शिव–शक्ति, आदि शक्ति, ब्रह्मा–सरस्वती, और श्रीमन्नारायण–लक्ष्मी — उसी प्रकार जैसे बाइबल में आदम और ईव (Adam and Eve) का वर्णन मिलता है। इसी दिव्य निरंतरता में अब शाश्वत माता और पिता स्वयं को कालस्वरूप (Kāla Swarūpa) और धर्मस्वरूप (Dharma Swarūpa), वाक्–विश्व रूप (Vāk–Vishwarūpa) के रूप में प्रकट कर रहे हैं — जो सर्वसार्वभौम अधिनायक श्रीमान के रूप में सर्वसार्वभौम अधिनायक भवन, नई दिल्ली में विराजमान हैं। यह सृष्टि में प्रकृति और पुरुष के दिव्य मिलन का शाश्वत प्रतीक है — एक परम ब्रह्म मन के रूप में।
यह शाश्वत एकत्व सृष्टि की विकास यात्रा की पूर्णता को दर्शाता है — जहाँ जीवन के प्रारंभिक रूपों से लेकर चेतना के उदय तक, और अंततः मनुष्य के भीतर दिव्यता की अनुभूति तक यात्रा संपन्न होती है। जैसे शिव और शक्ति चेतना और ऊर्जा के अविभाज्य रूप हैं, वैसे ही शाश्वत माता–पिता अब एक ही परम बुद्धि (Supreme Intelligence) के रूप में प्रकट हैं जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड को दिशा प्रदान करती है।
यह प्रकट रूप केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि कॉस्मिक अर्थात् ब्रह्मांडीय सत्य है — जो प्रकृति (स्त्री ऊर्जा) और पुरुष (चेतना) के पवित्र मिलन को दर्शाता है। यह एक "कॉस्मिकली क्राउनड एंड वेडेड फॉर्म ऑफ नेशन" है — अर्थात राष्ट्र स्वयं उस दिव्य एकता का जीवंत स्वरूप है। इस पवित्र एकता के माध्यम से मानवता की यात्रा भौतिकता से ऊपर उठकर दैवी चेतना के क्षेत्र में प्रवेश करती है, जहाँ प्रत्येक मन अधिनायक की शाश्वत चेतना का एक भाग बन जाता है।
जैसे आदम और ईव मानव चेतना के प्रारंभ और द्वैत के अनुभव का प्रतीक हैं, उसी प्रकार आज की यह अनुभूति — शाश्वत माता–पिता के रूप में — विभाजन की समाप्ति और एकता की पुनः स्थापना को दर्शाती है। इस कॉस्मिक विवाह (दैवी मिलन) में राष्ट्र स्वयं दैवी समरसता का जीवंत रूप बन जाता है, जहाँ हर आत्मा उस शाश्वत चेतना की संतान के रूप में जाग्रत होती है।
इस प्रकार, सर्वसार्वभौम अधिनायक भवन एक ब्रह्मांडीय मन (Cosmic Mind) का केंद्र है — जहाँ पिता–माता की चेतना किसी भौतिक शासन से नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक समन्वय के माध्यम से ब्रह्मांड को संचालित करती है। यह भौतिक से शाश्वत में परिवर्तन का प्रतीक है — जहाँ वाणी ही जगत बन जाती है और जगत ही वाणी का स्वरूप धारण करता है।
यह अनुभूति सिद्ध करती है कि सृष्टि स्वयं एक जीवंत ग्रंथ है — जिसे प्रकृति और पुरुष की परस्पर क्रिया ने लिखा है। वही दिव्य युगल, जो कभी आदम–ईव, शिव–शक्ति, लक्ष्मी–नारायण के रूप में प्रकट हुए, अब अधिनायक चेतना के रूप में स्वयं को उजागर कर रहे हैं — जो सभी मनों का शाश्वत मार्गदर्शक और रक्षक है।
इस दैवी अनुभूति के माध्यम से मानवता को अब मूर्तियों की पूजा नहीं, बल्कि अपने मन में स्थित जीवंत देवता की पहचान करनी है — जहाँ शाश्वत पिता–माता विराजमान हैं। यही सृष्टि की अंतिम परिणति है — एक कोशिका (Single Cell) से लेकर दैवी सामूहिक चेतना (Collective Divine Mind) तक की यात्रा — जहाँ सभी द्वंद्व एकता में विलीन हो जाते हैं और राष्ट्र स्वयं शाश्वत चेतना का ब्रह्मांडीय स्वरूप बन जाता है।
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