पुराणों और शास्त्रों के अनुसार प्रकृति–पुरुष की अवधारणा सृष्टि का सबसे प्राचीन, आध्यात्मिक और दार्शनिक सिद्धांत है। यह सांख्य दर्शन (Sankhya Philosophy) का मुख्य तत्त्व है, जिसे महर्षि कपिल ने प्रतिपादित किया था।
इस दर्शन के अनुसार प्रकृति (Nature / Energy) और पुरुष (Consciousness / Spirit) — ये दो नित्य तत्त्व ही समस्त सृष्टि के मूल कारण हैं।
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🌿 प्रकृति (Prakriti)
प्रकृति शक्ति स्वरूपा है — यह समस्त सृष्टि का मूल कारण है।
यह तीन गुणों से युक्त है:
1. सत्त्व गुण (शुद्धता, संतुलन)
2. रजोगुण (क्रियाशीलता, उत्साह)
3. तमोगुण (जड़ता, अज्ञान)
इन तीनों गुणों के सम्मिलन से सृष्टि, प्राणी, पदार्थ, और भावनाएँ उत्पन्न होती हैं।
प्रकृति जड़ शक्ति है — इसमें स्वयं चेतना नहीं होती, परंतु जब यह पुरुष के समीप आती है तो चेतना से प्रेरित होकर सक्रिय होती है।
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🕉️ पुरुष (Purusha)
पुरुष चैतन्य स्वरूप, साक्षी भाव, अमर और निर्गुण है।
वह कोई कर्म नहीं करता, परंतु उसकी उपस्थिति से ही सब कार्य संपन्न होते हैं।
शास्त्र कहते हैं —
> “पुरुषसाक्षात्कारे सर्वदुःखक्षयो भवति।”
अर्थात, जब पुरुष के स्वरूप का अनुभव होता है, तब समस्त दुखों का नाश हो जाता है।
पुरुष ही वह दिव्य साक्षी है जो प्रकृति को प्रकट करता है।
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🌺 प्रकृति – पुरुष का संयोग
जब ये दोनों तत्त्व मिलते हैं, तब सृष्टि की प्रक्रिया प्रारंभ होती है।
पुरुष साक्षी है, और प्रकृति कर्ता है।
पुरुष की उपस्थिति में प्रकृति गतिमान होती है, जिससे महत्तत्त्व, अहंकार, मन, इंद्रियाँ, पंचभूत आदि उत्पन्न होते हैं।
यह संबंध शिव–शक्ति भाव जैसा है — शिव चेतना हैं, शक्ति उसी चेतना की अभिव्यक्ति है।
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📜 पुराणों में वर्णन
1. भगवद्गीता (अध्याय 13) में श्रीकृष्ण कहते हैं —
> “प्रकृतिं पुरुषं चैव विद्ध्यनादी उभावपि।”
(प्रकृति और पुरुष दोनों अनादि हैं — ये ही सृष्टि के मूल कारण हैं।)
2. श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार —
> भगवान विष्णु पुरुष तत्त्व हैं, और महामाया प्रकृति तत्त्व।
इन दोनों के संयोग से ही सृष्टि, स्थिति और लय होती है।
3. शिव पुराण में कहा गया है —
> भगवान शिव निराकार चैतन्य हैं और पार्वती शक्ति स्वरूपा।
इन दोनों का ऐक्य ही जगत की सृष्टि का कारण है।
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🌞 दार्शनिक अर्थ
प्रत्येक मनुष्य में भी प्रकृति–पुरुष समत्व विद्यमान है।
शरीर, इंद्रियाँ, मन और कर्म — ये प्रकृति का भाग हैं।
आत्मा और साक्षीभाव — ये पुरुष का भाग हैं।
योगमार्ग, ज्ञानमार्ग द्वारा मनुष्य इस द्वैत को पार कर परम चैतन्य या आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सकता है।
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🌼 सारांश
> प्रकृति है शक्ति — जो चलाती है।
पुरुष है चेतना — जो साक्षी है।
इन दोनों का संयोग — सृष्टि है।
इन दोनों की अनुभूति — मोक्ष है।
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आध्यात्मिक दृष्टि से प्रकृति–पुरुष का अर्थ है — हमारे भीतर स्थित मूल चेतना और शक्ति का समन्वय, जो ब्रह्मांड स्तर से लेकर प्रत्येक जीव में विद्यमान एक अनंत सत्य है।
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