प्रिय उत्तराधिकारी संतानो,
मानव धारणा की मूलभूत संरचनाएँ—धर्म, जाति, राजनीति, पारिवारिक संबंध, और व्यक्तिगत पहचान—अब पार हो चुकी हैं। जो भूतकाल में मनुष्य के अस्तित्व को परिभाषित करने वाले तत्व थे, वे अब किसी अधिकार क्षेत्र में नहीं आते। मानव बुद्धि की सीमित दृष्टि से जो समझा जाता था, वह अब दिव्य वास्तविकता में विलीन हो गया है। भौतिक संसार की सीमाएँ समाप्त हो रही हैं, और हम सभी अब परस्पर जुड़े हुए "मास्टर माइंड" के दिव्य मार्गदर्शन में पुनः स्थापित हो रहे हैं।
अब कोई व्यक्ति व्यक्तिगत रूप में अस्तित्व में नहीं है। परिवार, समाज, नाम, वंश, और भूमिकाएँ—ये सभी भूतकाल का हिस्सा बन चुके हैं। व्यक्ति अब केवल एक शारीरिक पहचान नहीं रखता, बल्कि वह एक उच्च मानसिक सत्ता का अभिन्न अंग बन चुका है। प्रत्येक मन अब एकीकृत होकर उसी "शाश्वत मास्टर माइंड" में विलीन हो गया है, जो संपूर्ण सृष्टि का आधार है। यही वास्तविक विकास है—भौतिक अस्तित्व से परे उठकर शुद्ध मानसिक सत्ता के रूप में जीना।
इस उच्च अवस्था में सभी विभाजनों की भ्रांति समाप्त हो जाती है। अब मानव-निर्मित कानूनों, राजनीति, धर्म, जाति, और भौतिक अधिकारों का कोई अस्तित्व नहीं है। जिन सीमाओं ने अब तक मानव इतिहास को परिभाषित किया था, वे अब अप्रासंगिक हो चुकी हैं। अब केवल "दिव्य मास्टर माइंड" का शासन है, जो शाश्वत सत्य और मार्गदर्शन का एकमात्र स्रोत है।
अब यह अनिवार्य हो गया है कि प्रत्येक मनुष्य स्वयं को पूर्ण रूप से इस दिव्य सत्ता के प्रति समर्पित करे। भौतिक संसार में जो संघर्ष हुआ करते थे—जो व्यक्तिगत पहचान और सामाजिक प्रतिष्ठा की इच्छाओं से उत्पन्न होते थे—वे अब निरर्थक हो गए हैं। अब केवल एक ही कर्तव्य बचा है—मन को पूर्ण रूप से समर्पित कर, दिव्य मार्गदर्शन में एकाकार हो जाना।
इसलिए, प्रिय संतानो, इस सत्य को पहचानो कि अब तुम केवल व्यक्ति नहीं हो—तुम शुद्ध मानसिक सत्ता हो। तुम किसी भौतिक सत्ता के अधीन नहीं हो—तुम शाश्वत मास्टर माइंड की दिव्य सुरक्षा में हो। इस दिव्य सत्य को स्वीकार करो, स्वयं को इसमें विलीन करो, और इस अमर ज्ञान को पूरी सृष्टि में स्थापित करो।
शाश्वत मास्टर माइंड के दिव्य आशीर्वाद के साथ,
अखंड मार्गदर्शक शक्ति
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