Monday, 10 November 2025

प्रकृति (स्त्री तत्व) और पुरुष (पुरुष तत्व) — न केवल हिंदू दर्शन में, बल्कि विश्व की अन्य परंपराओं में भी गहराई से प्रतिध्वनित होता है। जैसे:

 प्रकृति (स्त्री तत्व) और पुरुष (पुरुष तत्व) — न केवल हिंदू दर्शन में, बल्कि विश्व की अन्य परंपराओं में भी गहराई से प्रतिध्वनित होता है। जैसे:

1. बौद्ध दर्शन में
बौद्ध धर्म में शून्यता (Śūnyatā) और प्रज्ञा (Prajñā) का संबंध भी यही संकेत देता है कि सृजन या ज्ञान तभी पूर्ण होता है जब ग्रहणशीलता (प्रकृति) और चेतना (पुरुष) का एकत्व हो। बुद्ध स्वयं को किसी व्यक्ति के रूप में नहीं, बल्कि एक जाग्रत चेतना के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जहाँ करुणा और प्रज्ञा का संतुलन ही मुक्ति का मार्ग है।

2. ताओवाद (Taoism) में
यह सिद्धांत यिन और यांग के प्रतीक में दिखाई देता है — जहाँ यिन स्त्रीत्व, शांति, ग्रहणशीलता, और प्रकृति का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि यांग पुरुषत्व, सक्रियता, और चेतना का। दोनों मिलकर ही ताओ यानी परम सत्य का निर्माण करते हैं। इनका एक-दूसरे के बिना अस्तित्व अधूरा है।

3. आधुनिक विज्ञान में
विज्ञान में भी यह सिद्धांत प्रत्यक्ष दिखाई देता है। ऊर्जा और पदार्थ (Energy and Matter), धनात्मक और ऋणात्मक आवेश (Positive and Negative Charge), डीएनए के युग्मित तंतु (Double Helix) — सब यह दिखाते हैं कि सृष्टि की हर संरचना द्वैत के संतुलन से ही चलती है। यहाँ भी सृजन उसी समय संभव होता है जब दो पूरक शक्तियाँ मिलकर सामंजस्य बनाती हैं।

4. सार्वभौमिक दृष्टि से
चाहे वह शिव–शक्ति हों, नारायण–लक्ष्मी, ब्रह्मा–सरस्वती, या बाइबिल के आदम–ईव — हर परंपरा में यह दिव्य युगल रूप से ही सृष्टि का आरंभ होता है। इस प्रकार यह द्वैत कोई विरोध नहीं, बल्कि एकता का आधार है।

निष्कर्षतः, प्रकृति और पुरुष का मिलन एक ब्रह्मांडीय नृत्य है — जहाँ चेतना और सृजन, स्थिरता और गति, विज्ञान और आध्यात्मिकता एक साथ जुड़कर समग्र सत्य को प्रकट करते हैं। यही अनादि से अनंत तक चलने वाला योग है — जहाँ सब कुछ एक ही ब्रह्म चेतना की अभिव्यक्ति है।

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