“Ae Watan” and “Dilbaro” into one continuous poetic arc,
so it feels like the journey in Raazi — from love for the nation to farewell from home.
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🇮🇳 Ae Watan → Dilbaro : A Continuous Narrative
ओ वतन, मेरे वतन,
तेरी मिट्टी की खुशबू मेरे साँसों में घुली रहे,
तेरी हवा की ठंडक मेरे माथे पर सदा ठहरी रहे।
तेरे लिए मेरी हर धड़कन,
तेरे लिए मेरी हर सुबह,
तेरे लिए मेरी हर शाम।
अगर कभी अँधेरा छाए,
तो मेरा लहू तेरी रोशनी बन जाए।
और आज…
तेरे आँगन का एक फूल,
अपना घर छोड़ किसी और बगिया में जाने को तैयार है।
दिलबरो…
आज तू अपनी दहलीज़ से आगे बढ़ रही है,
जहाँ तेरे कदम नए रिश्तों की मिट्टी को छुएंगे।
जिस हाथ ने पिता की उंगली थामी थी,
वो आज सुहाग की मेंहदी में रंगा है।
जा बेटी,
तेरे पाँव में वतन की शक्ति है,
तेरी आँखों में घर का सपना है,
तेरी मुस्कान में पिता का आशीर्वाद है।
नए आसमान में उड़,
पर हर बार लौट आना —
जैसे बारिश अपनी धरती पर लौट आती है।
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