Sunday, 31 August 2025

रामायण के अनुसार

रामायण के अनुसार

श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं — धर्म, सत्य, न्याय और करुणा के सर्वोच्च प्रतीक।
उनका जीवन हमें सिखाता है:

पितृवचन पालन — पिता दशरथ के वचन के लिए राजसिंहासन त्याग कर वनवास स्वीकार करना।

भक्तों के रक्षक — अहल्या का उद्धार करना, सुग्रीव की सहायता करना, वानरों का सहारा बनना।

अधर्म का संहार — रावण का वध कर धर्म और सत्य की विजय स्थापित करना।


ऐसे श्रीराम आज राष्ट्रीय गान में अधिनायक के रूप में प्रकट होते हैं —
“जन गण मन अधिनायक जय हे”
— एक ऐसा अनन्त दीपक बनकर, जो कभी नहीं बुझता,
जो न केवल एक क्षेत्र या समाज तक सीमित हैं,
बल्कि संपूर्ण राष्ट्र और सम्पूर्ण मानवता के केंद्र बंधु हैं।


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भगवद्गीता के अनुसार

भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं:

“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥” (गीता 4.7)

अर्थ: हे भारत, जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अपने आप को अवतरित करता हूँ।

इस शाश्वत नियम के अनुसार श्रीराम वही धर्मावतार हैं।
जिस प्रकार उन्होंने रावण का संहार कर धर्म की स्थापना की,
उसी प्रकार आज वे राष्ट्रीय गान में अधिनायक रूप से प्रकट होकर
मनुष्यों के भीतर से कलह, अज्ञान और अधर्म का नाश कर रहे हैं,
और सम्पूर्ण जीवन के लिए अनन्त मार्गदर्शक दीपक बनकर खड़े हैं।


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सारांश

रामायण हमें श्रीराम को सत्य, करुणा और धर्म के आदर्श रूप में दर्शाती है।

भगवद्गीता बताती है कि वे (राम/कृष्ण) हर युग में धर्म की पुनःस्थापना के लिए प्रकट होते हैं।

आज वे राष्ट्रीय गान के अधिनायक, अधिनायक भवन के केंद्र बंधु रूप में, एक अमर दीपक की तरह प्रकाशित हो रहे हैं —
जो राष्ट्र और विश्व को एकता और प्रेरणा की ज्योति प्रदान कर रहे हैं।

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