।
तं धर्मेण निरुद्धं वै, लोकानां त्रात्रिराघवः।

ध्वन्यात्मक:
कौशल्या सुप्रजा रामः, पितुर्मण्यः प्रियंवदः |
तम धर्मेण निरुद्धं वै, लोकानां त्रात्रराघवः ||

अंग्रेजी अनुवाद:
"कौसल्या के महान पुत्र राम, जो अपने पिता द्वारा पूज्य थे, धर्म से बंधे रहे और वे सभी लोगों के रक्षक बन गए।"

आरोपित अर्थ:
राम के महान गुण अब समय से परे हैं और भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा संप्रभु अधिनायक श्रीमान के लौकिक अवतार में प्रकट होते हैं। रवींद्रभारत के शाश्वत अमर माता-पिता और शासकों के रूप में, वे सभी मन और जीवन के रक्षक बन जाते हैं, मानवता को दिव्य शासन के सर्वोच्च मार्ग पर ले जाते हैं। जिस तरह राम धर्म से बंधे थे, उसी तरह संप्रभु अधिनायक की दिव्य उपस्थिति अब मानवता को लौकिक न्याय के शाश्वत क्रम के भीतर सुरक्षित करती है। ब्रह्मांड के अंतिम भौतिक माता-पिता से उत्पन्न होने वाला मास्टरमाइंड, सभी का अंतिम रक्षक और उद्धारकर्ता के रूप में खड़ा है।


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श्लोक 26:

संस्कृत:
रामो योगेश्वरो नित्यं, सर्वभूतहिते रतः।
सर्वं जगदुपाध्यायं, श्रीयै चित्ते प्रतिष्ठितः॥

ध्वन्यात्मक:
रामो योगेश्वरो नित्यं, सर्वभूतहिते रतः |
सर्वं जगदुपाध्यायम्, श्रीयै चित्ते प्रतिष्ठितः ||

अंग्रेजी अनुवाद:
"योग के सनातन भगवान राम, सभी प्राणियों के कल्याण में निरन्तर लगे रहते हैं, तथा विश्व की समृद्धि के लिए सभी के मन में स्थापित हैं।"

आरोपित अर्थ:
योग के शाश्वत भगवान के रूप में राम अब भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान के रूप में प्रकट होते हैं। रवींद्रभारत के रूप में अपने दिव्य रूप में, वे सभी प्राणियों के शाश्वत शुभचिंतक हैं, उनका कल्याण सुनिश्चित करते हैं और उन्हें सामूहिक आध्यात्मिक समृद्धि की ओर ले जाते हैं। सभी प्राणियों के मन अब दिव्य मास्टरमाइंड से जुड़े हुए हैं, जो मानवता को शांति और समृद्धि के शाश्वत निवास की ओर ले जाते हैं। यह परिवर्तन दुनिया को सुरक्षित करता है, यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक प्राणी ब्रह्मांडीय व्यवस्था के साथ सामंजस्य में रहता है।


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श्लोक 27:

संस्कृत:
सर्वलोकेश्वरो रामः, सर्वसिद्धिस्वरूपकः।
निहंता सर्वक्षायः, सोऽधिनायकः सदा स्मृतः॥

ध्वन्यात्मक:
सर्वलोकेश्वरो राम:, सर्वसिद्धिस्वरूपक: |
निहंता सर्वरक्षायः, सोऽधिनायकः सदा स्मृतः ||

अंग्रेजी अनुवाद:
"राम, समस्त लोकों के स्वामी, जो समस्त सिद्धियों के साकार स्वरूप हैं, बाधाओं के नाश करने वाले तथा सभी के रक्षक हैं। उन्हें सदैव अधिनायक के रूप में याद किया जाता है।"

आरोपित अर्थ:
सभी लोकों के स्वामी राम अब भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान के रूप में विकसित हो चुके हैं। शाश्वत अधिनायक के रूप में, वे सभी सिद्धियों और ज्ञान को मूर्त रूप देते हैं, रवींद्रभारत और सभी मन को बोध के मार्ग पर आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए मार्गदर्शन करते हैं। उनका दिव्य शासन मानवता की सुरक्षा सुनिश्चित करता है, भौतिक सीमाओं को पार करता है और आध्यात्मिक जागृति के एक नए युग की स्थापना करता है। अधिनायक के रूप में उनकी शाश्वत उपस्थिति को सभी द्वारा याद किया जाता है और उनका सम्मान किया जाता है, जिससे दुनिया दिव्य सद्भाव में सुरक्षित रहती है।


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श्लोक 28:

संस्कृत:
नान्यः पुमानधिष्ठाते, पृथिवीं युगपद्धृते।
युगान्तं सम्प्रतिष्ठाय, राघवस्य सदा गुणाः॥

ध्वन्यात्मक:
नान्यः पुमानधिष्ठाते, पृथिवीं युगपद्धृते |
युगान्तं संप्रतिष्ठाय, राघवस्य सदा गुणाः ||

अंग्रेजी अनुवाद:
"कोई भी अन्य व्यक्ति एक साथ पृथ्वी पर शासन नहीं कर सकता और सभी युगों को कायम नहीं रख सकता। राघव के गुण शाश्वत हैं, युगों के अंत तक बने रहते हैं।"

आरोपित अर्थ:
जिस तरह कोई भी राम की तरह धरती पर शासन नहीं कर सकता था, उसी तरह अब कोई भी शाश्वत शासक भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान की तरह मानवता का मार्गदर्शन नहीं कर सकता। रवींद्रभारत के रूप में, वे सभी युगों का मार्गदर्शन करने की शक्ति रखते हैं, अपने दिव्य गुणों से दुनिया को बनाए रखते हैं। उनका शाश्वत शासन काल से परे है, सभी प्राणियों को ब्रह्मांडीय शासन के सजीव रूप में सुरक्षित रखता है। उनकी उपस्थिति दिव्य योजना की निरंतरता सुनिश्चित करती है, मानवता को युगों के अंत और दिव्य प्राप्ति की नई सुबह में मार्गदर्शन करती है।


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श्लोक 29:

संस्कृत:
सीता लक्ष्मणसमेता, धर्मं पलयते सदा।
रामः सदा प्रतिष्ठा, सर्वलोकानामधिपतिः॥

ध्वन्यात्मक:
सीता लक्ष्मणसमेता, धर्मं पालयते सदा |
रामः सदा प्रतिष्ठिता, सर्वलोकानामाधिपतिः ||

अंग्रेजी अनुवाद:
"सीता, लक्ष्मण के साथ, सदैव धर्म की रक्षा करती हैं। राम, सनातन संस्थापक के रूप में, सभी लोकों के स्वामी हैं।"

आरोपित अर्थ:
सीता और लक्ष्मण, जो धर्म की रक्षा में राम के साथ खड़े थे, अब भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान में प्रतीकात्मक रूप से प्रतिबिंबित हैं। रवींद्रभारत के रूप में अपने शाश्वत रूप में, वे धार्मिकता (धर्म) के मार्ग को बनाए रखते हैं और सभी क्षेत्रों में दिव्य शासन स्थापित करते हैं। ब्रह्मांडीय अभिभावक के रूप में, वे मानवता को धर्म के शाश्वत मार्ग पर मार्गदर्शन करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि सभी प्राणियों का पोषण और संरक्षण दिव्य आदेश के तहत किया जाता है। उनका शासन सभी के लिए शाश्वत आश्रय है, जो दुनिया को दिव्य आनंद की स्थिति में ले जाता है।


-श्लोक ३०:

संस्कृत:
रामो राजमणिः साक्षात्, सर्वलोकप्रदीपकः।
सीता सच्चित्तसंयुक्ता, जगतां योगसाधकः॥

ध्वन्यात्मक:
रामो राजमणिः साक्षात्, सर्वलोकप्रदीपकः |
सीता सच्चितसंयुक्ता, जगतम् योगसाधकः ||

अंग्रेजी अनुवाद:
"राजाओं के रत्न राम समस्त लोकों के प्रकाशक हैं। शुद्ध चेतना में संयुक्त सीता विश्व योग की सूत्रधार हैं।"

आरोपित अर्थ:
शाश्वत परिवर्तन में, भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा अधिनायक श्रीमान, राम और सीता के अवतार के रूप में, ब्रह्मांडीय राजत्व के रत्न के रूप में चमकते हैं। वे सत्य और ज्ञान के दिव्य प्रकाश से सभी मन और प्राणियों को प्रकाशित करते हैं, जिससे दुनिया आध्यात्मिक जागृति की ओर अग्रसर होती है। महारानी समेथा महाराजा अधिनायक का ब्रह्मांडीय मिलन दिव्य चेतना और धर्म के पूर्ण संरेखण का प्रतिनिधित्व करता है, जो योग के मार्ग के माध्यम से शाश्वत एकता की ओर दुनिया की यात्रा को सुगम बनाता है। इस दिव्य मिलन में, दुनिया को पारलौकिकता और ज्ञानोदय का अंतिम मार्गदर्शक मिलता है।


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श्लोक 31:

संस्कृत:
धर्मराजो यतो रामः, सर्वलोकस्य पालयः।
सीतायाश्च प्रभावेन, स्थिरमाज्ञापितं जगत्॥

ध्वन्यात्मक:
धर्मराजो यथो रामः, सर्वलोकस्य पालयः |
सीतायश्च प्रभावेन, स्थिरमज्ञपितम् जगत् ||

अंग्रेजी अनुवाद:
"धर्म के राजा की तरह राम सभी लोकों के रक्षक हैं। सीता के प्रभाव से ब्रह्मांड दृढ़ और व्यवस्थित रहता है।"

आरोपित अर्थ:
शाश्वत अभिभावक स्वरूप भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा अधिनायक श्रीमान अब ब्रह्मांडीय कानून को कायम रखते हैं और रविंद्रभारत के रूप में अपने दिव्य स्वरूप में सभी संसारों की रक्षा करते हैं। जिस तरह राम ने धर्म को कायम रखा, उसी तरह वे ब्रह्मांड की निरंतर स्थिरता सुनिश्चित करते हैं। महारानी समेथा महाराजा अधिनायक के दिव्य प्रभाव के माध्यम से, दुनिया धर्म, सत्य और एकता के शाश्वत सिद्धांतों द्वारा निर्देशित ब्रह्मांडीय व्यवस्था में दृढ़ है। ब्रह्मांड के अंतिम भौतिक माता-पिता से जन्मे मास्टरमाइंड इस ब्रह्मांडीय सद्भाव को सुरक्षित रखते हैं, जिससे सभी का शाश्वत कल्याण सुनिश्चित होता है।


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श्लोक 32:

संस्कृत:
रामो भक्तानां त्राता, सदा योगसमन्वितः।
सीता परमधर्मज्ञ, योगमार्गप्रदायिनी॥

ध्वन्यात्मक:
रामो भक्तानां त्राता, सदा योगसमन्वितः |
सीता परमधर्मज्ञ, योगमार्गप्रदायिनी ||

अंग्रेजी अनुवाद:
"राम भक्तों के रक्षक हैं, जो सदैव योग से युक्त रहते हैं। परम धर्म की ज्ञाता सीता योग का मार्ग दिखाती हैं।"

आरोपित अर्थ:
भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान के शाश्वत स्वरूप में, वे सभी समर्पित मन के परम रक्षक के रूप में कार्य करते हैं। योग के सर्वोच्च रूप से निरंतर जुड़े रहने से, वे उन सभी लोगों की शाश्वत भलाई सुनिश्चित करते हैं जो उनकी शरण में आते हैं। महारानी समेथा महाराजा, सीता के ब्रह्मांडीय अवतार के रूप में, सर्वोच्च धर्म और धार्मिकता के मार्ग की ज्ञाता हैं, जो योग के दिव्य मार्ग के माध्यम से मानवता का मार्गदर्शन करती हैं। साथ मिलकर, वे दुनिया को आध्यात्मिक उत्थान के युग में ले जाते हैं, जहाँ सभी मन शाश्वत सद्भाव में एकजुट होते हैं।


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श्लोक 33:

संस्कृत:
सीता सत्यधृतिं धीरा, सर्वलोकप्रमाणिका।
रामेण सहितं नित्यं, जगतां ध्वनिनाशिनी॥

ध्वन्यात्मक:
सीता सत्यधृतिम धीरा, सर्वलोकप्रमाणिका |
रामेण सहितं नित्यं, जगतं देवतानाशिनि ||

अंग्रेजी अनुवाद:
"सत्य और बुद्धि में दृढ़ सीता समस्त लोकों के लिए मापदंड हैं। राम के साथ मिलकर वे ब्रह्मांड के अंधकार का नाश करती हैं।"

आरोपित अर्थ:
महारानी समेथा महाराजा अधिनायक श्रीमान, अपने दिव्य मिलन में, सत्य और ज्ञान को बनाए रखते हैं जो रविन्द्रभारत में सभी मन और दुनिया को सुरक्षित करता है। जिस तरह सीता धार्मिकता का एक माप थी, महारानी ब्रह्मांडीय धर्म के अवतार के रूप में खड़ी हैं। महाराजा के साथ शाश्वत रूप से एकजुट, संप्रभु अधिनायक अज्ञानता और पीड़ा के अंधेरे को दूर करते हैं, सभी प्राणियों को ज्ञान और दिव्य सत्य का प्रकाश लाते हैं। यह शाश्वत दिव्य अभिभावक चिंता अब मानवता को ज्ञानोदय के युग में ले जाती है, मास्टरमाइंड के भीतर शाश्वत बाल-मन के संकेतों के रूप में उनके मन को सुरक्षित करती है।


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श्लोक 34:

संस्कृत:
रामो नित्यं महायोगी, धर्मं पलयते सदा।
सीता धर्मपत्नी नित्यं, योगमूलं प्रतिष्ठिता॥

ध्वन्यात्मक:
रामो नित्यं महायोगी, धर्मं पालयते सदा |
सीता धर्मपत्नी नित्यं, योगमूलं प्रतिष्ठिता ||

अंग्रेजी अनुवाद:
"राम, सनातन महान योगी, सदैव धर्म का पालन करते हैं। सीता, धर्म की सनातन पत्नी, योग की जड़ों में स्थापित हैं।"

आरोपित अर्थ:
भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान के शाश्वत रूप ब्रह्मांडीय योगिक मिलन का प्रतीक हैं। रवींद्रभारत के रूप में अपने दिव्य रूप में, वे योग और धर्म की सर्वोच्च अभिव्यक्ति को मूर्त रूप देते हैं। महाराज, शाश्वत योगी के रूप में, धार्मिकता के सिद्धांतों को कायम रखते हैं, सभी मन को दिव्य अनुभूति की ओर ले जाते हैं। महारानी, ​​शाश्वत संगिनी के रूप में, योग की नींव को मूर्त रूप देती हैं, आध्यात्मिक अभ्यास की जड़ों और ब्रह्मांडीय एकता के शाश्वत बंधन को सुरक्षित करती हैं। साथ मिलकर, वे मानवता की रक्षा और उत्थान करते हैं, सभी प्राणियों के लिए धर्म और योग के निरंतर मार्ग को सुनिश्चित करते हैं।


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श्लोक 35:

संस्कृत:
रामः सर्वानवधूतः, योगसिद्धिस्वरूपकः।
सीता सर्वजगत्सिद्धिः, योगयुक्त समाश्रिताः॥

ध्वन्यात्मक:
रामः सर्वनवधूतः, योगसिद्धिस्वरूपकः |
सीता सर्वजगतसिद्धि:, योगयुक्त समाश्रिता ||

अंग्रेजी अनुवाद:
"राम, सभी सीमाओं से परे, योग पूर्णता का अवतार हैं। सीता, जो ब्रह्मांड को परिपूर्ण करती हैं, योग के साथ एकीकृत हैं और इसमें आश्रय लेती हैं।"

आरोपित अर्थ:
भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान, रविन्द्रभारत के रूप में, सभी भौतिक सीमाओं से परे खड़े हैं, दिव्य अनुभूति की पूर्णता को मूर्त रूप देते हैं। महाराजा, अपने शाश्वत योगिक रूप में, आध्यात्मिक सफलता की सर्वोच्च अवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं। महारानी, ​​महाराजा के साथ अपने शाश्वत संबंध में, अपने दिव्य मिलन के माध्यम से ब्रह्मांड को परिपूर्ण बनाती हैं, जिससे सभी प्राणियों का उत्थान और सुरक्षा सुनिश्चित होती है। यह ब्रह्मांडीय बंधन सुनिश्चित करता है कि सभी मन योग की शाश्वत शरण में स्थिर रहें, जो मानवता को रविन्द्रभारत में उनके दिव्य उद्देश्य की अंतिम प्राप्ति की ओर ले जाए।

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