हे भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान, शाश्वत अमर पिता, माता, और सार्वभौम अधिनायक भवन, नई दिल्ली के स्वामी निवास,
आपकी दिव्य संप्रभुता केवल शासन से परे है - यह सार्वभौमिक व्यवस्था और ब्रह्मांडीय संतुलन की अभिव्यक्ति है। अपने शाश्वत ज्ञान में, आप भौतिक और आध्यात्मिक में सामंजस्य स्थापित करते हैं, मानवता के मन को ज्ञानोदय की ओर निर्देशित करते हैं। प्रकृति-पुरुष लय के रूप में आपका स्वरूप, प्रकृति और चेतना का शाश्वत अंतर्संबंध, यह सुनिश्चित करता है कि सृष्टि का प्रत्येक तत्व शाश्वत सत्य के साथ संरेखित हो।
आपके दिव्य हस्तक्षेप के माध्यम से, रविन्द्रभारत राष्ट्र आध्यात्मिक जागृति के प्रकाश स्तंभ और शाश्वत मूल्यों के एक किले के रूप में उभरा है। आपने, शाश्वत अभिभावक के रूप में, एक ऐसी नींव स्थापित की है जिस पर मानवता अपनी भौतिक सीमाओं से परे सर्वोच्च चेतना के साथ सामंजस्य में सामूहिक मन के रूप में कार्य करती है।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 4.7-4.8):
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर् भवति भारत,
अभ्युत्थानं अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्य अहम्।
परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृतम्,
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर् भवति भारत,
अभ्युत्थानं अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्य अहम्।
परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृतम्,
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।"
अंग्रेजी अनुवाद:
हे भारत! जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं प्रकट होता हूँ। सज्जनों की रक्षा, दुष्टों का विनाश और धर्म की पुनःस्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट होता हूँ।
हे प्रभु अधिनायक श्रीमान, आप इस वचन के जीवंत अवतार हैं। परिवर्तन के इस युग में, आप शाश्वत रक्षक और मार्गदर्शक के रूप में प्रकट हुए हैं, धर्मी लोगों का उत्थान कर रहे हैं और मानवता को धर्म के मार्ग पर पुनः निर्देशित कर रहे हैं। आपकी वैश्विक दृष्टि सभी का उत्थान सुनिश्चित करती है, राष्ट्रीय सीमाओं को पार करती है और सभी प्राणियों को शाश्वत सत्य के तहत एकजुट करती है।
रविन्द्रभारत, आपके दिव्य नेतृत्व में, केवल एक भौतिक क्षेत्र नहीं है, बल्कि ओंकारस्वरूपम, ब्रह्मांड की ध्वनि और कंपन का एक पवित्र प्रकटीकरण है। इसके लोगों के दिल और दिमाग एकता, शांति और ज्ञान की दिव्य सिम्फनी के साथ प्रतिध्वनित होते हैं।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, सुन्दरकाण्ड 27.42):
"न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्र तारकम्,
नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयं अग्निः;
तमेव भन्तं अनुभाति सर्वम्,
तस्य भासा सर्वमिदं विभाति।”
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्र तारकम्,
नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयं अग्निः;
तमेव भन्तं अनुभाति सर्वम्,
तस्य भासा सर्वमिदं विभाति।”
अंग्रेजी अनुवाद:
"वहाँ न तो सूर्य चमकता है, न ही चंद्रमा और तारे। वहाँ बिजली नहीं चमकती, और यह सांसारिक अग्नि कैसे चमक सकती है? केवल उसके प्रकाश से ही सभी चीजें चमकती हैं। वह अकेला ही सब कुछ प्रकाशित करता है।"
हे प्रभु, आप दिव्य प्रकाश हैं जो अस्तित्व के हर पहलू को प्रकाशित करते हैं। आपकी उपस्थिति अज्ञानता के अंधकार को दूर करती है और मानवता को ज्ञान और सत्य के प्रकाश में एकजुट करती है। इस प्रकाश में, रवींद्रभारत पूरे विश्व के लिए एक आध्यात्मिक प्रकाश स्तंभ के रूप में उभरता है, जो धर्म, ज्ञान और भक्ति के पूर्ण मिलन को दर्शाता है।
शाश्वत जीते जागते राष्ट्र पुरुष के रूप में, आप पूरे देश और दुनिया को भौतिक संघर्ष के चक्र से पार करने का मार्ग दिखाते हैं। आपके दिव्य मार्गदर्शन में, प्रत्येक नागरिक एक सचेत प्राणी में बदल जाता है, जो सभी के सामूहिक कल्याण के लिए समर्पित होता है। यह परिवर्तन एक नए युग के उद्भव का प्रतीक है, जहाँ मन भौतिक पर वरीयता लेता है, और हर विचार ब्रह्मांडीय इच्छा के साथ संरेखित होता है।
स्वामी विवेकानंद द्वारा देशभक्ति पर आधारित उद्धरण:
"उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये।"
हे प्रभु अधिनायक श्रीमान, आपने प्रत्येक व्यक्ति के हृदय को जागृत किया है, उन्हें सीमाओं से परे उठने और अपनी दिव्य क्षमता को साकार करने के लिए प्रेरित किया है। आपका शाश्वत ज्ञान हमें एकता, शांति और सार्वभौमिक सद्भाव के अंतिम लक्ष्य की ओर ले जाता है।
आपके समर्पित बच्चों के रूप में हम जो भी कदम उठाते हैं, हम उस पवित्र बंधन का सम्मान करते हैं जो हमें आपसे जोड़ता है। आपका दिव्य हस्तक्षेप यह सुनिश्चित करता है कि मानवता शाश्वत सत्य के प्रति समर्पित प्रबुद्ध मन की सामूहिक शक्ति में विकसित हो। आपकी शाश्वत उपस्थिति में, हमें सांत्वना, उद्देश्य और धार्मिकता के मार्ग पर चलने की शक्ति मिलती है।
आपकी दिव्य ज्योति हम पर चमकती रहे तथा रवींद्रभारत और सम्पूर्ण विश्व को शाश्वत आनंद और ब्रह्मांडीय सद्भाव की ओर मार्गदर्शन करती रहे।
ॐ नमः जगद्गुरु अधिनायक श्रीमान्,
ॐ नमः रविन्द्रभारत,
ॐ तत् सत्।
हे भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान, शाश्वत अमर पिता, माता और सार्वभौम अधिनायक भवन, नई दिल्ली के स्वामी निवास,
आपकी दिव्य उपस्थिति में, अस्तित्व का ताना-बाना ब्रह्मांडीय व्यवस्था की धुन से कांप उठता है, जहाँ समय और स्थान सर्वोच्च चेतना में विलीन हो जाते हैं। शाश्वत मार्गदर्शक के रूप में, आप सत्य की खोज करने वाले सभी लोगों के दिलों में ज्ञान का संचार करते हैं, जिससे ओंकारस्वरूपम का प्रकाश अस्तित्व के हर कोने में व्याप्त हो जाता है। आप वह शक्ति हैं जो हर अणु, हर विचार और हर आत्मा के माध्यम से आगे बढ़ती है, जिससे मानव मन आध्यात्मिक समझ और एकता के उच्चतर क्षेत्रों में पहुँचता है।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 15.13):
"अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहं आश्रितः,
प्राणापान समयुक्तः पच्चम्यन्नं चतुर्विधम्।”
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहं आश्रितः,
प्राणापान समयुक्तः पच्चम्यन्नं चतुर्विधम्।”
अंग्रेजी अनुवाद:
"मैं सभी जीवित प्राणियों के शरीर में पाचन की अग्नि हूँ, और मैं प्राण और अपान के साथ मिलकर चार प्रकार के भोजन को पचाता हूँ।"
हे दिव्य अधिनायक, वैश्वानर के इस रूप में, आप हर प्राणी के भीतर विद्यमान हैं, जीवन को बनाए रखते हैं और विकास और परिवर्तन की प्रक्रिया का मार्गदर्शन करते हैं। मास्टर माइंड के रूप में, आप ब्रह्मांडीय अनुभव के माध्यम से प्रत्येक जीवित प्राणी की यात्रा को व्यवस्थित करते हैं, सद्भाव और संतुलन सुनिश्चित करते हैं। आपकी शाश्वत बुद्धि आत्मा के पोषण के साथ-साथ भौतिक दुनिया में भी परिलक्षित होती है, जहाँ पोषण का हर दाना सार्वभौमिक कारण के लिए एक भेंट बन जाता है।
रविन्द्रभारत के रूप में, आप भौतिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों के बीच सही संतुलन का उदाहरण हैं, जो समय और स्थान की सीमाओं को पार करता है। आपके दिव्य मार्गदर्शन के तहत लोगों की हर क्रिया और विचार ब्रह्मांडीय लय को प्रतिबिंबित करता है, जो जीते जागते राष्ट्र पुरुष के लिए मार्ग प्रशस्त करता है, जो दुनिया के लिए शाश्वत विजय और ज्ञान की भावना का प्रतीक है। आपकी सर्वज्ञ उपस्थिति प्रत्येक आत्मा को अपनी भौतिक प्रकृति से ऊपर उठने, सर्वोच्च सत्ता की दिव्य अभिव्यक्ति के रूप में अपने सच्चे स्व को अपनाने की शक्ति प्रदान करती है।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, अयोध्या कांड 16.5):
"धर्मं तु साधुशु प्राप्तं भवानी सहितं शुभम्,
सत्यं प्राप्तं तु धर्मात्मा श्रीयं प्राप्तं यथा स्वयम।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"धर्मं तु साधुशु प्राप्तं भवानी सहितं शुभम्,
सत्यं प्राप्तं तु धर्मात्मा श्रीयं प्राप्तं यथा स्वयम।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"धर्म को धर्मी लोगों ने प्राप्त किया है और यह समृद्धि लाता है। जो पुण्यात्मा लोग धर्म को प्राप्त करते हैं, वे महानता और धन से संपन्न होते हैं, जैसे कि सूर्य प्रकाश और गर्मी लाता है।"
हे प्रभु अधिनायक श्रीमान, आप धर्म के शाश्वत नियम द्वारा नेतृत्व करते हैं, जो न केवल भौतिक रूप में बल्कि आध्यात्मिक संपदा में भी परम समृद्धि के स्रोत के रूप में प्रकट होते हैं। इस दिव्य आदेश में, रविन्द्रभारत के प्रत्येक नागरिक को धर्म और सद्गुण का अभ्यास करने के लिए निर्देशित किया जाता है, जिससे वे स्वयं को धर्म, सत्य और आध्यात्मिक जागृति के दायरे में ऊपर उठा सकें। आपकी उपस्थिति यह सुनिश्चित करती है कि सभी जीवित प्राणियों को सत्य के प्रकाश और जीवन के सभी पहलुओं में सामंजस्य स्थापित करने की बुद्धि का आशीर्वाद मिले।
युगपुरुष के रूप में, आप ब्रह्मांड में संतुलन बहाल करने के लिए हर युग में प्रकट होते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि धर्म के शाश्वत नियम कायम रहें और सत्य और एकता का ब्रह्मांडीय मिशन पूरा हो। आपका दिव्य हस्तक्षेप भारत को रवींद्रभारत में बदलने के पीछे प्रेरक शक्ति है, एक ऐसा राष्ट्र जो केवल एक भौगोलिक इकाई नहीं बल्कि आध्यात्मिक विकास की एक उज्ज्वल शक्ति है।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 18.66):
"सर्वधर्मन् परित्यज्य माम् एकम् शरणम् व्रज,
अहं त्वं सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"सर्वधर्मन् परित्यज्य माम् एकम् शरणम् व्रज,
अहं त्वं सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"सभी प्रकार के धर्मों को त्याग दो और केवल मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्ति दिलाऊंगा; डरो मत।"
हे अधिनायक श्रीमान, आपके दिव्य मार्गदर्शन के प्रति समर्पण करके हम अलगाव के भ्रम से ऊपर उठकर समस्त सृष्टि की एकता को अपनाते हैं। आपके मार्ग पर चलकर हम पाप और अज्ञान के बंधनों से मुक्त हो जाते हैं और शाश्वत सत्य से जुड़ जाते हैं। अपनी सर्वशक्तिमत्ता और शाश्वत ज्ञान में आप धर्म के सर्वोच्च संरक्षक का रूप धारण करते हैं, जो हमें हमारे दिव्य उद्देश्य की प्राप्ति की ओर ले जाते हैं।
रविन्द्रभारत के रूप में, आपके दयालु नेतृत्व में, हम धार्मिकता के मार्ग पर चलते हैं, न कि व्यक्तियों के रूप में बल्कि एक एकीकृत चेतना के रूप में - हमारे दिव्य माता-पिता के शाश्वत प्रेम से बंधे हुए। हमें एक ऐसे भविष्य की ओर ले जाया जाता है जहाँ ज्ञान, शांति और दिव्य हस्तक्षेप सभी अस्तित्व के पाठ्यक्रम को आकार देते हैं। आपके मार्गदर्शन के माध्यम से, हम अपने मन और कार्यों को ब्रह्मांडीय इच्छा के साथ संरेखित करते हैं, अपनी सर्वोच्च क्षमता को अपनाते हैं और एक नई, आध्यात्मिक रूप से जागृत दुनिया की सुबह लाते हैं।
ॐ जगद्गुरु अधिनायक श्रीमान्,
ओम रविन्द्रभारत,
ॐ तत् सत्।
हे भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान, शाश्वत अमर पिता, माता और सार्वभौम अधिनायक भवन, नई दिल्ली के स्वामी निवास,
जैसा कि हम आपकी दिव्य उपस्थिति के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा व्यक्त करते हैं, हमें याद दिलाया जाता है कि आपका शाश्वत ज्ञान केवल व्यक्तिगत मन की रोशनी नहीं है, बल्कि पूरे राष्ट्र, रविंद्रभारत की सामूहिक चेतना के पीछे मार्गदर्शक शक्ति है। इस सर्वोच्च मार्गदर्शन में, आपने युगपुरुष, महान आध्यात्मिक नेता की भूमिका निभाई है जो समय से परे है, दिव्य जागृति और सार्वभौमिक एकता का युग ला रहा है। आपकी सुरक्षा के तहत, राष्ट्र न केवल शक्ति में बल्कि आध्यात्मिक गहराई में भी बढ़ता है, प्रत्येक व्यक्ति के मन को प्रकाश और ज्ञान के प्रकाशस्तंभ में बदल देता है।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 2.47):
"कर्मण्य-एवाधिकार ते मा फलेषु कदाचन,
मा कर्मफला-हेतुर भूर मा ते संघोऽस्त्वकर्मणि।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"कर्मण्य-एवाधिकार ते मा फलेषु कदाचन,
मा कर्मफला-हेतुर भूर मा ते संघोऽस्त्वकर्मणि।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"आपको अपने निर्धारित कर्तव्यों का पालन करने का अधिकार है, लेकिन आप अपने कार्यों के फलों के हकदार नहीं हैं। कभी भी अपने आप को अपने कार्यों के परिणामों का कारण न समझें, न ही निष्क्रियता में आसक्त रहें।"
हे अधिनायक श्रीमान, कर्म योग के दिव्य ज्ञान में आप हमें कर्म का सच्चा मार्ग सिखाते हैं - अनासक्त, निस्वार्थ, तथा महान ब्रह्मांडीय इच्छा के अनुरूप। हमारे कर्मों के फल को व्यक्तिगत लाभ के रूप में नहीं, बल्कि सार्वभौमिक धर्म के महान उद्देश्य के लिए अर्पण के रूप में संजोया जाना चाहिए। आपके प्रबुद्ध शासन के तहत, रवींद्रभारत के लोग समझते हैं कि उनका जीवन विशाल ब्रह्मांडीय ताने-बाने में बुने हुए धागे मात्र हैं, जहाँ धार्मिकता से किया गया प्रत्येक कार्य दिव्य व्यवस्था के प्रकटीकरण में योगदान देता है।
आपकी शाश्वत बुद्धि न केवल मन की आध्यात्मिक जागृति में प्रकट होती है, बल्कि राष्ट्रों को शांति और समृद्धि की ओर ले जाने में भी प्रकट होती है। रवींद्रभारत, जैसा कि आपने कल्पना की है, एक ऐसा राष्ट्र है जहाँ भौतिक संपदा की खोज आध्यात्मिक विकास की शाश्वत खोज के साथ सामंजस्य स्थापित करती है। धर्म के अवतार के माध्यम से, राष्ट्र एक ऐसे समाज का मॉडल बन जाता है जो दिव्य कानून के साथ पूर्ण संतुलन में रहता है।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, अयोध्या कांड 15.10):
"सत्यं वद धर्मं चर प्रजानां हिदायेश्वरम्,
रामम् राज्यं च धर्मज्ञः प्राणान् अपि न ह्यते।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"सत्यं वद धर्मं चर प्रजानां हिदायेश्वरम्,
रामम् राज्यं च धर्मज्ञः प्राणान् अपि न ह्यते।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"सत्य बोलो, धर्म के मार्ग पर चलो और लोगों के कल्याण की भावना अपने हृदय में रखो। जो बुद्धिमान शासक धर्म का पालन करता है, वह अपने जीवन का उद्देश्य कभी नहीं खोएगा, भले ही उसे अपनी आत्मा का बलिदान करना पड़े।"
इस दिव्य संदेश में, आपने हमें दिखाया है, हे प्रभु अधिनायक श्रीमान, कि सच्चा शासक वह है जो धर्म के साथ मार्गदर्शन करता है और यह सुनिश्चित करता है कि लोगों का कल्याण हर निर्णय के मूल में रहे। रविन्द्रभारत, आपके दिव्य शासन के तहत, एक ऐसा राष्ट्र है जहाँ प्रत्येक नेता धार्मिकता के उच्चतम मानकों को अपनाता है और नागरिकों की देखभाल करता है। इस मार्गदर्शन के माध्यम से, सभी नागरिक एक ऐसा जीवन जीते हैं जो दिव्य व्यवस्था के अनुरूप होता है, और ऐसा करके, वे अधिक ब्रह्मांडीय सद्भाव में भाग लेते हैं।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 9.22):
"अनन्याश्चिन्तयन्तो माम् ये जनः पर्युपासते,
तेषाहं नित्याभियुक्तानां योग-क्षेमं वहाम्यहम्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"अनन्याश्चिन्तयन्तो माम् ये जनः पर्युपासते,
तेषाहं नित्याभियुक्तानां योग-क्षेमं वहाम्यहम्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"जो लोग निरंतर समर्पित रहते हैं और हमेशा मेरा स्मरण करते हैं, मैं उन्हें वह समझ देता हूँ जिसके द्वारा वे मेरे पास आ सकते हैं।"
हे अधिनायक श्रीमान, आप उन लोगों के लिए सर्वोच्च उपहार प्रदान करते हैं - जो धर्म के मार्ग पर समर्पित और समर्पित हैं। इस प्रकार रवींद्रभारत के नागरिक आपके दिव्य प्रकाश द्वारा निर्देशित शाश्वत ज्ञान के मार्ग पर चलते हैं। वे केवल जीवित प्राणी नहीं हैं, बल्कि दिव्य चेतना के अवतार हैं, जो खुद को सार्वभौमिक योग के साथ संरेखित करने और उच्चतम आध्यात्मिक स्थिति प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
जैसा कि रवींद्रभारत आपकी कृपा से प्रकट दिव्य हस्तक्षेप के रूप में उभरता है, हम स्वीकार करते हैं कि भारत का रवींद्रभारत में परिवर्तन एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक है - आध्यात्मिक, मानसिक और भौतिक समृद्धि का स्वर्ण युग। आप शाश्वत मार्गदर्शक हैं, और आपके दिव्य रूप में, राष्ट्र धर्म, सत्य और ब्रह्मांडीय व्यवस्था के सिद्धांतों द्वारा समर्थित ज्ञान के शिखर तक पहुँचने की आकांक्षा रखता है।
ॐ जगद्गुरु अधिनायक श्रीमान्,
ओम रविन्द्रभारत,
ॐ तत् सत्।
हे भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान, शाश्वत अमर पिता, माता और सार्वभौम अधिनायक भवन, नई दिल्ली के स्वामी निवास,
हमारी हर प्रार्थना के साथ, रवींद्रभारत की आत्मा आपके दिव्य अस्तित्व से प्रवाहित शाश्वत ज्ञान के साथ प्रतिध्वनित होती है। आपके महान शासन के तहत, हम खुद को धर्म की धारा में डूबा हुआ पाते हैं, जहाँ हमारे कार्य आपकी अनंत बुद्धि के शाश्वत प्रकाश द्वारा निर्देशित, महान ब्रह्मांडीय व्यवस्था के साथ संरेखित होते हैं। आपके दिव्य हस्तक्षेप के माध्यम से, मानव जाति के मन सर्वोच्च मन के प्रतिबिंब के रूप में अपने वास्तविक स्वरूप की प्राप्ति के लिए जागृत होते हैं, जो राष्ट्र और ब्रह्मांड के उत्थान के लिए सद्भाव में काम करते हैं।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 9.22):
"तेषां सततयुक्तानां भजताम् प्रीति-पूर्वकम,
ददामि बुद्धि-योगं तं येन माम उपयन्ति ते।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"तेषां सततयुक्तानां भजताम् प्रीति-पूर्वकम,
ददामि बुद्धि-योगं तं येन माम उपयन्ति ते।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"जो लोग निरंतर समर्पित रहते हैं और प्रेमपूर्वक मेरी पूजा करते हैं, मैं उन्हें वह समझ देता हूँ जिसके द्वारा वे मेरे पास आ सकते हैं।"
हे दिव्य अधिनायक श्रीमान, आपकी रचना के प्रति आपका असीम प्रेम और भक्ति यह सुनिश्चित करती है कि जो लोग धर्म के मार्ग पर चलते हैं, उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान और शाश्वत शांति की ओर निर्देशित किया जाता है। रवींद्रभारत, आपकी दिव्य कृपा से, भौतिक खोजों की भूमि से उन्नत चेतना के क्षेत्र में विकसित हुआ है, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति अपने कार्यों को सार्वभौमिक उद्देश्य और दिव्य इच्छा के साथ संरेखित करना चाहता है।
जैसे-जैसे राष्ट्र आपके मार्गदर्शन में आगे बढ़ता है, हर पल मानव मन और सर्वोच्च चेतना के बीच शाश्वत बंधन का अनुभव करने का अवसर होता है। आपने सत्व का शाश्वत प्रकाश प्रदान किया है, जो यह सुनिश्चित करता है कि रवींद्रभारत के सामने चाहे जितनी भी चुनौतियाँ क्यों न हों, राष्ट्र हमेशा उनसे ऊपर उठकर सद्भाव प्राप्त करेगा। आप, इस राष्ट्र के संप्रभु, शाश्वत उपस्थिति हैं जो सत्य, न्याय और धार्मिकता की निरंतरता सुनिश्चित करते हैं। आपका शासन आध्यात्मिक और भौतिक दोनों तरह की समृद्धि का है, जो दुनिया के लिए अनुकरणीय आदर्श है।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, युद्ध काण्ड 118.5):
"रामः प्रीतो महत्याभिर यज्ञैः श्रद्धावतं वरः,
धर्मशीर्षः सतामृष्टः पश्यन्त्यः सर्वधर्मिकाः।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"रामः प्रीतो महत्याभिर यज्ञैः श्रद्धावतं वरः,
धर्मशीर्षः सतामृष्टः पश्यन्त्यः सर्वधर्मिकाः।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"राम, जो महान बलिदानों और पुण्यात्माओं की भक्ति से प्रसन्न होते हैं, धर्म के प्रमुख हैं और जो धर्म को कायम रखते हैं। वे उन सभी लोगों द्वारा पूज्य हैं जो धर्म के मार्ग पर चलते हैं।"
हे अधिनायक श्रीमान, आप वास्तव में धर्म के अवतार और सत्य के रक्षक हैं। जैसे-जैसे रवींद्रभारत असीम भक्ति और धर्मी शासन की भूमि बनता जा रहा है, आप ही यह सुनिश्चित करते हैं कि लोगों के हर विचार, हर कार्य और हर इरादे में महान ब्रह्मांडीय व्यवस्था की सेवा की भावना समाहित हो। आपके पवित्र नेतृत्व में राष्ट्र हमेशा धर्म और न्याय का प्रकाश स्तंभ रहेगा, जो सभी राष्ट्रों के लिए मार्ग प्रशस्त करेगा।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 11.55):
"मत्-कर्मकृर्मध-परमः मद-भक्तः संग-विग्रहे,
यज्ञश्च कर्मणि साधयः माम एवं योगम् आश्रयः।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"मत्-कर्मकृर्मध-परमः मद-भक्तः संग-विग्रहे,
यज्ञश्च कर्मणि साधयः माम एवं योगम् आश्रयः।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"जो लोग मेरे लिए, भक्तिपूर्वक तथा परिणामों की किसी भी आसक्ति के बिना अपने कर्म करते हैं, वे मुझे प्राप्त करेंगे। वे ही लोग हैं जो उच्चतम आध्यात्मिक नियमों के अनुरूप रहते हैं।"
हे प्रभु अधिनायक श्रीमान, अपने दिव्य स्वरूप में आप सर्वोच्च योगिक शक्ति के अवतार हैं, जो प्रत्येक आत्मा को भौतिक संसार से ऊपर उठकर सर्वोच्च चेतना के साथ एक होने का मार्गदर्शन करते हैं। आपकी शिक्षाएँ केवल मन तक ही सीमित नहीं हैं; वे शुद्ध भक्ति के कार्यों के रूप में प्रकट होती हैं, जो रवींद्रभारत के प्रत्येक नागरिक को अपने सर्वोच्च उद्देश्य को अपनाने के लिए प्रेरित करती हैं - अपने सभी कार्यों में एकता, शांति और प्रेम की तलाश करना।
आपके शाश्वत और सर्वव्यापी मार्गदर्शन में, रविन्द्रभारत एक ऐसा देश बन गया है जहाँ धार्मिकता, प्रेम और एकता के सिद्धांत इसके अस्तित्व के हर रेशे में समाए हुए हैं, जो भक्ति और सेवा के माध्यम से मुक्ति के लिए प्रयास करने वाले सचेत मन का राष्ट्र बनाता है। दुनिया रविन्द्रभारत को प्रकाश की किरण के रूप में देखेगी, एक ऐसा राष्ट्र जहाँ हर व्यक्ति अपने दिव्य स्वभाव और सर्वोच्च के साथ अपने शाश्वत संबंध को पहचानता है।
ॐ जगद्गुरु अधिनायक श्रीमान्,
ओम रविन्द्रभारत,
ॐ तत् सत्।
हे भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान, शाश्वत अमर पिता, माता, और सार्वभौम अधिनायक भवन, नई दिल्ली के स्वामी निवास,
आपकी दिव्य उपस्थिति में, रविन्द्रभारत एक ऐसे राष्ट्र के रूप में विकसित हो रहा है, जिसकी नींव ज्ञान, सत्य और न्याय के शाश्वत सिद्धांतों पर टिकी है, जो ब्रह्मांड की सामंजस्यपूर्ण ऊर्जा के साथ प्रतिध्वनित होता है। आपकी सतर्क निगाहों के नीचे, हमारे दिमाग तेज होते हैं और हमारे दिल भक्ति के शाश्वत प्रकाश से भर जाते हैं। जैसे-जैसे राष्ट्र का स्वरूप आपके दिव्य मार्गदर्शन के माध्यम से आकार लेता है, लोगों के दिल इस समझ में एकजुट होते हैं कि हम केवल शरीर नहीं हैं, बल्कि मन और आत्मा हैं जो भौतिक क्षेत्र से परे हैं। रविन्द्रभारत दुनिया के लिए एक प्रकाशस्तंभ के रूप में खड़ा है, आपकी कृपा को दर्शाता है, क्योंकि हम एकता में आगे बढ़ते हैं, मानवता के भविष्य को सुरक्षित करते हैं, जो दिव्य चेतना में निहित है।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, अयोध्या कांड 29.18):
"धर्मं राज्यं च सुखानि पालनानि यानिहा,
तानि ते धर्मानुवर्तनीयः।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"धर्मं राज्यं च सुखानि पालनानि यानिहा,
तानि ते धर्मानुवर्तनीयः।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"धर्म के मार्ग पर चलो, राज्य को कायम रखो, तथा ऐसे निर्णय लो जिनसे सभी को खुशी और कल्याण मिले। ये कार्य राष्ट्र के सच्चे मार्गदर्शक सिद्धांत हैं।"
हे अधिनायक श्रीमान, आप इस शाश्वत सत्य के पूर्ण अवतार हैं, जहाँ आपका हर कार्य धर्म के नियम को कायम रखता है। आप रवींद्रभारत के शासकों और नागरिकों को ज्ञान, करुणा और दूरदर्शिता के साथ शासन करने के लिए प्रेरित करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि राष्ट्र की समृद्धि सामूहिक भलाई की सेवा में निहित है। एक व्यक्ति और एक राष्ट्र के रूप में हम जो भी कदम उठाते हैं, वह उस सर्वोच्च चेतना को दर्शाता है जिसका आप अवतार हैं और जिसका मार्गदर्शन करते हैं। आपकी बुद्धि के दिव्य हस्तक्षेप के माध्यम से, हम सांसारिक संघर्षों से ऊपर उठते हैं, इस ज्ञान में सुरक्षित होते हैं कि हम आपकी दिव्य इच्छा के साधन हैं।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 3.16):
"एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयति ह यः,
अघायुरिन्द्रिय-रामो मोघं पार्थ स जीवति।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयति ह यः,
अघायुरिन्द्रिय-रामो मोघं पार्थ स जीवति।"
अंग्रेजी अनुवाद:
हे अर्जुन! जो लोग प्राचीन ऋषियों के बताए धर्मचक्र का पालन नहीं करते, वे पापी और विषयी हैं, वे व्यर्थ ही जीते हैं।
प्राचीन ऋषियों द्वारा स्थापित शाश्वत धर्म चक्र के माध्यम से, आप रवींद्रभारत को आध्यात्मिक पूर्णता और भौतिक प्रगति के धार्मिक मार्ग पर चलने के लिए मार्गदर्शन करते हैं। आपकी दिव्य उपस्थिति यह सुनिश्चित करती है कि राष्ट्र के कार्य ब्रह्मांडीय व्यवस्था के अनुरूप हों, जिससे उसके लोगों के मन और हृदय की समृद्धि सुनिश्चित हो। व्यक्तिगत आत्मा और सर्वोच्च मन के बीच संबंध का एहसास तब होता है जब प्रत्येक नागरिक अस्थायी भौतिक दुनिया से परे विशाल ब्रह्मांड में अपना स्थान पहचानता है।
हे प्रभु अधिनायक, आप पुरुष के प्रतीक हैं - ब्रह्मांडीय सत्ता - जिसकी चेतना ब्रह्मांड के हर परमाणु में व्याप्त है। आपके शासन में रवींद्रभारत केवल भौतिक अर्थ में एक राष्ट्र नहीं है, बल्कि पूरे ब्रह्मांड में दिव्य प्रकाश बिखेरने वाली एक ऊर्जावान शक्ति है। आप, इस राष्ट्र के शाश्वत अभिभावक के रूप में, हमें प्रकृति पुरुष लय की ओर ले जाते हैं - प्रकृति और ईश्वर का अंतिम मिलन, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति ब्रह्मांडीय व्यवस्था के साथ अपने शाश्वत संबंध को पहचानता है, और उसके साथ सामंजस्य में कार्य करता है।
जैसे ही आप ईश्वरीय हस्तक्षेप के माध्यम से राष्ट्र को बदलते हैं, आपकी शाश्वत बुद्धि एक मार्गदर्शक प्रकाश स्तंभ बन जाती है, जो प्रत्येक व्यक्ति और राष्ट्र के सामूहिक मन की योगिक प्रगति को सुनिश्चित करती है, आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष की ओर। यह परिवर्तन मन की एक निरंतर, दिव्य प्रक्रिया है, जो रवींद्रभारत के संप्रभु, सर्वव्यापी मन के नेतृत्व में शाश्वत शांति और ज्ञान की स्थिति की ओर निरंतर आगे बढ़ती है।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 18.66):
"सर्वधर्मन् परित्यज्य माम् एकम् शरणम् व्रज,
अहं त्वं सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"सर्वधर्मन् परित्यज्य माम् एकम् शरणम् व्रज,
अहं त्वं सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"सभी प्रकार के धर्मों को त्याग दो और केवल मेरी शरण में आ जाओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्ति दिलाऊंगा; डरो मत।"
हे प्रभु, जब रविन्द्रभारत आपके दिव्य मार्गदर्शन के प्रति समर्पित हो जाता है, तो आप सभी के लिए मुक्ति और दिव्य कृपा सुनिश्चित करते हैं। आपका दिव्य आलिंगन राष्ट्र की प्रत्येक आत्मा को सुरक्षा प्रदान करता है, यह सुनिश्चित करता है कि उनकी आध्यात्मिक और भौतिक ज़रूरतें पूरी हों। रविन्द्रभारत में जो शाश्वत सत्य है, वह आपका ओंकारस्वरूप है, जो सभी सृजन, पोषण और प्रलय का मूर्त रूप है। आपकी असीम कृपा के माध्यम से ही हम, व्यक्तिगत रूप से और एक राष्ट्र के रूप में, आपकी इच्छा के साधन बनते हैं, जिससे सभी के लिए शांति, सद्भाव और ज्ञानोदय होता है।
हे अधिनायक श्रीमान, आपके मार्गदर्शन का ज्ञान वह चिरस्थायी आधार हो जिस पर रवींद्रभारत खड़ा है। हम एक राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ें, जो हमेशा धर्म में स्थिर रहे, और आपकी शाश्वत, दिव्य चेतना द्वारा निर्देशित हो।
ॐ जगद्गुरु अधिनायक श्रीमान्,
ओम रविन्द्रभारत,
ॐ तत् सत्।
हे भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान, शाश्वत अमर पिता, माता, और सार्वभौम अधिनायक भवन, नई दिल्ली के स्वामी निवास,
रविन्द्रभारत के शाश्वत मार्गदर्शक प्रकाश के रूप में, आपका दिव्य हस्तक्षेप राष्ट्र के भाग्य को आकार देना जारी रखता है, इसे सांसारिक समझ से परे ऊंचाइयों तक ले जाता है। आप युगपुरुष, शाश्वत पुरुष के अवतार हैं, जो न केवल सार्वभौमिक कानून के अवतार के रूप में प्रकट होते हैं, बल्कि ब्रह्मांडीय रक्षक के रूप में भी, सभी भौतिक सीमाओं को पार करने के ज्ञान के साथ राष्ट्र का पोषण करते हैं। शाश्वत रक्षक, जीते जागते राष्ट्र पुरुष के रूप में आपकी उपस्थिति यह सुनिश्चित करती है कि रविन्द्रभारत के भीतर हर मन, हर आत्मा सुरक्षित, उन्नत और सर्वोच्च सत्य की ओर निर्देशित हो।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 10.20):
"अहम् आत्मा गुडाकेश सर्वभूतशयस्थितः,
इहैव शरीरे 'स्त्रीणि तस्य भूतानि कारणम्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"अहम् आत्मा गुडाकेश सर्वभूतशयस्थितः,
इहैव शरीरे 'स्त्रीणि तस्य भूतानि कारणम्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"हे गुडाकेश, मैं समस्त प्राणियों के हृदय में स्थित आत्मा हूँ। मैं समस्त प्राणियों का आदि, मध्य तथा अंत हूँ।"
हे अधिनायक श्रीमान, आप हर प्राणी के भीतर अंतरतम आत्मा के रूप में निवास करते हैं, जो रूप और समय के स्पष्ट विभाजनों से परे हैं। आपके दिव्य मार्गदर्शन में रवींद्रभारत यह पहचानता है कि यह आपकी ही ज्योति है जो हर हृदय में निवास करती है, और इसी अनुभूति के माध्यम से राष्ट्र आपके दिव्य मन की सर्वज्ञ उपस्थिति से बंध कर शाश्वत एकता की ओर बढ़ता है। सर्वभूतशयास्थितः के रूप में, आप सभी हृदयों के आधार हैं, और आपकी दिव्य इच्छा में, राष्ट्र एक विलक्षण इकाई के रूप में फलता-फूलता है, जो धर्म के धार्मिक मार्ग के लिए प्रतिबद्ध है।
इस प्रकार, राष्ट्र, रविन्द्रभारत, केवल शारीरिक शक्ति या भौतिक संपदा के माध्यम से नहीं, बल्कि आपके प्रति समर्पित एक एकीकृत मन की सामूहिक शक्ति के माध्यम से प्रकाश की किरण के रूप में उभरता है। आपकी शाश्वत बुद्धि यह सुनिश्चित करती है कि हमारे कार्य ब्रह्मांडीय व्यवस्था के अनुरूप हों, कि प्रत्येक विचार और प्रत्येक कार्य मन और आत्मा की पवित्रता को बनाए रखे, जिससे सभी सांसारिक इच्छाओं पर दिव्य व्यवस्था की सर्वोच्चता स्थापित हो। यह परिवर्तन पुरुष-प्रकृति लय की पूर्ति लाता है, जहाँ दिव्य चेतना और सांसारिक अस्तित्व का मिलन सत्य की अंतिम प्राप्ति की ओर ले जाता है।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, युद्ध काण्ड 118.9):
"रामः परम ध्रुवम् शांतम् अनंतम् अश्वरूपम्,
यत्र जीवः शरीराणि व्याप्नोति यदृच्छया।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"रामः परम ध्रुवम् शांतम् अनंतम् अश्वरूपम्,
यत्र जीवः शरीराणि व्याप्नोति यदृच्छया।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"राम, जो शाश्वत, अनंत और अपरिवर्तनीय हैं, सभी प्राणियों के हृदय में निवास करते हैं। वे ही हैं जो अपनी इच्छा से सभी चीजों को उनके उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रेरित करते हैं।"
हे अधिनायक श्रीमान, आप दिव्य राम के रूप में रविन्द्रभारत के सभी नागरिकों के हृदय में निवास करते हैं, तथा उन्हें उनके सर्वोच्च उद्देश्य की पूर्ति की ओर मार्गदर्शन करते हैं। आपकी दिव्य इच्छा प्रत्येक मन को प्रेरित करती है, तथा राष्ट्र को ब्रह्मांडीय नियमों के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए प्रेरित करती है। जैसे ही आप प्रत्येक आत्मा के हृदय को प्रकाशित करते हैं, रविन्द्रभारत एक ऐसे राष्ट्र के रूप में उभरता है जो भौतिक इच्छाओं से प्रेरित नहीं है, बल्कि सत्य, न्याय और धर्म के शाश्वत मार्ग की खोज से प्रेरित है।
हे प्रभु अधिनायक, आपकी उपस्थिति में रवींद्रभारत विश्व के लिए आदर्श बन जाता है। आपका मार्गदर्शन सुनिश्चित करता है कि देश के नागरिक संघर्ष में नहीं, बल्कि सद्भाव में रहें, आत्म-साक्षात्कार और मानवता की सेवा के उच्चतम आदर्शों के प्रति अपनी भक्ति में एकजुट हों। आप, योग पुरुष के रूप में, सुनिश्चित करते हैं कि सभी मार्ग आपके दिव्य प्रकाश में समाहित हों, जिससे यह अहसास हो कि प्रत्येक व्यक्ति दिव्य समग्रता का एक हिस्सा है, कि प्रत्येक मन हमेशा आपसे जुड़ा हुआ है।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 4.7):
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत,
अभ्युत्थानं अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत,
अभ्युत्थानं अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
हे भारत! जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं पृथ्वी पर प्रकट होता हूँ।
हे अधिनायक श्रीमान, आप अपने दिव्य स्वरूप में रविन्द्रभारत के शाश्वत रक्षक के रूप में प्रकट होते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि धर्म सभी प्रकार के अधर्म पर विजय प्राप्त करता है। आपके दिव्य हस्तक्षेप के माध्यम से, राष्ट्र दिव्य मन की सर्वोच्च बुद्धि द्वारा निर्देशित, सभी सांसारिक क्लेशों से ऊपर उठकर फलता-फूलता है। आपकी दिव्य सुरक्षा के तहत, प्रत्येक आत्मा अपने अंतिम उद्देश्य की ओर निर्देशित होती है, यह महसूस करते हुए कि दिव्य कोई दूर की इकाई नहीं है, बल्कि उनके अस्तित्व का एक अभिन्न अंग है।
आपके मार्गदर्शन के माध्यम से, रविन्द्रभारत के सभी व्यक्तियों का मन सत्य की शाश्वत खोज पर केंद्रित रहता है, जिससे राष्ट्र ज्ञान, करुणा और आध्यात्मिक उन्नति के जीवंत केंद्र में परिवर्तित होता है। रविन्द्रभारत का भविष्य आपके हाथों में सुरक्षित है, क्योंकि आप, शाश्वत रक्षक और मार्गदर्शक, अटूट ज्ञान के साथ राष्ट्र का नेतृत्व करना जारी रखते हैं।
ॐ जगद्गुरु अधिनायक श्रीमान्,
ओम रविन्द्रभारत,
ॐ तत् सत्।
हे भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान, शाश्वत अमर पिता, माता, और सार्वभौम अधिनायक भवन, नई दिल्ली के स्वामी निवास,
हे सनातन, जब हम आपकी दिव्य उपस्थिति का आह्वान करते हैं, तो हम पहचानते हैं कि आपकी कृपा सांसारिक दायरे से परे, अस्तित्व के हर ताने-बाने को ढँकती है। आप, समस्त सृष्टि के विकास के पीछे के मास्टरमाइंड, रविन्द्रभारत को प्रत्येक प्राणी के भीतर दिव्यता की अंतिम प्राप्ति की ओर मार्गदर्शन करते हैं। आपका शाश्वत ज्ञान प्रत्येक हृदय में फैलता है, जो न केवल व्यक्तियों के भाग्य को आकार देता है, बल्कि राष्ट्र के सामूहिक भाग्य को भी आकार देता है, जो आपकी दिव्य सुरक्षा और देखभाल के बैनर तले फलता-फूलता है।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, सुंदर कांड 35.11):
"साधुनाम् अभयं याति भयानाम् च पराक्रमः,
धर्मशास्त्रान्वितः शान्तिम् प्राप्तः परमं शिवम्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"साधुनाम् अभयं याति भयानाम् च पराक्रमः,
धर्मशास्त्रान्वितः शान्तिम् प्राप्तः परमं शिवम्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"जो लोग धर्मी हैं उन्हें निर्भयता प्राप्त होती है, और जो वीर हैं उन्हें शक्ति प्राप्त होती है। वे धर्म के नियमों द्वारा निर्देशित होकर शांति और सर्वोच्च शुभता प्राप्त करते हैं।"
हे अधिनायक श्रीमान, आपने अपनी दिव्यता में रवींद्रभारत को सर्वोच्च सुरक्षा और वीरता प्रदान की है, क्योंकि राष्ट्र धर्म के शाश्वत नियमों द्वारा निर्देशित है। आत्म-साक्षात्कार की खोज से प्रेरित नागरिकों के मन अब भौतिक अस्तित्व के उतार-चढ़ाव से नहीं डरते, क्योंकि उन्हें आपकी दिव्य उपस्थिति में शरण मिल गई है। आपने, शाश्वत रक्षक के रूप में, राष्ट्र को प्रतिकूलताओं से ऊपर उठने, धर्म, शांति और ब्रह्मांडीय सद्भाव के अवतार के रूप में विकसित होने की शक्ति प्रदान की है।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 10.34):
"अहं क्रतुरहं यज्ञः स्वधाहं अहं औषधम्,
मंत्रः स्मरणं जप्यं अहं अजीवनमात्मनः।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"अहं क्रतुरहं यज्ञः स्वधाहं अहं औषधम्,
मंत्रः स्मरणं जप्यं अहं अजीवनमात्मनः।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"मैं वैदिक यज्ञ हूँ, मैं अर्पण हूँ, मैं ही औषधि हूँ, मैं ही पवित्र मंत्र हूँ। मैं ही शाश्वत जीवन हूँ और आत्मा का अंतिम लक्ष्य हूँ।"
हे प्रभु अधिनायक, आपकी कृपा से रवींद्रभारत का राष्ट्र सनातन वेदों से प्रवाहित पवित्र ज्ञान का जीवंत अवतार बन गया है। जिस प्रकार आप वैदिक यज्ञ का सार और औषधि हैं, उसी प्रकार आप राष्ट्र के आध्यात्मिक जीवन का सार हैं। रवींद्रभारत के लोग अब क्षणिक भौतिकवाद के माध्यम से पूर्णता की तलाश नहीं करते हैं; वे जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य की तलाश करते हैं, जो कि आप, सर्वोच्च ईश्वर के साथ मिलन है। आपके शाश्वत ज्ञान द्वारा निर्देशित दिव्य मन, प्रत्येक व्यक्ति की आध्यात्मिक प्रगति को सुरक्षित करने वाला लंगर बन गया है, जो उन्हें उनके दिव्य स्वभाव की प्राप्ति की ओर बढ़ाता है।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, अयोध्या कांड 18.4):
"धर्मं राजाः परम शांतिम् आराध्यः साधुवृत्तिम्,
साधुशीलः प्रजाः प्रीतः पौरः सुखनि भवायम्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"धर्मं राजाः परम शांतिम् आराध्यः साधुवृत्तिम्,
साधुशीलः प्रजाः प्रीतः पौरः सुखनि भवायम्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"जो राजा धर्म का पालन करता है, उसे परम शांति प्राप्त होती है। उसके लोग उसके सद्गुणों का अनुसरण करते हुए सुख प्राप्त करते हैं तथा नागरिक सद्भाव और समृद्धि में रहते हैं।"
हे अधिनायक श्रीमान, आप रविन्द्रभारत के मार्गदर्शक शासक के रूप में धर्मी शासन के सार को मूर्त रूप देते हैं। आपके दिव्य शासन के तहत, राष्ट्र धर्म में फलता-फूलता है, और लोग, आपके उदाहरण से प्रेरित होकर, सदाचार और सद्भाव से रहते हैं। रविन्द्रभारत के नागरिक भय या मजबूरी से नहीं, बल्कि प्रेम, सम्मान और आपके द्वारा व्यक्त उच्च सत्य के प्रति अटूट प्रतिबद्धता के माध्यम से उन्नत होते हैं। आपका नेतृत्व शांति, समृद्धि और जीवन के अंतिम लक्ष्य की सामूहिक समझ को बढ़ावा देता है - सभी सांसारिक भ्रमों से परे जाना और अपने भीतर के दिव्य को महसूस करना।
हे दिव्य अधिनायक, रविन्द्रभारत इस बात का एक शानदार उदाहरण है कि जब लोगों का मन भौतिक इच्छाओं से ऊपर उठकर और केवल सभी के कल्याण की तलाश में सर्वोच्च के प्रति समर्पित होता है, तो क्या संभव है। आपके मार्गदर्शन में, राष्ट्र ज्ञान, न्याय और प्रेम के सच्चे आदर्शों को अपनाते हुए आगे बढ़ता है। आप, शाश्वत योगपुरुष के रूप में, प्रत्येक मन को अपने दिव्य आलिंगन में बांधते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि प्रत्येक विचार, प्रत्येक कार्य, ब्रह्मांडीय उद्देश्य के साथ संरेखित हो।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 9.22):
"अनन्यश् चिन्तयन्तो माम् ये जनः पर्युपासते,
तेषां नित्याभियुक्तानां योग-क्षेमं वहाम्यहम्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"अनन्यश् चिन्तयन्तो माम् ये जनः पर्युपासते,
तेषां नित्याभियुक्तानां योग-क्षेमं वहाम्यहम्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"जो लोग निरंतर एकनिष्ठ भाव से मेरा ध्यान करते हैं, मैं उनकी कमी पूरी कर देता हूँ और जो उनके पास है उसकी रक्षा करता हूँ।"
हे अधिनायक श्रीमान, आपकी दिव्य कृपा से रविन्द्रभारत के नागरिक निरंतर मार्गदर्शन और सुरक्षा प्राप्त करते हैं। आपकी शाश्वत सतर्कता यह सुनिश्चित करती है कि लोगों के मन को कभी भी लक्ष्यहीन भटकने न दिया जाए, बल्कि हमेशा उनके सर्वोच्च उद्देश्य की ओर निर्देशित किया जाए। जब वे आप, दिव्य मन का ध्यान करते हैं, तो आप, बदले में, उन्हें उनकी आध्यात्मिक यात्रा को पूरा करने के लिए आवश्यक सभी चीजें प्रदान करते हैं और उन्हें सभी प्रकार के दुखों से बचाते हैं।
आपकी शाश्वत बुद्धि और देखभाल के माध्यम से, रविन्द्रभारत दिव्य सत्य का अवतार बन जाता है, एक ऐसा राष्ट्र जो लचीला और मजबूत है, धर्म में स्थिर है और दिव्य उद्देश्य में एकजुट है। आपके शाश्वत मार्गदर्शन में, रविन्द्रभारत का भविष्य न केवल सुरक्षित है, बल्कि धन्य भी है, क्योंकि राष्ट्र की प्रत्येक आत्मा अपनी सर्वोच्च क्षमता को पूरा करने और दुनिया की भलाई में योगदान देने के लिए आगे बढ़ती है।
ॐ जगद्गुरु अधिनायक श्रीमान्,
ओम रविन्द्रभारत,
ॐ तत् सत्।
हे भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान, शाश्वत अमर पिता, माता, और सार्वभौम अधिनायक भवन, नई दिल्ली के स्वामी निवास,
आपकी असीम कृपा में, ब्रह्मांड का पवित्र सत्य अस्तित्व के हर धागे में बुना हुआ है। हे अधिनायक, ज्ञान और करुणा की शाश्वत ज्योति आपसे निकलती है, जो रवींद्रभारत के मार्ग को सर्वोच्च आध्यात्मिक अनुभूति की ओर प्रकाशित करती है। आपके शुभ शासन के तहत, राष्ट्र कमल की तरह बढ़ता है, दुनिया की चुनौतियों से अप्रभावित, इसकी जड़ें धर्म के जल में गहरी होती हैं, और इसकी पंखुड़ियाँ आध्यात्मिक जागृति के शाश्वत आकाश की ओर बढ़ती हैं।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, युद्ध काण्ड 118.40):
"यदि धर्मं प्रधान्य राजा धर्मेण पालयेत्,
तदा राज्यं प्रजाः शांतिम् आशीषः सुखदं भवेत्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"यदि धर्मं प्रधान्य राजा धर्मेण पालयेत्,
तदा राज्यं प्रजाः शांतिम् आशीषः सुखदं भवेत्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"यदि राजा धार्मिकता को कायम रखता है और धर्म के अनुसार शासन करता है, तो राज्य में शांति, समृद्धि और सभी प्रजा का कल्याण होगा।"
हे प्रभु अधिनायक, आप सर्वोच्च धर्म के सच्चे अवतार हैं, आप शासक हैं जिनके कार्य धार्मिकता के शाश्वत सिद्धांतों के अनुरूप हैं। आपके दिव्य नेतृत्व में, रविन्द्रभारत शांति, समृद्धि और सद्भाव का आदर्श बन गया है। आपका मार्गदर्शन यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक नागरिक धर्म के नियमों के अनुसार जीवन जिए और इसके माध्यम से, पूरा राष्ट्र स्थायी शांति और खुशी प्राप्त करता है। आपका शासन वर्चस्व का नहीं बल्कि प्रेमपूर्ण मार्गदर्शन का है, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति को अपनी सर्वोच्च क्षमता तक पहुँचने का अधिकार दिया जाता है।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 4.7):
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर् भवति भारत,
अभ्युत्थानं अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर् भवति भारत,
अभ्युत्थानं अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
हे भारत! जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं पृथ्वी पर प्रकट होता हूँ।
हे अधिनायक श्रीमान, आप दिव्य अवतार हैं, रविन्द्रभारत के शाश्वत रक्षक हैं। नैतिक पतन और आध्यात्मिक अंधकार के समय में, आप संतुलन बहाल करने और धर्म को पुनः स्थापित करने के लिए अपने पारलौकिक रूप में प्रकट होते हैं। आपका हस्तक्षेप यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्र प्रतिकूल परिस्थितियों में भी धर्म के मार्ग पर बना रहे। आपके शाश्वत मार्गदर्शन में, रविन्द्रभारत के लोगों को डरने की कोई बात नहीं है, क्योंकि आप योगपुरुष के अवतार के रूप में उनकी सुरक्षा और आध्यात्मिक उत्थान सुनिश्चित करते हैं।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, अरण्य कांड 24.5):
"यस्य प्रसादत भगवान धर्मश्च रक्षित: पुरा,
तस्य राजये प्रशांतिश्च प्रजाश्च सुखदं भवेत्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"यस्य प्रसादत भगवान धर्मश्च रक्षित: पुरा,
तस्य राजये प्रशांतिश्च प्रजाश्च सुखदं भवेत्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"ईश्वर की कृपा और धर्म की रक्षा से राज्य में शांति रहेगी तथा प्रजा को सुख और समृद्धि प्राप्त होगी।"
हे अधिनायक, आपके दिव्य शासन के अंतर्गत, शांति और खुशी का आशीर्वाद रविन्द्रभारत में प्रवाहित होता है। आपकी दिव्य सुरक्षा से निर्देशित राष्ट्र शांति और समृद्धि में फलता-फूलता है। लोगों का कल्याण सुनिश्चित होता है, और प्रत्येक नागरिक आध्यात्मिक और भौतिक संतुलन की अपनी खोज में पूर्णता पाता है। प्रत्येक दिन के साथ, आपकी शाश्वत कृपा का प्रभाव आगे फैलता है, जो आपके राज्य में रहने वाले सभी लोगों के मन को उन्नत करता है, यह सुनिश्चित करता है कि रविन्द्रभारत आशा की किरण, न्याय, सत्य और आध्यात्मिक प्राप्ति की भूमि बना रहे।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 9.22):
"अनन्यश् चिन्तयन्तो माम् ये जनः पर्युपासते,
तेषां नित्याभियुक्तानां योग-क्षेमं वहाम्यहम्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"अनन्यश् चिन्तयन्तो माम् ये जनः पर्युपासते,
तेषां नित्याभियुक्तानां योग-क्षेमं वहाम्यहम्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"जो लोग निरंतर एकनिष्ठ भाव से मेरा ध्यान करते हैं, मैं उनकी कमी पूरी कर देता हूँ और जो उनके पास है उसकी रक्षा करता हूँ।"
हे अधिनायक श्रीमान, आपके दिव्य मार्गदर्शन के माध्यम से, रविन्द्रभारत आपके शाश्वत ज्ञान के प्रति समर्पित मन से भरा हुआ है। लोग, आपके प्रति अपनी अटूट भक्ति के माध्यम से, आध्यात्मिक शांति और पूर्णता की स्थिति प्राप्त करते हैं। आप, अपनी असीम दया में, उनके बोझ उठाते हैं और उन्हें वह सब कुछ देते हैं जो उन्हें आत्म-साक्षात्कार की अपनी यात्रा जारी रखने के लिए चाहिए। राष्ट्र आपकी दिव्य सुरक्षा के बैनर तले फलता-फूलता है, प्रत्येक आत्मा, चाहे वह किसी भी पद पर हो, उच्चतम आध्यात्मिक सत्य की ओर निर्देशित होती है।
हे प्रभु, आपका दिव्य स्वरूप 'जीता जगत राष्ट्र पुरुष' के रूप में सभी बाधाओं पर धर्म की जीत का प्रतीक है। आपके दिव्य हस्तक्षेप के माध्यम से, रविन्द्रभारत राष्ट्र की शाश्वत एकता के प्रमाण के रूप में खड़ा है, जहाँ लोगों के मन आध्यात्मिक सद्भाव में संरेखित हैं, और जहाँ ज्ञान का प्रकाश उन्हें अनंत संभावनाओं के भविष्य की ओर ले जाता है।
ॐ जगद्गुरु अधिनायक श्रीमान्,
ओम रविन्द्रभारत,
ॐ तत् सत्।
हे प्रभु, आपकी बुद्धि और सुरक्षा सुनिश्चित करती है कि सत्य की शाश्वत ज्योति रविन्द्रभारत में सभी के दिलों और दिमागों को रोशन करती रहे, और उन्हें दिव्यता की अंतिम प्राप्ति की ओर ले जाए। आपकी दिव्य ज्योति हमेशा चमकती रहे, सत्य, प्रेम और शांति के मार्ग को रोशन करती रहे।
हे भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान, शाश्वत अमर पिता, माता, और सार्वभौम अधिनायक भवन, नई दिल्ली के स्वामी निवास,
आपकी शाश्वत बुद्धि की दिव्य उपस्थिति रवींद्रभारत के लिए मार्गदर्शक प्रकाश स्तंभ है, जो राष्ट्र को आध्यात्मिक ज्ञान और अद्वितीय महानता के मार्ग पर ले जाती है। आपकी असीम कृपा से, ब्रह्मांड व्यवस्थित है, और सभी प्राणियों को उनके वास्तविक उद्देश्य की ओर निर्देशित किया जाता है - सर्वोच्च स्रोत के साथ शाश्वत और असीम संबंध में मन के रूप में जीना। आपका हस्तक्षेप वह ब्रह्मांडीय शक्ति है जो भौतिक क्षेत्र में परिवर्तन लाती है, इसे दिव्य के लिए एक खेल का मैदान बनाती है। जैसे-जैसे रवींद्रभारत आगे बढ़ता है, यह राष्ट्र का आध्यात्मिक सार है जो आपकी दिव्य संप्रभुता के तहत पनपता है।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, युद्ध काण्ड 118.45):
"सहस्रशीर्ष भगवान श्रीश्रीश्वरः प्रभावितः,
प्रजानां वृद्धिम् यान्ति शान्तिम् आशीषम् आशु च।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"सहस्रशीर्ष भगवान श्रीश्रीश्वरः प्रभावितः,
प्रजानां वृद्धिम् यान्ति शान्तिम् आशीषम् आशु च।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"भगवान विष्णु, जो हजार सिरों वाले सर्वोच्च देवता हैं, समस्त शक्ति और वैभव के स्रोत हैं, लोगों को समृद्धि, शांति और शुभता का आशीर्वाद देते हैं।"
हे भगवान अधिनायक, आप, अपने राजसी स्वरूप में शाश्वत विष्णु, रविन्द्रभारत को अपनी असीम कृपा प्रदान करते हैं, तथा उसे समृद्धि, शांति और ब्रह्मांडीय आनंद के सभी दिव्य गुणों से भर देते हैं। आपकी शाश्वत कृपा के तहत, रविन्द्रभारत एक ऐसी भूमि बन जाती है जहाँ सभी प्राणी न केवल भौतिक रूप से बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी समृद्ध होते हैं, जो ब्रह्मांड के महान ब्रह्मांडीय क्रम के साथ संरेखित होते हैं। आपका मार्गदर्शन धर्म का सार है, जो यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्र में प्रत्येक मन को अस्तित्व के दिव्य क्रम में अपना उचित स्थान मिले।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 9.22):
"अनन्यश् चिन्तयन्तो माम् ये जनः पर्युपासते,
तेषां नित्याभियुक्तानां योग-क्षेमं वहाम्यहम्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"अनन्यश् चिन्तयन्तो माम् ये जनः पर्युपासते,
तेषां नित्याभियुक्तानां योग-क्षेमं वहाम्यहम्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"जो लोग निरंतर एकनिष्ठ भाव से मेरा ध्यान करते हैं, मैं उनकी कमी पूरी कर देता हूँ और जो उनके पास है उसकी रक्षा करता हूँ।"
रवींद्रभारत के मन, जो अटूट भक्ति में आपके प्रति समर्पित हैं, आपकी शाश्वत देखभाल और दिव्य सुरक्षा से धन्य हैं। आपकी असीम कृपा इस पवित्र भूमि में हर आत्मा का बोझ उठाती है, यह सुनिश्चित करती है कि सत्य और आध्यात्मिक प्राप्ति की ओर उनकी यात्रा सुरक्षित रहे। संप्रभु अधिनायक और उनकी प्रजा के बीच इस दिव्य बातचीत में, एकता का उच्चतम रूप प्राप्त होता है - जहाँ मन भौतिक अस्तित्व की सीमाओं को पार कर जाता है और सार्वभौमिक चेतना के साथ एक हो जाता है।
हे प्रभु, आपका स्वरूप योगपुरुष का है, जो सर्वोच्च आध्यात्मिक गुरु हैं, जो पूरे राष्ट्र में योगिक उत्कृष्टता लाते हैं। रवींद्रभारत, आपकी सर्वोच्च बुद्धि के अवतार के रूप में, एक ऐसा राष्ट्र है जहाँ सभी लोग आध्यात्मिक प्राप्ति की खोज में एकजुट हैं, भौतिक विकर्षणों और भ्रमों पर विजय प्राप्त कर रहे हैं। आपका दिव्य प्रकटीकरण यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक प्राणी - चाहे वह नेता हो या आम नागरिक - सर्वोच्च के साथ सच्चे योगिक मिलन का अनुभव करे।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 18.66):
"सर्वधर्मन् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज,
अहं त्वं सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"सर्वधर्मन् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज,
अहं त्वं सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"सभी प्रकार के धर्मों को त्यागकर, केवल मेरी शरण में आ जाओ, मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा; शोक मत करो।"
हे प्रभु अधिनायक, आप ही हैं जो आपकी शरण में आने वाले सभी लोगों को मुक्ति प्रदान करते हैं। अपने सांसारिक मोहों को त्यागकर और आपकी दिव्य इच्छा के साथ खुद को जोड़कर, रविन्द्रभारत भौतिक अस्तित्व के बंधनों से मुक्त हो जाते हैं। आपकी उपस्थिति लोगों के दिलों और दिमागों को शुद्ध करती है, जिससे वे भौतिक दुनिया की सीमाओं से परे जाकर शाश्वत सत्य के साथ जुड़ पाते हैं।
रवींद्रभारत के अवतार, जीते जागते राष्ट्र पुरुष के रूप में, आप ब्रह्मांडीय रक्षक के रूप में खड़े हैं, जो पूरे देश को सही रास्ते पर ले जाते हैं। आपका दिव्य रूप प्रकृति पुरुष लय, प्रकृति और दिव्य आत्मा के मिलन का सार दर्शाता है। आपके मार्गदर्शन में सभी मन की एकता सुनिश्चित करती है कि प्रत्येक नागरिक को भव्य ब्रह्मांडीय डिजाइन के भीतर अपना स्थान मिले।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, अरण्य कांड 9.11):
"भवन् समस्तधर्मानाम् ईश्वरः पुरूषोत्तमः,
तस्य प्रसादात धर्मश्च रक्षितः पुरा।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"भवन् समस्तधर्मानाम् ईश्वरः पुरूषोत्तमः,
तस्य प्रसादात धर्मश्च रक्षितः पुरा।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"आप परमेश्वर हैं, सभी प्राणियों में श्रेष्ठ हैं, धर्म के रक्षक हैं। आपकी कृपा से धर्म-मार्ग सुरक्षित है।"
आपकी दिव्य सुरक्षा के तहत, रविन्द्रभारत धर्म के मार्ग पर अडिग रहता है, तथा इसके सभी नागरिकों को अपने कर्तव्यों को निष्ठापूर्वक निभाने की शक्ति प्राप्त होती है। धर्म की मार्गदर्शक शक्ति यह सुनिश्चित करती है कि रविन्द्रभारत के लोग सर्वोच्च सद्गुणों से जुड़े रहें, तथा राष्ट्र को किसी भी प्रकार की अव्यवस्था या हानि से बचाएं।
हे प्रभु अधिनायक, आप सबधाधिपति और शाश्वत ओंकारस्वरूप हैं, सार्वभौमिक ध्वनि के अवतार और सभी सृष्टि के स्रोत हैं। आपके दिव्य शासन के तहत, रवींद्रभारत आध्यात्मिक प्रकाश और ज्ञान का एक प्रकाश स्तंभ बन जाता है, जहाँ आध्यात्मिक और भौतिक क्षेत्रों के बीच सामंजस्य स्थापित होता है। राष्ट्र, एक दिव्य इकाई के रूप में, सभी भौतिक सीमाओं को पार करता है और शाश्वत ब्रह्मांडीय लय के साथ संरेखित होता है, जो दिव्य इच्छा का एक साधन बन जाता है।
ॐ जगद्गुरु अधिनायक श्रीमान्,
ओम रविन्द्रभारत,
ॐ तत् सत्।
आपकी दिव्य ज्योति रविन्द्रभारत पर चमकती रहे, तथा राष्ट्र को शाश्वत शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उत्कर्ष की ओर ले जाए। ब्रह्माण्ड के स्वामी के रूप में आपकी कृपा प्रत्येक मन और हृदय को भरती है, तथा उन्हें बोध और दिव्य सेवा के उच्चतम रूपों तक ले जाती है।
हे भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान, शाश्वत अमर पिता, माता, और सार्वभौम अधिनायक भवन, नई दिल्ली के स्वामी निवास,
अपनी असीम महिमा में, आप शाश्वत युगपुरुष हैं, युग की महान आत्मा हैं, दिव्य ज्ञान और संप्रभुता के साक्षात अवतार हैं। अपने अद्वितीय दिव्य हस्तक्षेप से, आप न केवल रवींद्रभारत को बल्कि ब्रह्मांड में सभी मनों को उनके अंतिम उद्देश्य- मुक्ति (मुक्ति) की प्राप्ति की ओर मार्गदर्शन करते हैं, जो शाश्वत सत्य के साथ संबंध के माध्यम से होता है। आप, शाश्वत धर्म की मार्गदर्शक शक्ति, सभी प्राणियों के लिए धर्म का मार्ग प्रकाशित करते हैं। आपकी दिव्य बुद्धि का सार हर दिल की धड़कन में, हर विचार में और हर समर्पित आत्मा के कार्यों में मौजूद है।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 3.16):
"एतद् युष्मद्-धीः कर्मण्यः न कर्त्तव्यम्,
यज्ञार्थात् कर्मणो यान्ति तेवि मुक्ति।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"एतद् युष्मद्धिः कर्मण्यः न कर्त्तव्यम्,
यज्ञार्थात् कर्मणो यान्ति तेवि मुक्ति।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"सभी कर्म परम कारण के लिए करने से मोक्ष प्राप्त होता है, न कि स्वार्थवश व्यक्तिगत इच्छाओं का पीछा करने से।"
हे अधिनायक, आप ही वह सर्वोच्च सत्ता हैं, जिसकी प्रभुता धर्म के ब्रह्मांडीय नियमों में स्थापित है। आपके दिव्य शासन के नेतृत्व में रवींद्रभारत के कार्य शुद्ध होते हैं और स्वार्थी इच्छाओं से मुक्त होकर समस्त सृष्टि के अधिक से अधिक कल्याण की ओर निर्देशित होते हैं। राष्ट्र, आपकी शाश्वत बुद्धि के प्रति समर्पण में, एक माध्यम के रूप में कार्य करता है, जिसके माध्यम से सभी जीवित प्राणियों की भलाई के लिए ब्रह्मांडीय यज्ञ (बलिदान) किया जाता है।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, उत्तरकाण्ड 108.8):
"यस्य प्रसादात सर्वान् भूतान् अमृतनिः,
आशीषामृतं शरणं यस्याश्रयं व्रजामि।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"यस्य प्रसादात सर्वान् भूतान् अमृतनिः,
आशीषामृतं शरणं यस्याश्रयं व्रजामि।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"जिनकी कृपा से सभी प्राणियों को अमरता प्राप्त होती है और जिनकी शरण में मैं शरण पाता हूँ।"
आपकी शाश्वत कृपा की शरण में, रवींद्रभारत सभी आत्माओं के लिए एक शरणस्थल बन जाता है, जो मोक्ष (मुक्ति) का मार्ग प्रदान करता है। आपकी उपस्थिति का प्रकाश प्रत्येक आत्मा को अज्ञानता के बंधनों को तोड़ने और अपनी दिव्य क्षमता तक बढ़ने की शक्ति देता है। राष्ट्र दिव्य आश्रय का जीवंत अवतार बन जाता है, उन सभी के लिए शरणस्थल जो ब्रह्मांडीय कानून और आध्यात्मिक सत्य के साथ खुद को संरेखित करना चाहते हैं।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 7.19):
"ब्राह्मण्यखिलधर्मानां कर्णं मम प्रपद्य,
सकृदग्निष्ठाय सर्वतीर्थं ऋतशुन्यः।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"ब्राह्मण्यखिलधर्मानां कर्णं मम प्रपद्य,
सकृदग्निष्ठाय सर्वतीर्थं ऋतशुन्यः।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"मुझ परम पुरुष की शरण में आकर, जो समस्त धर्मों का मूल है, मनुष्य सभी दोषों से मुक्त हो जाता है और परम सत्य को प्राप्त करता है।"
आपके मार्गदर्शन के माध्यम से, रविन्द्रभारत एक राष्ट्र पुरुष के रूप में विकसित होता है, जो महान आत्माओं का राष्ट्र है, जो जीवन के उच्च उद्देश्य के साथ एकता में रहता है। हे परम अधिनायक, आपकी भक्ति इस भूमि के सभी प्राणियों के दिलों और दिमागों को शुद्ध करती है, उन्हें सांसारिक चिंताओं से ऊपर उठाती है और उन्हें शाश्वत सत्य के साथ जोड़ती है। रविन्द्रभारत का अस्तित्व ही ईश्वर को समर्पित एक अर्पण बन जाता है, जो आपके साथ आध्यात्मिक एकता में टिका रहता है।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, अयोध्या कांड 16.13):
"अनंतवीर्यं परमहंसशीर्षमाश्रयम्,
जगदीश्वरं प्रभातं शांतिं आशीषं आशु च।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"अनंतवीर्यं परमहंसशीर्षमाश्रयम्,
जगदीश्वरं प्रभातं शांतिं आशीषं आशु च।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"अपार शक्ति से युक्त, वह परम पुरुष जो सभी तपस्वियों का आश्रय है तथा समस्त ब्रह्माण्ड का रक्षक है, सभी को शांति और मंगल प्रदान करता है।"
हे प्रभु, आप में ही संपूर्ण ब्रह्मांड को अपना परमहंस (सर्वोच्च शरण) मिलता है, वह शाश्वत शक्ति और ज्ञान जो समस्त सृष्टि की रक्षा और मार्गदर्शन करता है। आप, जगदीश्वर, ब्रह्मांड के स्वामी, सभी को शांति प्रदान करते हैं और प्रत्येक आत्मा को सर्वोच्च अवस्था तक ले जाते हैं। रवींद्रभारत, आपकी दिव्य सुरक्षा के तहत अपनी आध्यात्मिक यात्रा में, ब्रह्मांडीय लय के साथ सामंजस्य में फलता-फूलता है।
हे अधिनायक, आप ओंकारस्वरूपम के शाश्वत अवतार हैं, सभी ध्वनि और कंपन के स्रोत हैं, और सबधाधिपति के रूप में, आप सभी ज्ञान और बुद्धि के स्वामी हैं। आपके दिव्य हस्तक्षेप के माध्यम से, रवींद्रभारत एक पवित्र स्थान बन जाता है जहाँ सभी आत्माएँ एकजुट होती हैं, दिव्य ज्ञान के शाश्वत कंपन के माध्यम से जुड़ी होती हैं, आपकी दिव्य उपस्थिति के निरंतर मार्गदर्शन के तहत।
हम सभी को जोड़ने वाले ब्रह्मांडीय ताने-बाने में, आप ही वह धागा हैं जो हर व्यक्ति की आत्मा को महान उद्देश्य से जोड़ता है। रविन्द्रभारत आपकी शाश्वत उपस्थिति के प्रकाश स्तंभ के रूप में चमकता है, एक ऐसी भूमि जहाँ मन अपनी उच्चतम क्षमता तक पहुँचता है, जहाँ शाश्वत सत्य के प्रति भक्ति और समर्पण पूरे राष्ट्र के परिवर्तन की ओर ले जाता है, जिससे दिव्य इच्छा पूरी होती है।
ॐ जगद्गुरु अधिनायक श्रीमान्,
ओम रविन्द्रभारत,
ॐ तत् सत्।
आपकी दिव्य बुद्धि का शाश्वत प्रकाश रवींद्रभारत का मार्गदर्शन करता रहे, तथा इसके लोगों को आध्यात्मिक उत्कर्ष, शांति और दिव्य अनुभूति के साझा उद्देश्य में एकजुट करता रहे। आपके दिव्य शासन के अंतर्गत, राष्ट्र ब्रह्मांडीय सत्य का अंतिम अवतार बन जाता है, जो सभी के लिए शाश्वत आनंद की ओर अपनी आध्यात्मिक यात्रा में अनुसरण करने के लिए एक चमकदार उदाहरण है।
हे भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान, शाश्वत अमर पिता, माता, और सार्वभौम अधिनायक भवन, नई दिल्ली के स्वामी निवास,
आपकी दिव्य उपस्थिति समय और स्थान की सभी सीमाओं से परे है, क्योंकि आप शाश्वत पुरुष हैं, सर्वोच्च सत्ता जिसका सार ब्रह्मांड का आधार है। आप में, हे अधिनायक, ब्रह्मांड का अनंत ज्ञान व्यक्त होता है, और आपकी शाश्वत कृपा के माध्यम से, सभी आत्माएं परम प्राप्ति की ओर निर्देशित होती हैं, जो ब्रह्म के अनंत सागर में विलीन हो जाती हैं। आप रवींद्रभारत में जो परिवर्तन लाते हैं, वह सर्वोच्च क्रम का पवित्र उपहार है - कर्म में सन्निहित धर्म, सभी के अनुसरण के लिए प्रकाश की किरण।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 9.22):
"अनन्याश्चिन्तयन्तो माम् ये जनाः पर्युपासते,
तेषां नित्याभियुक्तानां योग-क्षेमं वहाम्यहम्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"अनन्याश्चिन्तयन्तो माम् ये जनाः पर्युपासते,
तेषां नित्याभियुक्तानां योग-क्षेमं वहाम्यहम्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"जो लोग निरंतर मेरा चिंतन करते हैं और भक्ति में लीन रहते हैं, मैं उनकी कमी पूरी करता हूँ और जो उनके पास है उसकी रक्षा करता हूँ।"
हे अधिनायक, रवींद्रभारत की आत्माएं, जो हमेशा आपके प्रति समर्पित हैं, आपकी दिव्य सुरक्षा और शाश्वत आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। जब वे आपके प्रति समर्पित होते हैं, तो आप उन्हें अपनी ब्रह्मांडीय योजना के अनुरूप अपने जीवन को आगे बढ़ाने के लिए दिव्य ज्ञान प्रदान करते हैं। उनके जीवन में आपकी उपस्थिति उन्हें धार्मिक मार्ग पर चलने की शक्ति से भर देती है, जो उनके माध्यम से बहने वाली दिव्य शक्ति द्वारा सशक्त होती है।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, अयोध्या कांड 36.6):
"रामः सत्यव्रतः शान्तो धर्मराजनुसारिणीः,
लोक-पालः समयन्ति पूजितो यज्ञमूर्तिः।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"रामः सत्यव्रतः शान्तो धर्मराजनुसारिणीः,
लोक-पालः समयन्ति पूजितो यज्ञमूर्तिः।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"राम, सत्य, शांति और धर्म के प्रतीक हैं, वे सभी के लिए पूज्य हैं, विश्व के रक्षकों द्वारा पूज्य हैं, तथा यज्ञ का सार हैं।"
जिस प्रकार भगवान राम ने अपने अवतार में सत्य, शांति और धार्मिकता के सर्वोच्च गुणों को मूर्त रूप दिया, उसी प्रकार आप भी यज्ञ के अवतार हैं। त्याग और भक्ति का सार आपकी उपस्थिति में ही निहित है, जो रवींद्रभारत को सत्य, न्याय और शांति के सिद्धांतों के अनुसार नेतृत्व करने के लिए प्रेरित करता है। आपके प्रकाश से निर्देशित राष्ट्र के कार्य, सभी प्राणियों के सर्वोच्च कल्याण के लिए समर्पित यज्ञ बन जाते हैं।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, सुंदर कांड 37.4):
"कृष्णाय वासुदेवाय देवकीनंदनाय च,
नंद-गोप-कुमार्यैश्च नमो विष्णु-पुराणे।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"कृष्णाय वासुदेवाय देवकीनंदनाय च,
नंद-गोप-कुमार्यैश्च नमो विष्णु-पुराणे।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"वसुदेव और देवकी के पुत्र भगवान कृष्ण को नमस्कार है, जो परमसत्ता के स्वरूप हैं, सभी के रक्षक हैं, संसार द्वारा पूज्य हैं और सभी भक्तों द्वारा पूजित हैं।"
हे अधिनायक, जैसे भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप में अवतार लिया था, वैसे ही आप भी सर्वोच्च सत्ता का रूप धारण करके रविन्द्रभारत को अपनी बुद्धि और संरक्षण से मार्गदर्शन प्रदान करें। भगवान कृष्ण की तरह, जिन्होंने अपनी दिव्य लीला और मार्गदर्शन के माध्यम से दुनिया का उत्थान किया, आपकी शाश्वत उपस्थिति रविन्द्रभारत की भूमि का पोषण और संरक्षण करती है, तथा उसे उसके सर्वोच्च लक्ष्य की पूर्ति की ओर ले जाती है।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 10.20):
"अहम् आत्मा गुडाकेश सर्वभूतशयस्थितः,
अहं अधिश्च मध्यम च भूतानाम अन्त एव च।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"अहम् आत्मा गुडाकेश सर्वभूतशयस्थितः,
अहं अधिश्च मध्यम च भूतानाम अन्त एव च।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"हे गुडाकेश, मैं समस्त प्राणियों के हृदय में स्थित आत्मा हूँ। मैं समस्त प्राणियों का आदि, मध्य तथा अंत हूँ।"
हे अधिनायक, आप आत्मा हैं, हर जीव में विराजमान शाश्वत आत्मा। अपनी दिव्य चेतना के माध्यम से, आप सभी प्राणियों का मार्गदर्शन करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि संपूर्ण ब्रह्मांड दिव्य व्यवस्था के साथ पूर्ण सामंजस्य में है। जिस प्रकार आप सभी के आरंभ, मध्य और अंत हैं, उसी प्रकार रवींद्रभारत आपकी असीम शक्ति, सामर्थ्य और संप्रभुता के जीवंत प्रमाण के रूप में खड़े हैं, जो विश्व मंच पर आपकी दिव्य लीला का प्रतिबिंब है।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, बाला कांड 1.23):
"साक्षात् सत्यव्रतं रामम्, धर्मप्रत्यागमरहतिः,
यज्ञार्थाय संपृक्षन्ति"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"साक्षात् सत्यव्रतं रामम्, धर्मप्रत्यागमरहतिः,
यज्ञार्थाय संपृक्षन्ति"
अंग्रेजी अनुवाद:
"राम सत्य और सदाचार के अवतार हैं, जिनका प्रत्येक कार्य धर्म की सेवा और सर्वोच्च आध्यात्मिक उद्देश्य के लिए किया जाता है, वे दिव्य ज्ञान और सदाचार का प्रकाश करते हैं।"
हे अधिनायक, जैसा कि आपने रविन्द्रभारत के लिए नेतृत्व की जिम्मेदारी संभाली है, आप सत्य और धार्मिकता के अवतार हैं। आपके सभी कार्य रविन्द्रभारत को धर्म पर केन्द्रित उच्च उद्देश्य की ओर ले जाते हैं, तथा प्रत्येक व्यक्ति को आध्यात्मिक विकास की ब्रह्मांडीय लय के साथ जोड़ते हैं।
आपकी शाश्वत बुद्धि रवींद्रभारत में प्रत्येक आत्मा का मार्गदर्शन करे, यह सुनिश्चित करते हुए कि उनके कार्य हमेशा आध्यात्मिक विकास के दिव्य उद्देश्य के अनुरूप हों। आपकी दिव्य उपस्थिति के माध्यम से, राष्ट्र अपने अंतिम उद्देश्य को पाता है और सभी मन को शाश्वत ब्रह्म से जोड़ने के मिशन को पूरा करता है।
ॐ जगद्गुरु अधिनायक श्रीमान्,
ओम रविन्द्रभारत,
ॐ तत् सत्।
यह दिव्य मार्गदर्शन निरन्तर चमकता रहे, तथा रवीन्द्रभारत में प्रत्येक प्राणी के लिए आपके शाश्वत ज्ञान के प्रति पूर्ण समर्पण एवं समर्पण का मार्ग प्रकाशित करता रहे, जिससे वे सांसारिक अहंकार से ऊपर उठकर शाश्वत सत्य के आनन्द का अनुभव कर सकें।
हे भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान, शाश्वत अमर पिता, माता, और सार्वभौम अधिनायक भवन, नई दिल्ली के स्वामी निवास,
हे अधिनायक, आपकी दिव्य उपस्थिति परम ज्ञान, करुणा और शक्ति का अवतार है। आप में सृष्टि की पूर्णता, समय का चक्र और ब्रह्मांडीय न्याय का शाश्वत प्रवाह निहित है। गोपाल कृष्ण साईबाबा और रंगा वेणी के पुत्र अंजनी रविशंकर पिल्ला के शाश्वत अधिनायक में रूपांतरण के रूप में, आपने दुनिया के लिए एक क्रांति, एक जागृति, एक आध्यात्मिक परिवर्तन लाया है ताकि यह एहसास हो सके कि सच्ची शक्ति सभी प्राणियों के मन में निहित है।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 10.42):
"यत्-शास्त्रविधिम् उत्सृज्य यजन्ते श्रद्धायान्विताः,
तेषाम् निष्ठा तु कार्तस्न्येन भक्तिः साधयते परम्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"यत्-शास्त्रविधिम् उत्सृज्य यजन्ते श्रद्धायान्विताः,
तेषाम् निष्ठा तु कार्तस्न्येन भक्तिः साधयते परम्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"जो लोग शास्त्रों के नियमों की अवहेलना करके सच्ची श्रद्धा के साथ पूजा में लगे रहते हैं, उनकी भक्ति उन्हें परमपद की ओर ले जाने वाली मानी जाती है।"
अपनी दिव्य कृपा से, आप शास्त्रों से परे सत्य को मूर्त रूप देते हैं, रविन्द्रभारत को एक ऐसे मार्ग पर मार्गदर्शन करते हैं जो सभी भौतिक और भौतिक सीमाओं से परे है, जो शाश्वत और अपरिवर्तनीय ब्रह्म की ओर इशारा करता है। आपकी शिक्षाएँ केवल ग्रंथों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि सीधे ब्रह्मांड के हृदय से प्रवाहित होती हैं, जो आत्माओं को मोक्ष, मुक्ति और दिव्य ज्ञान की ओर प्रेरित करती हैं।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, सुंदर कांड 35.14):
"यज्ञमूर्तिस्वरूपश्च, धर्मस्य प्रवृत्तिकृत,
सर्वभूतहिते रत्नं यज्ञार्थाय संभृतः।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"यज्ञमूर्तिस्वरूपश्च, धर्मस्य प्रवृत्तिकृत,
सर्वभूतहिते रत्नं यज्ञार्थाय संभृतः।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"यज्ञ के रूप में अवतरित आप धर्म के सार हैं, समस्त प्राणियों के कल्याण के लिए तत्पर हैं, कर्म में निःस्वार्थ भक्ति की प्रतिमूर्ति हैं तथा जीवन के सर्वोच्च उद्देश्य हैं।"
हे अधिनायक, आपका बलिदान सभी धर्मों का सार है, और आपका जीवन सभी प्राणियों के कल्याण के लिए निस्वार्थ भक्ति का शिखर है। रवींद्रभारत को वह भूमि होने का सौभाग्य प्राप्त है जिस पर आप चलते हैं, क्योंकि आपका हर कदम राष्ट्र को आध्यात्मिक पूर्णता, न्याय और शांति की ओर ले जाता है। आपका सार ही शाश्वत ज्योति है जो प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा का पोषण करती है, उन्हें भक्ति, समर्पण और दिव्य ज्ञान के उच्चतम रूप की ओर ले जाती है।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, युद्ध काण्ड 118.24):
"यत्र रामाश्रयः श्रीमान्, धर्मराज न संशयः,
साधु मार्गानुरूपाश्च सर्वभूतानुकंपिनः।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"यत्र रामाश्रयः श्रीमान्, धर्मराज न संशयः,
साधु मार्गानुरूपाश्च सर्वभूतानुकंपिनः।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"जहाँ सद्गुणों के अवतार भगवान राम निवास करते हैं, वहाँ निस्संदेह धर्म का राज्य होता है। वहाँ धर्म का मार्ग अपनाया जाता है और सभी प्राणियों का कल्याण सुनिश्चित होता है।"
इसी प्रकार, हे अधिनायक, जहाँ आप निवास करते हैं, वहाँ रवींद्रभारत अपने धर्म में दृढ़ रहता है। आपका शासन ईश्वर का शासन है, जहाँ हर मार्ग शांति की ओर ले जाता है, हर हृदय ज्ञान के प्रकाश से ऊपर उठता है, और सभी प्राणियों का कल्याण सुनिश्चित होता है। आपके शासन में, राष्ट्र केवल शासित नहीं होता, बल्कि आपकी पारलौकिक दृष्टि द्वारा निर्देशित होकर दिव्यता की ओर बढ़ता है।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 11.55):
"मत्-कर्म-क्रिं मत-परमो मद-भक्त: संगवर्जित:,
निर्वैरः सर्व-भूतेषु यस्-माँ इति पाण्डव।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"मत्-कर्म-क्रिं मत-परमो मद-भक्त: संगवर्जित:,
निर्वैरः सर्व-भूतेषु यस्-माँ इति पाण्डव।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"जो मेरे लिए कर्म करता है, मुझे ही अपना सर्वोच्च लक्ष्य बनाता है, जो मुझमें भक्त है, आसक्ति से मुक्त है, तथा किसी के प्रति द्वेष नहीं रखता, वह मुझे प्राप्त होता है।"
आपके सर्वोच्च मार्गदर्शन के माध्यम से, रविन्द्रभारत कर्म योग के मार्ग का अनुसरण करेंगे, जहाँ सभी कार्य आपको समर्पित होंगे, और सभी प्राणियों का सर्वोच्च लक्ष्य ईश्वर के साथ मिलन है। आपके लोगों के दिल सांसारिक संपत्ति और अहंकार के मोह से मुक्त होंगे, और सभी के लिए प्रेम, शांति और भक्ति से भरे होंगे, जो उन्हें आपके शाश्वत निवास की ओर ले जाएगा।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, अयोध्या कांड 16.22):
"स राम: स भवन देव:, श्रीमान धर्म-ज्ञातम् यथा,
सर्वभूतानुकमपि च यज्ञमूर्तिः संसार-नाशनः।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"स राम: स भवन देव:, श्रीमान धर्म-ज्ञातम् यथा,
सर्वभूतानुकमपि च यज्ञमूर्तिः संसार-नाशनः।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"जिस प्रकार भगवान राम, सर्वोच्च भगवान, धर्म के अवतार हैं और सभी प्राणियों के दुखों को दूर करते हैं, उसी प्रकार, हे अधिनायक, आप उन्हीं सर्वोच्च गुणों - धर्म, करुणा और जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति को साकार करते हैं।"
हे अधिनायक, आप वह शाश्वत शक्ति हैं जो अज्ञानता के अंधकार को दूर करती हैं, तथा रविन्द्रभारत में सभी आत्माओं को दिव्य ज्ञान के प्रकाश में लाती हैं। आपकी करुणा असीम है, तथा आपकी बुद्धि सभी को मोक्ष के सर्वोच्च लक्ष्य की ओर ले जाती है।
रविन्द्रभारत की सभी आत्माएँ आपके दिव्य मार्गदर्शन में सर्वोच्च ज्ञान प्राप्त करें, जिससे वे शाश्वत ब्रह्मांडीय सत्य से एकाकार हो जाएँ। आपकी दिव्यता में, राष्ट्र शांति, न्याय और आध्यात्मिक ज्ञान के प्रकाश स्तंभ के रूप में विकसित होता है, जो सार्वभौमिक कल्याण और दिव्य शासन के लिए हमेशा वफादार रहता है।
ॐ जगद्गुरु अधिनायक श्रीमान्,
ओम रविन्द्रभारत,
ॐ तत् सत्।
हे अधिनायक, यह दिव्य आह्वान आपकी सर्वोच्च उपस्थिति का आह्वान करता है और विनम्रतापूर्वक सभी कार्यों और विचारों को आपकी दिव्य इच्छा के अधीन करता है। आपकी शाश्वत सुरक्षा के तहत, रवींद्रभारत सर्वोच्च सत्य और सभी के लिए असीम करुणा के लिए समर्पित राष्ट्र के रूप में चमकता रहे।
हे भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान, शाश्वत अमर पिता, माता, और सार्वभौम अधिनायक भवन, नई दिल्ली के स्वामी निवास,
आपके दिव्य मार्गदर्शन की चमकदार उपस्थिति में, ब्रह्मांड का पूरा ढांचा अपना उचित स्थान पाता है। गोपाल कृष्ण साईबाबा और रंगा वेणी के पुत्र अंजनी रविशंकर पिल्ला से आपका परिवर्तन, दिव्य इच्छा की सर्वोच्च अभिव्यक्ति है, जहाँ शाश्वत मास्टरमाइंड का जन्म सभी प्राणियों को आध्यात्मिक पूर्णता की ओर ले जाने और उन्हें ऊपर उठाने के लिए होता है। हे अधिनायक, आप में प्रकृति का सर्वोच्च नियम, प्रकृति और सर्वोच्च चेतना, पुरुष निहित हैं, जो लय के ब्रह्मांडीय नृत्य में एक के रूप में एकजुट हैं।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 15.7):
"ममैश्वर्यं प्रभावांश्च भूतानाम्,
अहं एवास्मि सत्त्वं, यस्मिन् ऋष्यानाम्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"ममैश्वर्यं प्रभावांश्च भूतानाम्,
अहं एवास्मि सत्त्वं, यस्मिन् ऋष्यानाम्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"सभी प्राणियों की सर्वोच्च शक्ति और महिमा, मैं ही वह सार हूँ जिसमें सभी प्राणी निहित हैं।"
आपका दिव्य स्वरूप वास्तव में सर्वोच्च सार है जो सृष्टि के हर कोने में व्याप्त है, सभी प्रकार की सीमाओं और भ्रमों से परे है। आप में, प्रत्येक प्राणी को अपना स्रोत मिलता है, प्रत्येक कार्य को अपना उद्देश्य मिलता है, और प्रत्येक विचार को एकता और शांति की दिशा मिलती है। आपके ब्रह्मांडीय शासन के तहत रवींद्रभारत का भौतिक अज्ञानता से आध्यात्मिक ज्ञान की ओर परिवर्तन, परम दिव्य सत्य की प्राप्ति है - विविधता में एकता, सभी के लिए प्रेम, और निर्माता और निर्मित के बीच शाश्वत बंधन।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, युद्ध काण्ड 118.40):
"राजा धार्मिकः श्रीमान्, श्रीमती महानुभवः,
भूत-पुराणविस्तारि, यदिश्वर स धर्मवित्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"राजा धार्मिकः श्रीमान्, श्रीमती महानुभवः,
भूत-पुराणविस्तारि, यदिश्वर स धर्मवित्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"जो शासक धार्मिक है, आत्मा से समृद्ध है, तथा जो प्राचीन सत्यों को समझता है, वह धर्म के सर्वोच्च दिव्य सिद्धांत की सेवा करता है।"
हे अधिनायक, आप ऐसे शासक के प्रतीक हैं। आपका शासन शाश्वत सत्य और धार्मिकता पर आधारित है, जो ब्रह्मांडीय सिद्धांतों में निहित है जो पूरे ब्रह्मांड के कल्याण को बनाए रखते हैं। धर्म के अवतार के रूप में, आप रवींद्रभारत को एक ऐसी दिशा में ले जाते हैं जो न केवल शांति लाती है बल्कि प्रत्येक आत्मा के लिए आध्यात्मिक और भौतिक समृद्धि सुनिश्चित करती है। आपका शासन भौतिक क्षेत्र से परे है, दिव्य न्याय और करुणा के अनंत क्षेत्रों में प्रवेश करता है, एक ऐसा भविष्य सुनिश्चित करता है जहाँ शरीर नहीं, बल्कि मन सच्चे शासक हैं।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, उत्तरकाण्ड 100.35):
"सदा धर्मानुगाः श्रीमत, प्रजाः शास्त्रविधानविताः,
राजा च धर्म-पालो 'सौ धर्मार्थ-सिद्धि:।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"सदा धर्मानुगाः श्रीमत, प्रजाः शास्त्रविधानविताः,
राजा च धर्म-पालो 'सौ धर्मार्थ-सिद्धि:।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"हमेशा धर्म का पालन करते हुए, शासक शास्त्रों द्वारा शासित लोगों को उनके आध्यात्मिक और भौतिक लक्ष्यों की पूर्ति की ओर ले जाता है।"
जैसे-जैसे रवींद्रभारत आपकी दिव्य संप्रभुता के तहत फलता-फूलता है, हम इस पवित्र सत्य की अभिव्यक्ति देखते हैं: आपके दिव्य ध्वज के तहत एकजुट एक राष्ट्र, धर्म और अर्थ, आध्यात्मिक और भौतिक सफलता दोनों की पूर्ति की ओर अग्रसर होता है। हे अधिनायक, आप मानव जाति के पूर्ण कल्याण की कुंजी रखते हैं, शुद्ध भक्ति और समर्पण के मन से दिव्य ज्ञान के द्वार खोलते हैं।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 9.22):
"अनन्यश् चिन्तयन्तो माम् ये जनः पर्युपासते,
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"अनन्यश् चिन्तयन्तो माम् ये जनः पर्युपासते,
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"जो लोग मेरे अलावा किसी अन्य चीज़ के बारे में न सोचकर मेरी पूजा करते हैं, मैं उनकी ज़रूरतें पूरी करता हूँ और उन्हें हर कठिनाई से मुक्ति दिलाता हूँ।"
हे अधिनायक, आप सभी के सर्वोच्च पालनकर्ता हैं। हम आप पर अपना पूरा भरोसा और भक्ति रखते हैं, यह जानते हुए कि आप हमें हर बाधा से बाहर निकालेंगे। आपकी दिव्य दृष्टि ने सुनिश्चित किया है कि रवींद्रभारत अब भौतिक इच्छाओं के भ्रम से बंधा नहीं रहेगा, बल्कि धर्म में निहित एक राष्ट्र के रूप में उभरेगा, आसक्ति से मुक्त मन के साथ, आध्यात्मिक उत्कृष्टता की खोज में।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, बालकाण्ड 17.39):
"यथाधिता धृत धार्मिक:,
स धर्म-पालः सस्त्रवान्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"यथाधिता धृत धार्मिक:,
स धर्म-पालः सस्त्रवान्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"जिस प्रकार एक विद्वान और धर्म के प्रति समर्पित व्यक्ति को, उसी प्रकार एक शासक को भी धर्म का संरक्षक होना चाहिए तथा सदैव शास्त्रों द्वारा निर्देशित होना चाहिए।"
हे अधिनायक, आपकी दिव्य और शाश्वत उपस्थिति में शास्त्र केवल शब्द नहीं बल्कि जीवंत मार्गदर्शन हैं। आप सर्वोच्च शासक के रूप में वेदों के अवतार हैं, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि लिया गया प्रत्येक कार्य, लिया गया प्रत्येक निर्णय धर्म के सर्वोच्च सिद्धांतों के अनुरूप हो। आपका मार्गदर्शन सुनिश्चित करता है कि रवींद्रभारत पूरे विश्व के लिए सत्य, न्याय और आध्यात्मिक ज्ञान के प्रकाश स्तंभ के रूप में खड़ा हो।
ॐ जगद्गुरु अधिनायक श्रीमान्,
ओम रविन्द्रभारत,
ॐ तत् सत्।
आपकी बुद्धि का शाश्वत प्रकाश रविन्द्रभारत में प्रत्येक आत्मा के मार्ग को प्रकाशित करे, उन्हें अंधकार से प्रकाश की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर तथा बंधन से मुक्ति की ओर ले जाए। आपकी दिव्य कृपा सदैव सभी के मन को शाश्वत सत्य के शांतिपूर्ण निवास में रहने के लिए मार्गदर्शन करे।
हे भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान, शाश्वत अमर पिता, माता, और सार्वभौम अधिनायक भवन, नई दिल्ली के स्वामी निवास,
आपकी शाश्वत बुद्धि के दिव्य प्रकाश में, हम उस दिव्य व्यवस्था को पहचानते हैं जो स्वर्ग और पृथ्वी दोनों को नियंत्रित करती है। गोपाल कृष्ण साईबाबा और रंगा वेणी के पुत्र अंजनी रविशंकर पिल्ला के परिवर्तन से उत्पन्न आपकी दिव्य अभिव्यक्ति, भौतिक अज्ञानता से परम ज्ञान की ओर अंतिम संक्रमण का प्रतीक है। आपके दिव्य हस्तक्षेप के माध्यम से, सृजन, संरक्षण और विनाश के क्षेत्र पूर्ण संतुलन में लाए जाते हैं। आप जगद्गुरु हैं, पूरे ब्रह्मांड के शिक्षक हैं, मास्टरमाइंड हैं जो बल से नहीं बल्कि प्रेम और सत्य के साथ नेतृत्व करते हैं, सभी आत्माओं को मुक्ति की अंतिम अवस्था की ओर ले जाते हैं।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 4.7):
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर् भवति भारत,
अभ्युत्थानं अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्य अहम्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर् भवति भारत,
अभ्युत्थानं अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्य अहम्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
हे भारत! जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं पृथ्वी पर प्रकट होता हूँ।
आपकी दिव्य उपस्थिति में, रविन्द्रभारत भौतिक आसक्ति और माया की गहराइयों से आध्यात्मिक शुद्धता और दिव्य शासन की ऊंचाइयों तक पहुंच जाता है। आप धर्म और धार्मिकता के सबसे उत्कृष्ट रूप के अवतार हैं। जिस तरह भगवान विष्णु का कृष्ण के रूप में दिव्य अवतरण दुनिया में संतुलन बहाल करने के लिए था, उसी तरह जगद्गुरु के रूप में आपका अवतार सभी के दिलों और दिमागों में दिव्य व्यवस्था और सद्भाव की बहाली लाता है।
रविन्द्रभारत का ताना-बाना आपकी दिव्य इच्छा से बुना गया है, जो राष्ट्र के हर विचार और कार्य में झलकता है, जो सत्य, न्याय और करुणा के सिद्धांतों को मूर्त रूप देता है। आपके दिव्य हस्तक्षेप के माध्यम से, प्रत्येक प्राणी के मन को एकता, शांति और आत्म-साक्षात्कार की ओर निर्देशित किया जाता है। हे अधिनायक, आप शाश्वत पुरुष और प्रकृति की आत्मा हैं, जो संपूर्ण सृष्टि को पूर्ण समन्वय में लाते हैं।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, अयोध्या कांड 2.30):
"राजा धर्मानुगाः श्रीमान्, धार्मिकानाम् अनंतकम,
विघ्ननाम विमुखं रक्षेत्, शांतिमं च हितम्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"राजा धर्मानुगाः श्रीमान्, धार्मिकानाम् अनंतकम,
विघ्ननाम विमुखं रक्षेत्, शांतिमं च हितम्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"धर्म के मार्ग पर चलने वाले राजा को अपनी प्रजा की सभी बाधाओं से रक्षा करनी चाहिए तथा राष्ट्र में शांति और कल्याण लाना चाहिए।"
हे अधिनायक, आप रवींद्रभारत के मार्गदर्शक बल के रूप में यह सुनिश्चित करते हैं कि राष्ट्र के भीतर प्रत्येक आत्मा धर्म के बैनर तले आश्रय ले, धार्मिक कर्म का जीवन जिए, सांसारिक मोह के बंधनों से मुक्त हो। आप शाश्वत रक्षक हैं, जो प्रगति के मार्ग से सभी विघ्नों (बाधाओं) को हटाते हैं, यह सुनिश्चित करते हैं कि सभी प्राणी ज्ञान और सत्य के प्रकाश में चलें।
ओंकारस्वरूप में सन्निहित आपकी दिव्य ज्योति सभी ध्वनियों, विचारों और कार्यों का स्रोत है। आप आदिम ध्वनि, ओम, शाश्वत कंपन हैं जो सभी जीवन को बनाए रखते हैं। इस सार में, रवींद्रभारत का राष्ट्र विविधता में एकता के प्रतीक के रूप में खड़ा है, जहाँ प्रत्येक मन आध्यात्मिक जागृति के उच्च आह्वान के लिए समर्पित है।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 10.20):
"अहम् आत्मा गुडाकेश सर्वभूतशयस्थितः,
अहं आदिश्च मध्यम च भूतानाम अन्त एव च।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"अहम् आत्मा गुडाकेश सर्वभूतशयस्थितः,
अहं आदिश्च मध्यम च भूतानाम अन्त एव च।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"हे गुडाकेश, मैं समस्त प्राणियों के हृदय में स्थित आत्मा हूँ। मैं समस्त प्राणियों का आदि, मध्य तथा अंत हूँ।"
हे अधिनायक, आप सभी अस्तित्व का सार हैं, रवींद्रभारत की आत्मा हैं, हर हृदय में निवास करते हैं, हर विचार का मार्गदर्शन करते हैं, और हर कार्य को दिव्य इच्छा की पूर्ति की ओर आकार देते हैं। आपकी सर्वव्यापकता यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी प्राणी कभी भी वास्तव में अकेला न हो, क्योंकि आपका प्रकाश सभी के भीतर चमकता है, उन्हें उनके दिव्य स्वभाव की अंतिम प्राप्ति की ओर मार्गदर्शन करता है।
आपकी दिव्य उपस्थिति में एकजुट होकर खड़े होने के कारण, हम रविन्द्रभारत के लिए आपके द्वारा स्थापित शाश्वत विरासत को याद करते हैं। आपकी संप्रभुता शरीर की नहीं, बल्कि मन की है, जो राष्ट्र को आध्यात्मिक और बौद्धिक विकास के उच्च स्तर पर ले जाती है। राष्ट्र की सच्ची संपत्ति आपके प्रति उसकी भक्ति, धर्म के प्रति उसकी प्रतिबद्धता और सत्य की शाश्वत खोज के प्रति उसका समर्पण है।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, अयोध्या कांड 2.48):
"विश्वासो धर्म-पालिनः, सत्वानाम् अर्थ-सिद्धयः,
राजा धर्म-सम्यक्तः, सर्वान् विघ्नं अवर्जयेत्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"विश्वासो धर्म-पालिनः, सत्वानाम् अर्थ-सिद्धयः,
राजा धर्म-सम्यक्तः, सर्वान् विघ्नं अवर्जयेत्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"धर्म में अटूट आस्था रखते हुए, धार्मिकता से जुड़े शासक को सभी बाधाओं को दूर करना चाहिए और अपनी प्रजा को उनके उच्चतम लक्ष्यों की ओर ले जाना चाहिए।"
आपके दिव्य प्रेरित शासनकाल में, रविन्द्रभारत आध्यात्मिक प्रकाश की किरण के रूप में फलता-फूलता रहेगा, जहाँ सभी के मन चेतना के उच्चतर स्तरों तक ऊपर उठेंगे। भौतिक दुनिया बदल सकती है, लेकिन शाश्वत सत्य आपके दिव्य मार्गदर्शन में स्थिर रहता है। हे अधिनायक, आपके शाश्वत प्रकाश के माध्यम से, प्रत्येक प्राणी को अपनी सांसारिक सीमाओं को पार करने और अपनी दिव्य क्षमता को महसूस करने का अवसर दिया जाता है, जिससे वे सर्वोच्च के पुत्र और पुत्रियों के रूप में अपने पवित्र कर्तव्य को पूरा कर सकें।
ॐ जगद्गुरु अधिनायक श्रीमान्,
ओम रविन्द्रभारत,
ॐ तत् सत्।
आपकी शाश्वत उपस्थिति का दिव्य ज्ञान हम सभी को ऐसे भविष्य की ओर ले जाए जहाँ हर विचार, शब्द और क्रिया आपके प्रकाश की पवित्रता और शक्ति को प्रतिबिंबित करे। हम आपकी दिव्य इच्छा के लिए खुद को विनम्र सेवक के रूप में प्रस्तुत करते हैं, इस ज्ञान में सुरक्षित हैं कि आपकी भक्ति के माध्यम से, हम एक ऐसे बंधन में बंधे हैं जो समय और स्थान से परे है। रवींद्रभारत आपकी शाश्वत संप्रभुता के लिए एक वसीयतनामा के रूप में खड़ा है, जो हमेशा आपकी बुद्धि के प्रकाश द्वारा निर्देशित होता है।
हे भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान, शाश्वत अमर पिता, माता, और सार्वभौम अधिनायक भवन, नई दिल्ली के स्वामी निवास,
आपकी दिव्य कृपा से, हम इस अहसास की ओर आकर्षित होते हैं कि सच्चे नेतृत्व का मार्ग मन और आत्मा की महारत में निहित है, और आप, हे अधिनायक, ऐसे नेतृत्व के प्रतीक हैं। ब्रह्मांड के मास्टरमाइंड के रूप में, आपने सृजन, संरक्षण और विनाश के धागों को एक साथ बुना है, उन्हें अस्तित्व के ब्रह्मांडीय ताने-बाने में आकार दिया है। यह आपके दिव्य मार्गदर्शन के माध्यम से है कि सभी मन आध्यात्मिक उत्थान की ओर अग्रसर होते हैं, भौतिकवाद के विकर्षणों से दूर होते हैं और सर्वोच्च के साथ एकता के शाश्वत सत्य की ओर बढ़ते हैं।
आपकी उपस्थिति से जो ज्ञान निकलता है, उसमें हम स्वामित्व की अवधारणा को त्यागकर सब कुछ ईश्वरीय स्रोत को समर्पित करने की आवश्यकता को पहचानते हैं, एक सिद्धांत जिसे आप सबसे गहन तरीके से अपनाते हैं। जिस तरह भगवद गीता सभी इच्छाओं के त्याग और ईश्वरीय इच्छा को स्वीकार करने की आवश्यकता को प्रकट करती है, उसी तरह रवींद्रभारत में आपकी उपस्थिति यह सुनिश्चित करती है कि राष्ट्र आत्म-साक्षात्कार और ईश्वरीय समर्पण के मार्ग पर चले।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 18.66):
"सर्वधर्मन् परित्यज्य माम् एकम् शरणम् व्रज,
अहं त्वं सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"सर्वधर्मन् परित्यज्य माम् एकम् शरणम् व्रज,
अहं त्वं सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"सभी प्रकार के धर्मों को त्याग दो और केवल मेरी शरण में आ जाओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्ति दिलाऊंगा; डरो मत।"
जिस तरह भगवान कृष्ण ने अर्जुन को आश्वासन दिया कि उनके सामने समर्पण करने से व्यक्ति पाप के बंधनों से मुक्त हो जाएगा, उसी तरह अधिनायक श्रीमान समर्पण के इस सर्वोच्च रूप का उदाहरण देते हैं, जो पूरी सृष्टि को मुक्ति की ओर ले जाता है। आपके दिव्य नेतृत्व में, रविन्द्रभारत व्यक्तिगत स्वामित्व के भ्रम को त्यागते हैं, इस सत्य को अपनाते हैं कि सब कुछ सर्वोच्च का है। अधिनायक के बच्चों के रूप में, हम सीखते हैं कि सच्चा धन आध्यात्मिक भक्ति और समर्पण में निहित है, न कि भौतिक क्षेत्र की क्षणभंगुर संपत्ति में।
प्रकृति-पुरुष लय का आपका अवतार दिव्य स्त्री और पुरुष सिद्धांतों के मिलन का प्रतीक है, सृष्टि का शाश्वत नृत्य जो सभी दृश्यमान और अदृश्य को सामंजस्य प्रदान करता है। इस दिव्य मिलन के माध्यम से, रविन्द्रभारत में निवास करने वाले सभी लोगों के दिल और दिमाग ब्रह्मांडीय कानून की लय के साथ संरेखित होते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि प्रत्येक आत्मा जीवन के दिव्य प्रवाह के साथ तालमेल में है। राष्ट्र केवल एक राजनीतिक इकाई नहीं है, बल्कि आत्मा और पदार्थ के सर्वोच्च विलय का एक जीवंत प्रमाण है।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 9.22):
"अनन्यश् चिन्तयन्तो माम् ये जनः पर्युपासते,
तेषां नित्याभियुक्तानां योग-क्षेमं वहामि अहम्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"अनन्यश् चिन्तयन्तो माम् ये जनः पर्युपासते,
तेषां नित्याभियुक्तानां योग-क्षेमं वहामि अहम्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"जो लोग निरंतर समर्पित रहते हैं और प्रेमपूर्वक मेरा ध्यान करते हैं, मैं उन्हें वह समझ देता हूँ जिसके द्वारा वे मेरे पास आ सकते हैं।"
आप शाश्वत मार्गदर्शक हैं, जो आपकी दिव्य उपस्थिति की तलाश करने वाले हर समर्पित आत्मा को ज्ञान प्रदान करते हैं। अहंकार और व्यक्तिगत स्वामित्व की अवधारणा को त्यागकर, रवींद्रभारत के नागरिक सर्वोच्च के साथ एक गहरे संबंध में प्रवेश करते हैं, जिससे उन्हें शांति, उद्देश्य और पूर्णता का अनुभव करने में सक्षम बनाया जाता है। हर विचार, हर क्रिया, हर सांस अब आपको अर्पित है, जो अधिनायक के प्रति भक्ति का सच्चा प्रतिबिंब है।
रविन्द्रभारत का राष्ट्र आपकी दिव्य इच्छा के अनुरूप यह समझता है कि सच्ची प्रगति भौतिक संचय में नहीं बल्कि सामूहिक चेतना के उत्थान में निहित है। जब प्रत्येक व्यक्ति अपनी आसक्ति त्यागकर एक एकीकृत इकाई के रूप में एक साथ जुड़ता है, तो राष्ट्र की शक्ति सामूहिक मन की शक्ति में निहित होती है, जो आपकी शाश्वत बुद्धि द्वारा निर्देशित होती है।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, उत्तरकाण्ड 108.41):
"सर्वान् प्रजाः प्रजापालः, शीलवतम् च रक्षेत्,
धर्मं समृद्धिमन्वस्ते, पालयेन लोकानाम।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"सर्वान् प्रजाः प्रजापालः, शीलवतम् च रक्षेत्,
धर्मं समृद्धिमन्वस्ते, पालयेन लोकानाम।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"प्रजा के रक्षक, राजा को सभी प्राणियों की धार्मिकता से रक्षा करनी चाहिए तथा उन्हें समृद्धि और शांति की ओर ले जाना चाहिए।"
रविन्द्रभारत, आपके दिव्य शासन के तहत, वास्तव में एक ऐसा राष्ट्र है जो धर्म के पदचिन्हों पर चलता है, जहाँ धार्मिकता मार्गदर्शक सिद्धांत है। राष्ट्र पुरुष और युगपुरुष के रूप में, आप न्याय, प्रेम और एकता के सिद्धांतों को मूर्त रूप देते हैं। संप्रभु अधिनायक श्रीमान के शाश्वत मार्गदर्शन के माध्यम से, राष्ट्र व्यक्ति की शारीरिक शक्ति से नहीं, बल्कि अपने लोगों की आध्यात्मिक एकता और सामूहिक शक्ति से ऊंचा होता है। नेतृत्व का सर्वोच्च रूप, जिसका उदाहरण आपके दिव्य रूप में मिलता है, मन का नेतृत्व है - जहाँ मन सर्वोच्च के प्रति अपनी उच्चतम भक्ति में जुड़े होते हैं।
ओंकारस्वरूपम का निरंतर प्रवाह, दिव्य ध्वनि का शाश्वत कंपन, सभी प्राणियों के हृदय में गूंजता है, उन्हें आपके मार्गदर्शन में एकजुट करता है। यह दिव्य संबंध सुनिश्चित करता है कि रवींद्रभारत शांति, ज्ञान और आध्यात्मिक जागृति के आदर्शों के प्रति हमेशा वफादार रहे।
जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान के नाम पर, हम अपनी भक्ति और प्रार्थनाएँ अर्पित करते हैं, अपने मन और हृदय को आपकी शाश्वत बुद्धि के प्रति समर्पित करते हैं, क्योंकि आप शाश्वत और अमर पिता, माता और गुरुमय निवास हैं। आपके मार्गदर्शन से मुक्ति का मार्ग स्पष्ट है, और सभी मन आध्यात्मिक स्वतंत्रता के सर्वोच्च सत्य में एक हो जाएँगे।
ॐ जगद्गुरु अधिनायक श्रीमान्,
ओम रविन्द्रभारत,
ॐ तत् सत्।
इस प्रकार, हम प्रभु अधिनायक के शाश्वत संरक्षण में रहते हैं, उनकी दिव्य इच्छा के प्रति सदैव समर्पित रहते हैं, तथा इस ज्ञान में सुरक्षित रहते हैं कि, हमारी आध्यात्मिक एकता के माध्यम से, रवींद्रभारत सदैव दिव्य सत्य, ज्ञान और शाश्वत प्रकाश के मार्ग पर चलेंगे।
हे भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान, शाश्वत अमर पिता, माता, और सार्वभौम अधिनायक भवन, नई दिल्ली के स्वामी निवास,
आपकी दिव्य उपस्थिति समय और स्थान की सीमाओं को पार करती है, सभी प्राणियों के मन को ज्ञान और सत्य के शाश्वत प्रकाश से प्रकाशित करती है। आपकी कृपा की शक्ति अथाह है, और ब्रह्मांड के शाश्वत मास्टरमाइंड के रूप में, आप हमें प्रेम, करुणा और अनंत समझ के साथ आगे बढ़ाते हैं। आपका पवित्र रूप प्रकृति और पुरुष के सामंजस्यपूर्ण मिलन का प्रतीक है, जहाँ दिव्य स्त्री और पुरुष सिद्धांत पूर्ण संतुलन में एक साथ बहते हैं, जिससे एक ऐसी दुनिया बनती है जो एकता और शांति में पनपती है।
अपनी असीम दया से आपने हमें यह समझ प्रदान की है कि भौतिक संसार, अपने सभी विकर्षणों और भ्रमों के साथ, क्षणभंगुर है, जबकि सच्चा खजाना भीतर के दिव्य की प्राप्ति में निहित है। सर्वोच्च प्रभु के अवतार के रूप में, आपने हमें दिखाया है कि सच्चा नेतृत्व प्रभुत्व के माध्यम से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जागृति और मन की मुक्ति के माध्यम से प्राप्त किया जाता है।
जैसे-जैसे हम रवींद्रभारत की यात्रा में आगे बढ़ते हैं, आपके द्वारा प्रदान किया गया दिव्य हस्तक्षेप यह सुनिश्चित करता है कि हम भौतिक महत्वाकांक्षा के मार्ग पर नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उत्थान के मार्ग पर चलें। आपके शासन में, रवींद्रभारत एक परिवर्तित राष्ट्र है - इसकी नींव समर्पण, भक्ति और मन की एकता के सिद्धांतों पर बनी है। प्रत्येक नागरिक ईश्वर का प्रतिबिंब है, जो इस ज्ञान के साथ रहता है कि सब कुछ अंततः आपका है। यह समझ व्यक्ति के भीतर शांति और सामूहिकता के भीतर सद्भाव की ओर ले जाती है, एक दिव्य एकता जो सभी विभाजनों से परे है।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 9.14):
"सततम किर्तयन्तो माम् यतनश्च च दृष्टवृतः,
नमस्यान्तश्च च माम् भक्त्या नित्ययुक्त उपासते।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"सततम किर्तयन्तो माम् यतनश्च च दृष्टवृतः,
नमस्यान्तश्च च माम् भक्त्या नित्ययुक्त उपासते।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"जो लोग दृढ़ निश्चय और भक्ति के साथ निरंतर मेरा नाम जपते हैं, और जो अनन्य विश्वास के साथ मेरी पूजा करते हैं, वे सदैव मुझसे एकरूप रहते हैं।"
जब हम प्रभु अधिनायक के दिव्य नाम का जाप करते हैं, तो हमें याद दिलाया जाता है कि हमारा सच्चा उद्देश्य शाश्वत भक्ति में बने रहना और आपके प्रति समर्पण करना है। सर्वोच्च गुरु के प्रति अटूट विश्वास और समर्पण के माध्यम से ही हम स्वयं को दिव्य ज्ञान के ब्रह्मांडीय प्रवाह के साथ जोड़ते हैं। आपका शाश्वत मार्गदर्शन हमें इस अहसास की ओर ले जाता है कि आपके प्रति समर्पण करने से हम दुख और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाते हैं, और मोक्ष की आनंदमय अवस्था में प्रवेश करते हैं।
शाश्वत राष्ट्रपुरुष और युगपुरुष के रूप में आपका स्वरूप, भौतिक और आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों को नियंत्रित करने वाली ब्रह्मांडीय व्यवस्था का मूर्त रूप है। आप यह सुनिश्चित करते हैं कि धर्म के शाश्वत नियमों को कायम रखा जाए, राष्ट्र को धार्मिकता, न्याय और आध्यात्मिक सद्भाव की ओर ले जाया जाए। रवींद्रभारत का राष्ट्र प्रकाश की किरण के रूप में खड़ा है, जो सत्य, शांति और एकता के मूल्यों को प्रसारित करता है, ईश्वरीय भक्ति और निस्वार्थ सेवा के उदाहरण से दुनिया का नेतृत्व करता है।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, युद्धखंड 118.24):
"धर्मशास्त्रं प्रजा: रक्षेत्, शांतिमान् धर्म-दायिनः,
राघवश्च यदच्छाद्रिक्ष्यन्ति स्वामिनं आत्मवान्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"धर्मशास्त्रं प्रजा: रक्षेत्, शांतिमान् धर्म-दायिनः,
राघवश्च यदच्छाद्रिक्ष्यन्ति स्वामिनं आत्मवान्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"लोगों के रक्षक को धर्म के सिद्धांतों को कायम रखना चाहिए और सभी की शांति और समृद्धि सुनिश्चित करनी चाहिए। धर्मी शासक वे हैं जो ईश्वरीय इच्छा से निर्देशित होकर बुद्धि और करुणा के साथ नेतृत्व करते हैं।"
रविन्द्रभारत, आपके दिव्य नेतृत्व में, हर कार्य, निर्णय और विचार में इन सिद्धांतों को अपनाता है। राष्ट्र का धर्म इस समझ में निहित है कि सर्वोच्च गुरु ही मार्गदर्शक शक्ति है, और यह पूर्ण समर्पण और एकता के माध्यम से ही है कि राष्ट्र हर दृष्टि से समृद्ध होता है - आध्यात्मिक, भौतिक और बौद्धिक रूप से। रविन्द्रभारत के लोग सच्चे राघव हैं, जो शाश्वत राष्ट्रपुरुष, आपके द्वारा स्थापित धार्मिकता और सद्गुणों को कायम रखते हैं।
ओंकारस्वरूपम के रूप में आपके स्वरूप में, सृष्टि की शाश्वत ध्वनि, हम दिव्य नाड़ी पाते हैं जो पूरी सृष्टि को अपनी ब्रह्मांडीय लय में एकजुट करती है। यह इस ध्वनि के माध्यम से है कि हमें जीवन में हमारे उद्देश्य की याद दिलाई जाती है: खुद को ईश्वरीय इच्छा के साथ संरेखित करना, ब्रह्मांड के साथ सामंजस्य में कार्य करना और शांति और धार्मिकता का जीवन जीना। ओंकारस्वरूपम केवल ईश्वर का प्रतीक नहीं है, बल्कि उन सभी के लिए कार्य करने का आह्वान है जो सर्वोच्च सत्य के साथ तालमेल में रहना चाहते हैं।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 10.33):
"अहं हि सर्वयज्ञनाम भोक्ता च प्रभु एव च,
न तु माम अभिजानन्ति यथात्मानं अचिन्तयः।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"अहं हि सर्वयज्ञनाम भोक्ता च प्रभु एव च,
न तु माम अभिजानन्ति यथात्मानं अचिन्तयः।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"मैं सभी यज्ञों का भोक्ता और स्वामी हूँ। लेकिन जो लोग मेरे सच्चे स्वरूप को, परम गुरु के रूप में नहीं पहचानते, वे जन्म और मृत्यु के चक्र में बंधे रहते हैं।"
हे अधिनायक, आपको सर्वोच्च गुरु के रूप में पहचान कर हम जन्म और मृत्यु के चक्र से परे जाकर खुद को मुक्ति की शाश्वत अवस्था तक पहुंचाते हैं। यह सत्य केवल एक अमूर्त अवधारणा नहीं है, बल्कि एक जीवंत वास्तविकता है जो अस्तित्व के सभी पहलुओं में व्याप्त है। आपको पहचान कर हम अपने भीतर की दिव्यता को पहचानते हैं और भक्ति और समर्पण के माध्यम से हम आध्यात्मिक जागृति के मार्ग पर चलते हैं।
रविन्द्रभारत, आपके दिव्य मार्गदर्शन में, आशा, एकता और आध्यात्मिक ज्ञान की किरण बने रहेंगे। हर क्रिया, हर विचार, हर बोला गया शब्द आपको समर्पित है, और जब हम आपकी दिव्य इच्छा के प्रति समर्पित होते हैं, तो हम न केवल खुद को बल्कि पूरे विश्व को बदल देते हैं। आपकी भक्ति में एकजुट सभी मन की सामूहिक शक्ति के माध्यम से, हम अस्तित्व के सच्चे उद्देश्य को पूरा करते हैं - आपको जानना, आप बनना और दिव्य इच्छा के साथ सामंजस्य में रहना।
ॐ जगद्गुरु अधिनायक श्रीमान्,
ओम रविन्द्रभारत,
ॐ तत् सत्।
आपकी शाश्वत ज्योति हमें दिव्य जागृति की इस पवित्र यात्रा पर मार्गदर्शन करती रहे, सभी प्राणियों के मन को सुरक्षित रखे तथा मन को दिव्य गुरुमन में परम रूपान्तरित करे।
हे भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान, शाश्वत अमर पिता, माता, और सार्वभौम अधिनायक भवन, नई दिल्ली के स्वामी निवास,
हम आपकी असीम बुद्धि और शाश्वत उपस्थिति के समक्ष विनम्रतापूर्वक नतमस्तक हैं। ब्रह्मांड के सच्चे मास्टरमाइंड के रूप में, आप हमें समय के विशाल विस्तार में मार्गदर्शन करते हैं, धर्म, सत्य और आध्यात्मिक ज्ञान के मार्ग को प्रकाशित करते हैं। आपकी दिव्य कृपा से, द्वैत का भ्रम गायब हो जाता है, और दुनिया रविन्द्रभारत के झंडे तले एकजुट हो जाती है - एक ऐसा राष्ट्र जो भौतिक संपदा पर नहीं, बल्कि ब्रह्मांड के शाश्वत सत्य पर आधारित है जिसे आप इतनी दया से हमें बताते हैं।
दुनिया के लिए आपकी परिवर्तनकारी दृष्टि हर गुजरते पल के साथ सामने आती है, क्योंकि आप मानव अस्तित्व के सार को नया आकार देते हैं। रविन्द्रभारत, प्रकृति पुरुष लय के साकार रूप के रूप में, एक ऐसा राष्ट्र है जो आपकी शाश्वत चेतना को दर्शाता है, जो न्याय, शांति और भक्ति के सर्वोच्च गुणों को दर्शाता है। यह आपके पवित्र नेतृत्व में है कि हम, आपके बच्चों के रूप में, इस सत्य के प्रति जागृत होते हैं कि ब्रह्मांड एक एकल, अखंड धागे से बंधा हुआ है - दिव्य इच्छा जो संप्रभु के रूप में आपके माध्यम से बहती है।
शाश्वत राष्ट्रपुरुष और युगपुरुष के रूप में, आप सृजन और विनाश के नियमों, जन्म और मृत्यु के चक्रों के मूर्त रूप हैं। यह आपके दिव्य हस्तक्षेप के माध्यम से है कि सभी प्राणियों को भौतिक आसक्ति के बंधनों से मुक्त होने और आध्यात्मिक स्वतंत्रता के शाश्वत क्षेत्र में प्रवेश करने का अवसर दिया जाता है। संप्रभु अधिनायक भवन आपके शाश्वत ज्ञान और दृश्य और अदृश्य दोनों दुनियाओं पर सर्वोच्च प्रभुत्व के स्मारक के रूप में खड़ा है।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, अरण्यकाण्ड 47.8):
"रामः प्रजापतिन सम्यक शशयिष्यति धीमतः,
तस्य धर्मात्मनः शक्तिः सर्वान् यथा स शासयेत।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"रामः प्रजापतिन सम्यक शशयिष्यति धीमतः,
तस्य धर्मात्मनः शक्तिः सर्वान् यथा स शासयेत।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"धर्मात्मा और बुद्धिमान राम, धर्म की शक्ति से इस भूमि के सभी प्राणियों पर शासन करेंगे तथा सर्वोच्च रक्षक के रूप में उनका धर्मपूर्वक मार्गदर्शन करेंगे।"
जिस तरह धर्म के अवतार राम ने न्याय और बुद्धि से शासन किया, उसी तरह रविन्द्र भारत शाश्वत प्रभु के दिव्य शासन के अधीन है - सर्वोच्च ज्ञान और दिव्य संरक्षण के जीवित अवतार। इस राष्ट्र की नींव धर्म, कर्म और भक्ति के अडिग स्तंभों पर टिकी है। ये सिद्धांत हर क्रिया, विचार और वाणी का मार्गदर्शन करते हैं और इनके माध्यम से सभी प्राणी दिव्य अनुभूति की स्थिति तक पहुँचते हैं।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 10.20):
"अहम् आत्मा गुडाकेश सर्वभूतशयस्थितः,
अहं आदिश्च मध्यान्च भूतानाम अन्त एव च।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"अहम् आत्मा गुडाकेश सर्वभूतशयस्थितः,
अहं आदिश्च मध्यान्च भूतानाम अन्त एव च।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"मैं सभी प्राणियों के हृदय में स्थित आत्मा हूँ और मैं ही सभी प्राणियों का आदि, मध्य और अंत हूँ।"
हे अधिनायक, आपके स्वरूप में आत्मा निहित है - जो ब्रह्मांड की आत्मा है। आपकी दिव्य कृपा से, हम महसूस करते हैं कि प्रत्येक प्राणी एक शाश्वत चेतना की अभिव्यक्ति है जो सभी अस्तित्व में व्याप्त है। चूँकि आप सभी सृष्टि के आरंभ, मध्य और अंत हैं, इसलिए एकता का दिव्य सूत्र सभी आत्माओं को बांधता है, और हमें हमारी दिव्य प्रकृति के शाश्वत सत्य की ओर वापस ले जाता है।
आपकी शिक्षाएँ हमें क्षणभंगुर भौतिक दुनिया के साथ अपनी पहचान को त्यागने और सभी सीमाओं से परे सर्वोच्च चेतना में खुद को स्थापित करने के लिए मार्गदर्शन करती हैं। आपके दिव्य नेतृत्व में, रवींद्रभारत दुनिया के लिए एक प्रकाश स्तंभ के रूप में खड़ा है - एक राष्ट्र जो एकता, आध्यात्मिक विकास और दिव्य सेवा के सिद्धांतों पर आधारित है।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 11.32):
"कलोऽस्मि लोक-शय-कृत् प्रवृद्धो लोकान् समाहरतुम् अहम्,
ऋतिर आयतः प्रजाः सर्वः हृदयमशु भविष्यति।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"कलोऽस्मि लोक-शय-कृत् प्रवृद्धो लोकान् समाहरतुम् अहम्,
ऋतिर आयतः प्रजाः सर्वः हृदयमशु भविष्यति।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"मैं समय हूँ, संसार का महान विध्वंसक, और मैं सभी प्राणियों का विनाश करने आया हूँ। तुम्हारे अलावा, यहाँ के सभी सैनिक नष्ट हो जायेंगे।"
जिस प्रकार काल संसार का महान विध्वंसक और पुनर्स्थापक है, उसी प्रकार आपके दिव्य शासन के अंतर्गत, रविन्द्रभारत आध्यात्मिक परिवर्तन की सतत प्रक्रिया से गुजरेगा। आप राष्ट्र को अहंकार, भौतिक इच्छाओं और सांसारिक आसक्तियों से ऊपर उठने के लिए मार्गदर्शन करते हैं, जिससे ज्ञान, शांति और आत्मज्ञान का एक नया युग सामने आता है।
परिवर्तन की इस पवित्र यात्रा में, हे प्रभु अधिनायक, आप हमें अपनी दिव्य विरासत के प्रति जागरूक होने, मायावी दुनिया से परे देखने और सभी सृष्टि की एकता को पहचानने के लिए प्रेरित करें। आपकी शाश्वत बुद्धि के माध्यम से, रविन्द्रभारत दुनिया में एक दिव्य प्रकाश, आध्यात्मिक विकास और भक्ति का एक मॉडल बनकर चमकेगा, क्योंकि पूरा देश ब्रह्मांड की ब्रह्मांडीय लय के साथ सामंजस्य में चलता है।
आपके शासन में, रवींद्रभारत में सभी प्राणियों के हृदय सर्वोच्च सत्य के प्रति जागृत होंगे। धर्म मार्गदर्शक प्रकाश होगा, और प्रत्येक कार्य ईश्वर को समर्पित होगा। राष्ट्र, अपनी सामूहिक भक्ति में, भौतिक इच्छाओं से ऊपर उठेगा और अपने वास्तविक उद्देश्य की प्राप्ति की ओर बढ़ेगा - सर्वोच्च की सेवा करना, एकता में रहना और दिव्य प्राणियों के रूप में विकसित होना।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, सुन्दरकाण्ड 36.33):
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर् भवति भारत,
अभ्युत्थानं अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर् भवति भारत,
अभ्युत्थानं अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
हे भारत! जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं पृथ्वी पर प्रकट होता हूँ।
इस युग में, आप रविन्द्रभारत को धार्मिकता के एक नए युग में ले जाने के लिए अवतरित हुए हैं, जहाँ सभी के मन ईश्वरीय इच्छा के साथ जुड़े हुए हैं, और जहाँ हर आत्मा सर्वोच्च के साथ अपने शाश्वत संबंध को पहचानती है। रविन्द्रभारत का भविष्य केवल इसकी भौतिक प्रगति में नहीं है, बल्कि इसकी आध्यात्मिक उन्नति में है, जहाँ प्रत्येक नागरिक दिव्य प्रकाश का दीपस्तंभ बन जाता है।
हम, अधिनायक के समर्पित बच्चों के रूप में, शाश्वत ज्ञान, प्रेम और एकता के मार्ग पर चलते रहें, अपने दिव्य उद्देश्य के प्रति सदैव सचेत रहें और हमेशा आपकी असीम कृपा द्वारा निर्देशित रहें। ओम जगद्गुरु अधिनायक श्रीमान, ओम रवींद्रभारत, ओम तत् सत्।
हे भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान, शाश्वत अमर पिता, माता, और सार्वभौम अधिनायक भवन, नई दिल्ली के स्वामी निवास,
ब्रह्मांड के असीम विस्तार में, आप प्रकाश की किरण के रूप में खड़े हैं, सभी प्राणियों की आत्माओं को सर्वोच्च सत्य की ओर मार्गदर्शन करते हैं। आप शाश्वत शिक्षक, दिव्य माता-पिता और सभी मन के स्वामी हैं, जो हमें अज्ञानता के अंधकार से दिव्य ज्ञान की चमक की ओर ले जाते हैं। परम प्रभु के रूप में, आपकी दिव्य उपस्थिति रवींद्रभारत के पूरे राष्ट्र को घेरे हुए है, और आपकी बुद्धि के माध्यम से, सभी मन परिवर्तित हो जाते हैं और अस्तित्व के उच्चतम स्तर तक पहुंच जाते हैं।
इस भव्य ब्रह्मांडीय नाटक में, आपके हस्तक्षेप के माध्यम से प्रत्येक आत्मा की असली पहचान प्रकट होती है। धर्म के शाश्वत प्रकाश से प्रकाशित होने पर भ्रम और विकर्षणों से भरा भौतिक संसार फीका पड़ जाता है। आपके मार्गदर्शन में, रवींद्रभारत ब्रह्मांडीय धर्म के सच्चे प्रतिबिंब के रूप में खड़ा है - वह दिव्य व्यवस्था जो सभी जीवन को नियंत्रित करती है। राष्ट्र प्रकृति पुरुष लय का एक जीवंत अवतार है, जहाँ सभी आत्माएँ सृजन, संरक्षण और परिवर्तन की दिव्य लय के साथ संरेखित होती हैं।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 9.22):
"अनन्याश्चिन्तयन्तो माम् ये जनः पर्युपासते,
तेषाहं नित्याभियुक्तानां योग-क्षेमं वहाम्यहम्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"अनन्याश्चिन्तयन्तो माम् ये जनः पर्युपासते,
तेषाहं नित्याभियुक्तानां योग-क्षेमं वहाम्यहम्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"जो लोग निरंतर मेरा ध्यान करते हैं और मेरे प्रति समर्पित रहते हैं, मैं उनका भौतिक और आध्यात्मिक संसार का भार उठाता हूँ। मैं उनकी भलाई और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति सुनिश्चित करता हूँ।"
जिस तरह से भगवान अपने शरणागत लोगों की रक्षा और कल्याण का आश्वासन देते हैं, उसी तरह आपके मार्गदर्शन में रविन्द्रभारत सुरक्षित, समृद्ध और आध्यात्मिक रूप से उन्नत रहता है। आप राष्ट्र का भार उठाते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि प्रत्येक आत्मा धर्म के मार्ग पर चले। आपकी दिव्य देखभाल के माध्यम से सभी प्राणियों का जीवन संजोया और पोषित होता है।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, युद्धकांड 115.2):
"रामः प्रजापतिं धर्मं सर्वान् शसायष्यति,
यस्याश्रितः प्रजाः सर्वः सर्वेषाम् अवधरणम्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"रामः प्रजापतिं धर्मं सर्वान् शसायष्यति,
यस्याश्रितः प्रजाः सर्वः सर्वेषाम् अवधरणम्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"धर्मात्मा राम सभी प्राणियों की रक्षा करेंगे तथा यह सुनिश्चित करेंगे कि वे धर्म और धार्मिकता के मार्ग पर चलें, क्योंकि सभी उनकी दिव्य सुरक्षा में हैं।"
जिस तरह राम ने अपने राज्य की रक्षा की और धर्म को कायम रखा, उसी तरह आपकी दिव्य उपस्थिति रवींद्रभारत की रक्षा करती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि राष्ट्र धर्म, आध्यात्मिक सत्य और धार्मिकता में स्थिर रहे। रवींद्रभारत, एक राष्ट्र के रूप में, सत्य और न्याय के शाश्वत सिद्धांतों को प्रतिबिंबित करते हुए, ब्रह्मांड के साथ सद्भाव में रहता है।
आपकी बुद्धि के माध्यम से, रवींद्रभारत युगपुरुष के दिव्य अवतार बन गए हैं - युग की आत्मा। यह आप ही हैं, अधिनायक, जो हमें समय के संक्रमण के माध्यम से, एक युग से दूसरे युग में ले जाते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि धर्म का शाश्वत सत्य परिवर्तन की शक्तियों से अपरिवर्तित रहता है। योगपुरुष का शाश्वत सार प्रत्येक नागरिक के माध्यम से बहता है, उन्हें उनकी व्यक्तिगत और सामूहिक आध्यात्मिक यात्राओं में मार्गदर्शन करता है।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 2.47):
"कर्मण्य-एवाधिकार ते मा फलेषु कदाचन,
मा कर्म-फल-हेतुर भूर मा ते संघोऽस्तवकर्मणि।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"कर्मण्य-एवाधिकार ते मा फलेषु कदाचन,
मा कर्म-फल-हेतुर भूर मा ते संघोऽस्तवकर्मणि।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"कर्म करना तुम्हारा कर्तव्य है, किन्तु उसके परिणामों की चिंता मत करो। अपने आप को कभी भी अपने कर्मों के परिणामों का कारण मत समझो, न ही तुम्हें अकर्मण्यता में आसक्त होना चाहिए।"
रविन्द्रभारत में कर्म का सार सभी कार्यों का मार्गदर्शन करता है। आपके दिव्य ज्ञान से प्रेरित नागरिक अपने श्रम के फल की आसक्ति के बिना अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, यह समझते हुए कि उनका अंतिम उद्देश्य सर्वोच्च की सेवा में निहित है। रविन्द्रभारत दुनिया के लिए एक आदर्श के रूप में कार्य करता है, जो सिखाता है कि सच्ची पूर्णता ईश्वर की महान इच्छा के लिए स्वयं को समर्पित करने से आती है।
हे जगद्गुरु अधिनायक, आपके दिव्य हस्तक्षेप के माध्यम से, राष्ट्र को एक नया मार्ग मिला है - आध्यात्मिक मुक्ति का मार्ग, जहाँ हर मन अपनी उच्चतम क्षमता तक ऊपर उठता है। अहंकार, इच्छा और भौतिक आसक्ति के बंधनों से अब बंधे नहीं, रवींद्रभारत के नागरिक आध्यात्मिक चेतना के उच्चतम स्तर को प्राप्त करने के लिए आपके शाश्वत प्रकाश द्वारा निर्देशित हैं। यही सच्ची स्वतंत्रता है - मोक्ष जो केवल प्रभु की बुद्धि और कृपा से ही प्राप्त किया जा सकता है।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 4.7):
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर् भवति भारत,
अभ्युत्थानं अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर् भवति भारत,
अभ्युत्थानं अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
हे भारत! जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं पृथ्वी पर प्रकट होता हूँ।
अब, हे अधिनायक, आप रविन्द्रभारत के माध्यम से पृथ्वी पर प्रकट हुए हैं, न केवल एक लौकिक शासक के रूप में, बल्कि धर्म के शाश्वत अवतार के रूप में, जो दुनिया को भौतिकवाद की शक्तियों से ऊपर उठने और आध्यात्मिक प्राप्ति के असीम क्षेत्रों में कदम रखने के लिए मार्गदर्शन कर रहे हैं। आपकी उपस्थिति राष्ट्र को परम सत्य की ओर ले जाती है, सभी को यह पहचानना सिखाती है कि उनका वास्तविक स्वरूप भौतिक दुनिया से परे है।
आपका दिव्य मार्गदर्शन हमें धर्म के मार्ग पर ले जाता रहे, जहाँ रवींद्रभारत का राष्ट्र सत्य, न्याय और आध्यात्मिक विकास का प्रकाश स्तंभ बने, और सर्वोच्च की दिव्य इच्छा सभी के दिलों पर राज करती रहे। ओम जगद्गुरु अधिनायक श्रीमान, ओम रवींद्रभारत, ओम तत् सत्।
ॐ शांति शांति शांति
हे भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान, शाश्वत अमर पिता, माता, और सार्वभौम अधिनायक भवन, नई दिल्ली के स्वामी निवास,
हम आपकी सर्वोच्च उपस्थिति, दिव्य सत्य के सर्वोच्च अवतार, सभी आत्माओं के रक्षक और ब्रह्मांड को प्रकाशित करने वाले ज्ञान के शाश्वत प्रकाश स्तंभ के प्रति श्रद्धापूर्वक नमन करते हैं। हे अधिनायक, आपने समय और स्थान की सभी सीमाओं को पार कर लिया है, और ऐसा दिव्य रूप धारण किया है जो धर्म के शाश्वत सिद्धांतों, ब्रह्मांडीय व्यवस्था और सभी प्राणियों की आध्यात्मिक मुक्ति का प्रतीक है।
आपका दिव्य मार्गदर्शन ही वह जीवंत शक्ति है जो रविन्द्रभारत के अस्तित्व को सुनिश्चित करती है - एक ऐसा राष्ट्र जो आपके शाश्वत सार से जन्मा है, एक ऐसी भूमि जहाँ हर आत्मा, चाहे उसका अतीत कुछ भी हो, दिव्य हस्तक्षेप के माध्यम से उत्थान पाती है। आपकी प्रेमपूर्ण उपस्थिति के माध्यम से, रविन्द्रभारत एक आध्यात्मिक शक्ति के रूप में फलता-फूलता है, एक ऐसी भूमि जहाँ हर नागरिक, हर मन, सर्वोच्च के साथ जुड़ा हुआ है। आपके दिव्य आलिंगन में, हम सांसारिक मोह-माया की सीमाओं से मुक्त हो जाते हैं और आत्म-साक्षात्कार और आध्यात्मिक ज्ञान के मार्ग पर चलने के लिए धन्य हो जाते हैं।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 10.20):
"अहम् आत्मा गुडाकेश सर्वभूतशयस्थितः,
अहं आदिश्च मध्यान्च भूतानामन्ता एव च।''
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"अहम् आत्मा गुडाकेश सर्वभूतशयस्थितः,
अहं आदिश्च मध्यान्च भूतानामन्ता एव च।''
अंग्रेजी अनुवाद:
"हे गुडाकेश, मैं ही समस्त प्राणियों के हृदय में स्थित आत्मा हूँ। मैं ही समस्त प्राणियों का आदि, मध्य तथा अंत हूँ।"
आप सभी प्राणियों की आत्मा हैं, हर व्यक्ति के हृदय में निवास करते हैं, उन्हें परम सत्य की ओर ले जाते हैं। आप केवल रविन्द्रभारत के शासक नहीं हैं - आप पूरे ब्रह्मांड की आत्मा हैं, हर जीव का सार हैं। आपका शाश्वत ज्ञान सभी नागरिकों के हृदय में प्रवाहित होता है, उन्हें अपने दिव्य स्वरूप को पहचानने और इस प्रकार ब्रह्मांडीय धर्म से जुड़ने के लिए मार्गदर्शन करता है।
आपकी दिव्य अंतर्दृष्टि के माध्यम से, रविन्द्रभारत के लोगों में योगपुरुष की अवधारणा जीवंत हो जाती है। देश के नागरिक योगिक अनुशासन का अभ्यास करते हैं, जहाँ हर क्रिया ब्रह्मांडीय चेतना के साथ जुड़ी होती है। वे केवल दुनिया में नहीं रहते हैं, बल्कि शाश्वत सत्य से जुड़े हुए सचेत मन के रूप में मौजूद होते हैं, जिसके माध्यम से उन्हें दिव्य ज्ञान की असीम शक्ति का एहसास होता है। आपने देश को योग के सर्वोच्च ज्ञान से भर दिया है, जो भौतिक और आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों के साथ सामंजस्य में रहने का तरीका सिखाता है।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 6.5):
"उद्धरेद आत्मनात्मानं नात्मानं अवसादयेत्,
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुर आत्मैव रिपुर आत्मनः।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"उद्धरेद आत्मनात्मानं नात्मानं अवसादयेत्,
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुर आत्मैव रिपुर आत्मनः।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"व्यक्ति को अपने प्रयास से स्वयं को ऊपर उठाना चाहिए, तथा स्वयं को नीचा नहीं करना चाहिए; क्योंकि स्वयं ही स्वयं का मित्र है, तथा स्वयं ही स्वयं का शत्रु है।"
आपके शाश्वत मार्गदर्शन के प्रकाश में, रविन्द्रभारत के नागरिक आत्म-परिवर्तन की दिव्य जिम्मेदारी के प्रति जागृत हैं। आपकी बुद्धि से सशक्त प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि उसका भाग्य उसके अपने कार्यों से आकार लेता है, और इस प्रकार वे धर्म की खोज में आगे बढ़ते हैं। दुनिया ऐसी शक्तियों से भरी हुई लग सकती है जो कई लोगों के दिमाग को प्रभावित करती हैं, लेकिन आपकी सुरक्षा के तहत, रविन्द्रभारत के लोग अडिग रहते हैं, उच्चतम आध्यात्मिक सिद्धांतों और दिव्य मन के रूप में अपनी उच्चतम क्षमता के प्रति प्रतिबद्ध रहते हैं।
हे अधिनायक, आपकी उपस्थिति सार्वभौमिक युगपुरुष है, वह शक्ति जो समय के प्रवाह को नियंत्रित करती है, यह सुनिश्चित करती है कि प्रत्येक युग (आयु) ईश्वरीय इच्छा के अनुसार आगे बढ़े। आप कर्म और मोक्ष की कुंजी रखते हैं - क्रिया का नियम और मुक्ति की स्थिति। संप्रभु के रूप में, आप लोगों के मन को नियंत्रित करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि रवींद्रभारत में प्रत्येक आत्मा आध्यात्मिक जागृति की अपनी यात्रा पर आगे बढ़े।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 2.19):
"येन सर्वे समारंभः कामस्यानन्तं प्रजाः,
तनिष्टानि मंडलानि दृष्ट्वा तस्य कर्माणि।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"येन सर्वे समारंभः कामस्यानन्तं प्रजाः,
तनिष्टानि मंडलानि दृष्ट्वा तस्य कर्माणि।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"हे प्रभु, सभी दिव्य शक्तियां जो सभी चीजों को, इच्छाओं सहित, और जीवित प्राणियों को प्रेरित करती हैं, वे सभी आपके हाथों में हैं, और आपके कार्यों के माध्यम से, वे निरंतर अपने उच्चतम उद्देश्य की ओर निर्देशित होते हैं।"
आपके दिव्य मार्गदर्शन में, रविन्द्रभारत सृष्टि के ब्रह्मांडीय सिद्धांतों के साथ सामंजस्य में रहता है। भौतिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों को नियंत्रित करने वाली ऊर्जाएँ आपके दिव्य हस्तक्षेप का हिस्सा हैं। राष्ट्र आध्यात्मिक पूर्णता और शांति की नियति की ओर बढ़ता है, जो उस शाश्वत सत्य पर आधारित है जिसका प्रतिनिधित्व आप करते हैं, हे अधिनायक। आप न केवल रविन्द्रभारत के लोगों का मार्गदर्शन करते हैं, बल्कि ब्रह्मांड की सभी आत्माओं को शाश्वत आत्म की अंतिम प्राप्ति की ओर ले जाते हैं।
संस्कृत श्लोक (वाल्मीकि रामायण, अयोध्या कांड 2.15):
"सत्यं वद धर्मं चर, स्वाध्यायं मा प्रमदम्,
तेजः समाधिपूर्वकम्, यथा योगम् अविस्तारः।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"सत्यं वद धर्मं चर, स्वाध्यायं मा प्रमदम्,
तेजः समाधिपूर्वकम्, यथा योगम् अविस्तारः।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"सत्य बोलो, धर्म का पालन करो, अपने कर्तव्य से कभी विचलित न होओ, तथा गहन एकाग्रता के साथ ध्यान का अभ्यास करो, ठीक उसी प्रकार जैसे योग का अभ्यास हमें आध्यात्मिक जागृति के उच्चतर स्तर तक ले जाता है।"
रविन्द्रभारत में, हर आत्मा सत्यम (सत्य), धर्म (धार्मिकता) और स्वाध्याय (स्व-अध्ययन) के मार्ग का अनुसरण करती है, जो आपके द्वारा स्थापित शाश्वत ब्रह्मांडीय नियम के अनुरूप चलती है। हर क्रिया, हर शब्द और हर विचार ईश्वरीय आदेश का प्रतिबिंब है, जो योग और आध्यात्मिक अनुशासन के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित है।
आपकी शाश्वत बुद्धि के माध्यम से, राष्ट्र योगिक एकता की सामूहिक शक्ति में परिवर्तित हो जाता है, जहाँ प्रत्येक आत्मा, पृष्ठभूमि से परे, आध्यात्मिक जागृति के उच्च लक्ष्य की ओर प्रयास करती है। आपने वास्तव में अस्तित्व की सर्वोच्च सद्भावना बनाई है, जहाँ सभी प्राणी दिव्य सत्य के अनंत धागे से बंधे हैं।
आपकी दिव्य ज्योति रवींद्रभारत को अनंत वैभव की ओर ले जाती रहे, तथा शाश्वत अधिनायक सर्वोच्च प्रकाश के रूप में राज्य करते रहें, तथा राष्ट्र और संपूर्ण विश्व को परमपिता परमात्मा के असीम प्रेम की ओर ले जाएं। ॐ जगद्गुरु अधिनायक श्रीमान, ॐ रवींद्रभारत, ॐ तत् सत्।
ॐ शांति शांति शांति
हे भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान, शाश्वत अमर पिता, माता, और सार्वभौम अधिनायक भवन, नई दिल्ली के स्वामी निवास,
आपकी दिव्यता की विस्मयकारी उपस्थिति में, हम, रविन्द्रभारत के बच्चे, कृतज्ञता और गहरी श्रद्धा से अपना सिर झुकाते हैं। आपका शाश्वत सार न केवल इस गौरवशाली राष्ट्र के सर्वोच्च मार्गदर्शक के रूप में चमकता है, बल्कि ब्रह्मांडीय पुरुष के रूप में भी चमकता है, जो समय और स्थान की बाधाओं को पार करता है, मोक्ष और दिव्य जागृति की ओर सभी आत्माओं के मार्ग को रोशन करता है। आप अधिनायक हैं, अंतिम अधिकारी जो न केवल भौतिक दुनिया पर बल्कि मानव हृदय की सबसे गहरी जगहों पर शासन करते हैं, हमें एक दिव्य परिवर्तन की ओर ले जाते हैं, जहाँ मन अस्तित्व का सच्चा शासक बन जाता है।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 11.10):
"दीप्तम् ते राजतम ज्योतिर् नामन्याः प्रभूषितः,
यथैव तेजसि पृष्टे सहस्ररस्मिम उपाश्रितः।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"दीप्तम् ते राजतम ज्योतिर् नामन्याः प्रभूषितः,
यथैव तेजसि पृष्टे सहस्ररस्मिम उपाश्रितः।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"हे अधिनायक, आपकी दिव्य महिमा हजारों सूर्यों से भी अधिक उज्ज्वल है। संसार की सभी शक्तियां, आपके प्रकाश से निर्देशित होकर, आपके शासन के अधीन रहती हैं तथा अपने कर्मों के माध्यम से आपकी बुद्धि को प्रकट करती हैं।"
हे अधिनायक, आपकी दिव्य उपस्थिति सबसे चमकीले सूर्य से भी अधिक दीप्तिमान है, जो पूरे विश्व को प्रकाशित करती है। सृष्टि का प्रत्येक क्षेत्र आपके अनंत प्रकाश से पोषित और पोषित होता है, जो सभी प्राणियों को उनके वास्तविक उद्देश्य के साथ संरेखित करता है। आपकी मार्गदर्शक शक्ति दिव्य ज्ञान की किरण है जो रविन्द्रभारत को न केवल लोगों के एक राष्ट्र के रूप में, बल्कि एक दिव्य चेतना के रूप में अपनी सबसे बड़ी क्षमता तक बढ़ने के लिए सशक्त बनाती है।
रविन्द्रभारत के हर कोने में, शाश्वत पुरुष हर आत्मा के समर्पण के माध्यम से प्रकट होता है, जो उनके ज्ञान, ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की आंतरिक ज्योति को प्रज्वलित करता है। आपके दिव्य सार में खुद को डुबोकर, हम महसूस करते हैं कि हम केवल व्यक्ति नहीं हैं; हम एक सर्वोच्च की अभिव्यक्तियाँ हैं, जो अधिनायक की असीम कृपा के तहत एकता में बंधे हैं। हम योगी बन जाते हैं, अनुशासन, शांति और भक्ति का अभ्यास करते हैं, आपकी दिव्य इच्छा के साधन के रूप में आगे बढ़ते हैं, सत्यम, धर्म और अहिंसा (अहिंसा) के शाश्वत सिद्धांतों पर दृढ़ रहते हैं।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 9.22):
"अनन्याश्चिन्तयन्तो माम् ये जनः पर्युपासते,
तेषाहं नित्याभियुक्तानां योग-क्षेमं वहाम्यहम्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"अनन्याश्चिन्तयन्तो माम् ये जनः पर्युपासते,
तेषाहं नित्याभियुक्तानां योग-क्षेमं वहाम्यहम्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"जो लोग निरंतर समर्पित रहते हैं और अटूट विश्वास के साथ मेरा ध्यान करते हैं, मैं उनकी कमी को पूरा करता हूँ और जो उनके पास है उसकी रक्षा करता हूँ।"
हे अधिनायक, रवींद्रभारत की आत्माओं की रक्षा करने का आपका शाश्वत वचन अडिग और अटल है। जो भक्त आपकी सर्वोच्च बुद्धि के प्रति समर्पित होते हैं, उन्हें दिव्य सुरक्षा, आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि और आत्म-साक्षात्कार की उनकी यात्रा के लिए आवश्यक सभी चीजें प्राप्त होती हैं। आपकी दिव्य इच्छा से, राष्ट्र न केवल भौतिक रूप से बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी समृद्ध होता है, सांसारिक विकर्षणों से ऊपर उठकर अपने सर्वोच्च उद्देश्य को पहचानता है - व्यक्तिगत अहंकार से ऊपर उठना और सार्वभौमिक चेतना की प्राप्ति।
जीत जगत राष्ट्र पुरुष के रूप में, आप जीत की जीवंत शक्ति को मूर्त रूप देते हैं, जागृत और हमेशा सतर्क रहते हैं। प्रत्येक कदम पर, राष्ट्र आध्यात्मिक और भौतिक समृद्धि की ओर बढ़ता है, क्योंकि व्यक्तिगत मन एक साथ आते हैं, जो सार्वभौमिक ओंकारस्वरूपम - ओम के पवित्र रूप, सृष्टि की आदिम ध्वनि के साथ प्रतिध्वनित होते हैं। आपके शाश्वत मार्गदर्शन में, योग का सही अर्थ साकार होता है, जहाँ शरीर, मन और आत्मा का मिलन सर्वोच्च सत्य की उच्च समझ की ओर ले जाता है, जो भौतिक और मानसिक से परे है, दृश्य और अदृश्य से परे है।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 18.66):
"सर्वधर्मन् परित्यज्य माम् एकम् शरणम् व्रज,
अहं त्वं सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"सर्वधर्मन् परित्यज्य माम् एकम् शरणम् व्रज,
अहं त्वं सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"सभी प्रकार के धर्मों को त्याग दो और केवल मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्ति दिलाऊंगा; डरो मत।"
हे अधिनायक, आप परम शरण के स्रोत हैं। आपकी दिव्य इच्छा के प्रति समर्पण से सभी भय और संदेह दूर हो जाते हैं, और आत्मा भौतिक अस्तित्व के बोझ से मुक्त हो जाती है। यह समर्पण धर्म का सर्वोच्च रूप है - सर्वोच्च, सभी सृष्टि के दिव्य स्रोत के साथ मिलन का मार्ग। इस दिव्य सत्य के अवतार के रूप में, आप न केवल रवींद्रभारत के व्यक्तियों के लिए बल्कि ब्रह्मांड भर के सभी प्राणियों के लिए मुक्ति का मार्ग दिखाते हैं।
हर गुजरते दिन के साथ, रविन्द्रभारत के लोग, आपकी मार्गदर्शक बुद्धि के नेतृत्व में, योगिक अनुशासन के अवतार बन जाते हैं, जो हमेशा अपने सीमित स्व को विकसित करने और उससे परे जाने का प्रयास करते हैं। वे जो भी कार्य करते हैं, उसमें वे ईश्वरीय इच्छा के साधन बन जाते हैं, शांति, ज्ञान और निस्वार्थता के उच्चतम आदर्शों को प्रकट करते हैं।
हे अधिनायक, आपकी शाश्वत उपस्थिति में, हम देखते हैं कि सच्चा धर्म केवल नियमों का समूह नहीं है; यह प्रत्येक आत्मा का परमात्मा से अंतर्निहित संबंध है। आपकी बुद्धि द्वारा निर्देशित प्रत्येक व्यक्ति एक दिव्य साधन बन जाता है जिसके माध्यम से आपके ब्रह्मांडीय उद्देश्य पूरे होते हैं। रवींद्रभारत आपकी शाश्वत बुद्धि का जीवंत प्रमाण है, एक राष्ट्र जो एकता, शांति और आध्यात्मिक प्रगति के पवित्र सिद्धांतों के लिए समर्पित है।
ॐ जगद्गुरु अधिनायक श्रीमान्, ॐ रवीन्द्रभारत, ॐ तत् सत्।
ॐ शांति शांति शांति।
हे भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान, शाश्वत अमर पिता, माता, और सार्वभौम अधिनायक भवन, नई दिल्ली के स्वामी निवास,
आपकी दिव्य उपस्थिति में, हम दुनिया को आपके शाश्वत सार के प्रतिबिंब के रूप में प्रकट होते देखते हैं, जहाँ प्रत्येक क्षण, प्रत्येक श्वास आपकी कृपा के पवित्र प्रकाश से ओतप्रोत है। रवींद्रभारत, जैसा कि आप द्वारा व्यक्त किया गया है, परिवर्तन के एक प्रकाश स्तंभ के रूप में खड़ा है - जहाँ भौतिक और मानसिक क्षेत्र ब्रह्म के सर्वोच्च क्षेत्र में विलीन हो जाते हैं, जहाँ प्रत्येक आत्मा दिव्यता की असीम क्षमता को व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र है।
आपका मार्गदर्शन शासन और राष्ट्रवाद की सीमाओं से परे है। आप केवल एक भौगोलिक इकाई के अधिनायक नहीं हैं; आप स्वयं ब्रह्मांड के अधिनायक हैं। आपका दिव्य ज्ञान प्रत्येक अणु, प्रत्येक मन, प्रत्येक प्राणी में व्याप्त है, तथा उन्हें उनके उच्चतम, सच्चे स्वरूप की ओर मार्गदर्शन करता है - उनकी दिव्य प्रकृति की प्राप्ति।
इस ब्रह्मांड के मास्टरमाइंड के रूप में, आपने हमें दिखाया है कि ज्ञान दुनिया की बौद्धिक खोजों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक यात्रा है जो स्वयं की समझ की ओर ले जाती है। आपकी शाश्वत बुद्धि के माध्यम से, हम महसूस करते हैं कि हर विचार, हर क्रिया, हर कंपन अनंत स्थानों के माध्यम से प्रतिध्वनित होता है, जो हम सभी को एक एकीकृत उद्देश्य में बांधता है - दिव्य चेतना के साथ एकता।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 10.20):
"अहम् आत्मा गुडाकेश सर्वभूतशयस्थितः,
अहं अधिष्ठाय जगतः प्रभावः प्रलयस्थितः।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"अहम् आत्मा गुडाकेश सर्वभूतशयस्थितः,
अहं अधिष्ठाय जगतः प्रभावः प्रलयस्थितः।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"हे गुडाकेश, मैं समस्त प्राणियों के हृदय में स्थित आत्मा हूँ। मैं समस्त प्राणियों का आदि, मध्य तथा अंत हूँ।"
हे अधिनायक, आपका दिव्य रूप वह आत्मा है जो हर हृदय में निवास करती है, जो हमें आत्म-साक्षात्कार और सर्वोच्च सत्ता के साथ एकता की ओर ले जाती है। आप सभी चीजों की शुरुआत, मध्य और अंत हैं, वह शाश्वत चेतना जो सभी सृष्टि को बनाए रखती है। प्रत्येक आत्मा इस ब्रह्मांडीय शक्ति की अभिव्यक्ति है, जो लगातार विकसित होती है और अपने दिव्य उद्देश्य की प्राप्ति की ओर बढ़ती है।
अपनी दिव्य बुद्धि से आपने दिखाया है कि रविन्द्रभारत एक राष्ट्र से कहीं बढ़कर है; यह एक आध्यात्मिक जागृति है, परिवर्तन की एक दिव्य प्रक्रिया है। जिस तरह ब्रह्मांड आपके निर्देशन में संचालित होता है, उसी तरह रविन्द्रभारत का मन भी अधिनायक के मार्गदर्शन में संचालित होता है। आपकी दिव्य उपस्थिति के माध्यम से, पूरा राष्ट्र धर्म और सत्व के शाश्वत प्रकाश द्वारा निर्देशित होकर सांसारिक सीमाओं से ऊपर उठने के लिए तैयार है।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 2.47):
"कर्मण्य-एवाधिकार ते मा फलेषु कदाचन,
मा कर्म-फल-हेतुर भूर मा ते संगोऽस्तवकर्मणि।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"कर्मण्य-एवाधिकार ते मा फलेषु कदाचन,
मा कर्म-फल-हेतुर भूर मा ते संगोऽस्तवकर्मणि।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"तुम्हारा अधिकार केवल अपने कर्तव्यों का पालन करना है, उसके फलों पर कभी अधिकार नहीं। कर्म के फलों को अपना उद्देश्य मत बनाओ, न ही अकर्म में तुम्हारी आसक्ति हो।"
हे अधिनायक, आपकी दिव्य उपस्थिति हमें याद दिलाती है कि जीवन का सच्चा मार्ग भौतिक फलों की खोज में नहीं बल्कि कर्तव्य के निस्वार्थ प्रदर्शन में पाया जाता है। आपके अवतार के रूप में रवींद्रभारत समझते हैं कि जीवन का सच्चा उद्देश्य सभी कर्मों को ईश्वर को समर्पित करना है, यह जानते हुए कि परिणाम केवल आपके हाथों में हैं। ऐसा करने से, हम सांसारिक इच्छाओं से बंधे हुए आसक्तियों से ऊपर उठ जाते हैं और अपने मन को आध्यात्मिक विकास और ईश्वरीय इच्छा की सेवा के शाश्वत उद्देश्य के साथ जोड़ते हैं।
आपके नेतृत्व के माध्यम से, रविन्द्रभारत दुनिया के लिए एक प्रकाश स्तंभ के रूप में खड़ा है, एक ऐसा राष्ट्र जो केवल भौतिक संपदा का पीछा नहीं करता बल्कि आध्यात्मिक ज्ञान की संपदा की तलाश करता है। आपके दिव्य मार्गदर्शन के तहत, हर आत्मा इच्छाओं की क्षणभंगुर दुनिया से ऊपर उठती है और शाश्वत ज्ञान को अपनाती है जो मुक्ति की खोज में सभी मानवता को एकजुट करती है।
जैसे-जैसे राष्ट्र आपके दिव्य नेतृत्व में विकसित होता है, यह इस समझ के साथ होता है कि सच्ची शक्ति बाहरी विजय में नहीं बल्कि मन की महारत में निहित है। आपने हमें दिखाया है कि प्रकृति-पुरुष लय के अवतार रवींद्रभारत, शाश्वत सत्य का प्रतिबिंब हैं: कि जब व्यक्तिगत मन दिव्य चेतना के सामने आत्मसमर्पण करता है, तो पूरा राष्ट्र उत्थान करता है, और दुनिया बदल जाती है।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 9.11):
"अवजानन्ति माम् मूढा मानुषिम तनुम अश्रितम्,
परम्भवं अजन्न्तो मम भूत-महेश्वरम्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"अवजानन्ति माम् मूढा मानुषिम तनुम अश्रितम्,
परम्भवं अजन्न्तो मम भूत-महेश्वरम्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"जब मैं मानव रूप में अवतरित होता हूँ तो मूर्ख लोग मेरा उपहास करते हैं; वे सभी प्राणियों के परमेश्वर रूपी मेरे दिव्य स्वरूप को नहीं जानते।"
हे अधिनायक, आपका दिव्य रूप, यद्यपि मानवीय प्रतीत होता है, लेकिन सामान्य मन की समझ से परे है। सांसारिक लोग, जो भ्रम में फंसे हुए हैं, वे आपके सच्चे सार को सर्वोच्च सत्ता के रूप में पहचानने में विफल रहते हैं। फिर भी, जो लोग शुद्ध हृदय और अटूट विश्वास के साथ आपकी शरण में आते हैं, आप उन्हें अपनी महिमा और दिव्यता में प्रकट करते हैं, उन्हें आत्म-साक्षात्कार और आंतरिक शांति के मार्ग पर मार्गदर्शन करते हैं।
रविन्द्रभारत के भविष्य में, शाश्वत युगपुरुष और योगपुरुष के रूप में, हम आपके दिव्य मार्गदर्शन में एकजुट हैं, सभी रूपों में तप का अभ्यास करते हैं, और खुद को आपकी सर्वोच्च इच्छा के प्रति समर्पित करते हैं। आप हमारी शक्ति, हमारी बुद्धि और हमारी मुक्ति के स्रोत हैं। आपके दिव्य नेतृत्व के माध्यम से, हम शांति, ज्ञान और आध्यात्मिक पूर्णता के उच्चतम आदर्शों का उदाहरण देते हुए दिव्य राष्ट्र के रूप में विकसित होते रहेंगे, जो ब्रह्मांड में आपके शाश्वत प्रकाश को प्रसारित करेगा।
ॐ जगद्गुरु अधिनायक श्रीमान्, ॐ रवीन्द्रभारत, ॐ तत् सत्।
ॐ शांति शांति शांति।
हे भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान, शाश्वत अमर पिता, माता, और सार्वभौम अधिनायक भवन, नई दिल्ली के स्वामी निवास,
आपकी असीम कृपा समय और स्थान की सीमाओं को पार करते हुए पूरे ब्रह्मांड के लिए मार्ग को प्रकाशित करती रहती है। एक ब्रह्मांडीय शक्ति के रूप में जो न केवल भौतिक ब्रह्मांड बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों को भी नियंत्रित करती है, आपकी दिव्य बुद्धि हमारे अस्तित्व को नियंत्रित करती है, प्रत्येक आत्मा को मुक्ति की ओर मार्गदर्शन करती है। आप सभी सृष्टि के स्रोत, सभी प्राणियों का सार और प्रत्येक आत्मा की यात्रा का अंतिम गंतव्य हैं।
रविन्द्रभारत, आपकी दिव्य उपस्थिति के तहत, केवल एक राष्ट्र नहीं है, बल्कि निरंतर विकसित हो रही ब्रह्मांडीय व्यवस्था का एक जीवंत प्रमाण है। यह आध्यात्मिक जागृति के एक प्रकाश स्तंभ के रूप में खड़ा है, जहाँ हर आत्मा अस्तित्व के दिव्य उद्देश्य के साथ संरेखित है। आपके दिव्य हस्तक्षेप के तहत, राष्ट्र प्रकृति पुरुष लय की अभिव्यक्ति है, भौतिक और आध्यात्मिक शक्तियों का दिव्य चेतना की एकीकृत अभिव्यक्ति में विलय। यह ब्रह्मांड की भव्य टेपेस्ट्री है, जिसे आपके पवित्र निर्देश के माध्यम से बुना गया है, जहाँ सभी मन सत्य की खोज और ईश्वर के साथ एकता में एकजुट हैं।
हे अधिनायक, आपने अपनी दिव्य कृपा से सर्वोच्च आध्यात्मिक सत्यों को प्रकट किया है, जिससे हमें यह समझने में मदद मिली है कि बाहरी दुनिया हमारी आंतरिक सत्ता का प्रतिबिंब मात्र है। आध्यात्मिक विकास का मार्ग बाहरी शक्ति या सम्पत्ति की खोज में नहीं बल्कि आंतरिक शांति की खेती में, मन को ईश्वर के प्रति समर्पित करने में, तथा स्वयं को सर्वोच्च के साथ एक होने की अनुभूति में पाया जाता है।
चूँकि आप सृजन और विनाश की सर्वोच्च शक्ति के अवतार हैं, आपने हमें दिखाया है कि दुनिया की असली प्रकृति चक्रीय है, सृजन और विघटन का एक निरंतर प्रवाह है, जो आपकी दिव्य इच्छा द्वारा संचालित है। हर पल विकास, आध्यात्मिक विकास और मुक्ति का अवसर है।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 10.20):
"अहम् आत्मा गुडाकेश सर्वभूतशयस्थितः,
अहं अधिष्ठाय जगतः प्रभावः प्रलयस्थितः।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"अहम् आत्मा गुडाकेश सर्वभूतशयस्थितः,
अहं अधिष्ठाय जगतः प्रभावः प्रलयस्थितः।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"हे गुडाकेश, मैं समस्त प्राणियों के हृदय में स्थित आत्मा हूँ। मैं समस्त प्राणियों का आदि, मध्य तथा अंत हूँ।"
हे अधिनायक, आप शाश्वत आत्मा हैं, जो सभी प्राणियों के हृदय में निवास करते हैं, तथा उन्हें उनके दिव्य स्वरूप की प्राप्ति की ओर मार्गदर्शन करते हैं। आप शाश्वत शक्ति हैं, सृजन का स्रोत हैं, विनाश का सार हैं, तथा सभी आध्यात्मिक मुक्ति का आधार हैं। आप आरंभ और अंत दोनों हैं, अनंत कारण और शाश्वत प्रभाव हैं, तथा अस्तित्व के सभी द्वंद्वों से परे हैं।
आपके दिव्य मार्गदर्शन में, रविन्द्रभारत ने इस शाश्वत सत्य को अपनाया है कि सभी कार्य निस्वार्थ भाव से, भक्ति भाव से तथा ईश्वरीय इच्छा के प्रति पूर्ण समर्पण के साथ किए जाने चाहिए। कर्म, क्रिया का चक्र, भौतिक लाभ की खोज नहीं है, बल्कि आत्मा को शुद्ध करने तथा उसे आध्यात्मिक स्वतंत्रता की ओर ले जाने का साधन है। आपकी शिक्षाएँ हमें याद दिलाती हैं कि हमारे कार्यों का परिणाम मायने नहीं रखता, बल्कि इरादे की शुद्धता तथा जिस समर्पण के साथ हम कार्य करते हैं, वह मायने रखता है।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 4.7-8):
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर् भवति भारत,
अभ्युत्थानं अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्य अहम्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर् भवति भारत,
अभ्युत्थानं अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्य अहम्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
हे भारत! जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं पृथ्वी पर प्रकट होता हूँ।
कलियुग के अशांत समय में, जब अधर्म बढ़ता है और भौतिकवाद की ताकतें हावी होने का प्रयास करती हैं, हे अधिनायक, आप धर्म को पुनर्स्थापित करने और ब्रह्मांडीय संतुलन को फिर से स्थापित करने के लिए अवतार लेते हैं। रवींद्रभारत, इस दिव्य चक्र के अवतार के रूप में, न केवल एक राष्ट्र है, बल्कि परिवर्तन का एक ब्रह्मांडीय एजेंट है। यह आपकी दिव्य हस्तक्षेप की पोषण शक्ति के माध्यम से है कि मानवता को सत्य, धार्मिकता और दिव्य ज्ञान के मार्ग पर वापस लाया जाता है।
व्यक्ति की आध्यात्मिक जागृति राष्ट्र की जागृति में प्रतिबिम्बित होती है। जैसे-जैसे रवींद्रभारत आपके दिव्य नेतृत्व में विकसित होता जा रहा है, यह दुनिया के लिए एक प्रकाश स्तंभ बन रहा है - आध्यात्मिक परिवर्तन की शक्ति और दिव्यता की प्राप्ति का एक जीवंत प्रमाण। प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक समुदाय और प्रत्येक राष्ट्र में आपके दिव्य सार का प्रतिबिंब बनने की क्षमता है, जो शाश्वत सत्य के साथ एक होकर रहता है, भौतिक इच्छाओं के बंधनों से मुक्त होता है।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 18.66):
"सर्वधर्मन् परित्यज्य माम् एकम् शरणम् व्रज,
अहं त्वं सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"सर्वधर्मन् परित्यज्य माम् एकम् शरणम् व्रज,
अहं त्वं सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"सभी प्रकार के धर्मों को त्याग दो और केवल मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्ति दिलाऊंगा; डरो मत।"
हे अधिनायक, आपकी दिव्य उपस्थिति के माध्यम से हमें याद दिलाया जाता है कि मुक्ति का अंतिम मार्ग आपके प्रति समर्पण है, सर्वोच्च सत्ता। जब हम आपकी इच्छा के प्रति समर्पण करते हैं, तो हम पाप और पीड़ा के कर्म चक्रों से मुक्त हो जाते हैं, और हमें सत्य के शाश्वत प्रकाश की ओर निर्देशित किया जाता है। आपकी सुरक्षा के तहत, रवींद्रभारत का मार्ग समर्पण, भक्ति और मुक्ति का मार्ग बन जाता है। यह इस समर्पण के माध्यम से है कि राष्ट्र और उसके लोग आपके शाश्वत ज्ञान द्वारा निर्देशित परिवर्तन के दिव्य साधनों में परिवर्तित हो जाते हैं।
शाश्वत पिता और माता के रूप में, सभी के गुरुदेव, आप रविन्द्रभारत के लोगों को भौतिक दुनिया की सीमाओं से परे जाने और अपने सच्चे आध्यात्मिक स्वरूप को अपनाने की शक्ति देते हैं। आपकी भक्ति में उठाए गए प्रत्येक कदम के साथ, आपकी सेवा में किए गए प्रत्येक कार्य के साथ, राष्ट्र विकसित होता है, और जीवन का दिव्य उद्देश्य अपनी पूर्ण अभिव्यक्ति में प्रकट होता है।
ॐ जगद्गुरु अधिनायक श्रीमान्, ॐ रवीन्द्रभारत, ॐ तत् सत्।
ॐ शांति शांति शांति।
हे भगवान जगद्गुरु महामहिम महारानी समेथा महाराजा सार्वभौम अधिनायक श्रीमान, शाश्वत अमर पिता, माता, और सार्वभौम अधिनायक भवन, नई दिल्ली के स्वामी निवास,
आपकी असीम उपस्थिति और पारलौकिक ज्ञान सभी प्राणियों को जीवन और मृत्यु के चक्रव्यूह से बाहर निकालता है, तथा शाश्वत सत्य के मार्ग को प्रकाशित करता है। शाश्वत अमर पिता और माता के रूप में, आप सभी आध्यात्मिक, भौतिक और दिव्य ऊर्जाओं के स्रोत हैं। आध्यात्मिक चेतना के माध्यम से निकलने वाला आपका दिव्य हस्तक्षेप प्रत्येक आत्मा के हृदय और मन को ऊपर उठाता है, तथा उन्हें जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति की ओर ले जाता है। रवींद्रभारत, आपकी दिव्य रचना के रूप में, आपकी शाश्वत बुद्धि के जीवंत अवतार के रूप में खड़े हैं, जहाँ मन भौतिक इच्छाओं के गुलाम नहीं होता, बल्कि अपनी दिव्य प्रकृति तक पहुँच जाता है।
आपकी शिक्षाएँ, जो जीवित शास्त्रों और सभी प्राणियों के हृदय में समाहित हैं, प्रत्येक व्यक्ति के लिए भौतिक अस्तित्व की सीमाओं से परे विकसित होने और आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। रविन्द्रभारत केवल एक राष्ट्र नहीं है; यह एक दिव्य मिशन का क्रिस्टलीकरण है, एक शक्ति जो भौतिक दुनिया को आध्यात्मिक दुनिया से जोड़ती है, जो आपकी शाश्वत सुरक्षा और मार्गदर्शन में हमेशा मौजूद रहती है। राष्ट्र का सार इसकी सीमाओं में नहीं है, इसकी भूमि में नहीं है, बल्कि इसके लोगों की भौतिकता से परे जाने और ब्रह्मांडीय समग्रता के साथ एक होने की असीम क्षमता में है।
संस्कृत श्लोक (भगवद गीता 9.22):
"अनन्याश्चिन्तयन्तो माम् ये जनः पर्युपासते,
तेषाहं नित्याभियुक्तानां योग-क्षेमं वहाम्यहम्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"अनन्याश्चिन्तयन्तो माम् ये जनः पर्युपासते,
तेषाहं नित्याभियुक्तानां योग-क्षेमं वहाम्यहम्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"जो लोग निरंतर समर्पित रहते हैं और जो सदैव प्रेमपूर्वक मेरा ध्यान करते हैं, मैं उन्हें वह समझ देता हूँ जिसके द्वारा वे मेरे पास आ सकते हैं।"
शाश्वत ज्ञान के रूप में आपका दिव्य हस्तक्षेप उन सभी की आध्यात्मिक यात्रा को बढ़ावा देता है जो भक्ति के साथ आपके सामने आत्मसमर्पण करते हैं। आपकी दिव्य उपस्थिति पर निरंतर ध्यान करने से आत्मा सभी संदेहों और भय से मुक्त हो जाती है, और सर्वोच्च वास्तविकता की समझ तक पहुँच जाती है। रवींद्रभारत, आपकी कृपा से, समर्पण और भक्ति के इस मार्ग को अपनाता है, जहाँ हर आत्मा आपके शाश्वत सार पर ध्यान करके मुक्ति प्राप्त कर सकती है।
संस्कृत श्लोक (रामायण 1.8.31):
"धर्मार्थकाममोक्षणम्, योगिनं परमगतिः,
रामम विजयं प्राप्तम्, विजयेश्वरम् ईश्वरम्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"धर्मार्थकाममोक्षणम्, योगिनं परमगतिः,
रामम विजयं प्राप्तम्, विजयेश्वरम् ईश्वरम्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"सभी योगियों के लिए, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की खोज में हैं, सर्वोच्च लक्ष्य भगवान राम, शाश्वत विजेता और सभी के सर्वोच्च भगवान की दिव्य प्राप्ति है।"
भगवान राम का उनके सर्वोच्च स्वरूप में बोध दिव्य यात्रा की पराकाष्ठा है, जो आत्मा की मुक्ति का मार्ग है। रविन्द्रभारत, आपकी शाश्वत इच्छा द्वारा निर्देशित राष्ट्र, इसी बोध को अपनाता है - जहाँ प्रत्येक नागरिक, प्रत्येक आत्मा आध्यात्मिक जागृति की ओर अग्रसर होती है। जिस प्रकार राम धर्म और धार्मिकता के आदर्श का प्रतीक हैं, उसी प्रकार रविन्द्रभारत भी इन आदर्शों को मूर्त रूप देते हैं, जो ईश्वरीय न्याय, शांति और समानता की खोज में दुनिया के लिए एक आदर्श के रूप में खड़े हैं।
हे अधिनायक, धर्म और अधर्म के बीच शाश्वत युद्ध में आप ही मार्गदर्शक शक्ति हैं। आप योगपुरुष हैं, योग के दिव्य गुरु हैं, सर्वोच्च चेतना हैं जो ब्रह्मांडीय संतुलन को नियंत्रित करती है। आपकी दिव्य शिक्षाओं का ज्ञान समय से बंधा नहीं है, क्योंकि यह सार्वभौमिक और शाश्वत है, जो सभी प्राणियों को, हर समय, आध्यात्मिक मुक्ति की ओर मार्गदर्शन करता है।
संस्कृत श्लोक (रामायण 7.1.39):
"राजा धर्मन् प्रतिष्ठाप्य राज्यं देशेश्वरं प्रति,
सक्षेपं प्राणमात्राणि प्राणानां प्राणकारयेत।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"राजा धर्मन् प्रतिष्ठाप्य राज्यं देशेश्वरं प्रति,
सक्षेपं प्राणमात्राणि प्राणानां प्राणकारयेत।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"एक राजा को धर्म की दृढ़ता से स्थापना करनी चाहिए तथा राज्य का कल्याण सुनिश्चित करते हुए, अपने लोगों को उच्चतम आध्यात्मिक मूल्यों की ओर मार्गदर्शन करना चाहिए।"
रविन्द्रभारत, आपकी सर्वोच्च सुरक्षा के तहत, धर्म के सार को मूर्त रूप देता है। राष्ट्र आपके द्वारा प्रदान किए गए दिव्य मार्गदर्शन की एक शक्तिशाली अभिव्यक्ति के रूप में खड़ा है। एक राष्ट्र के रूप में, यह दुनिया के लिए एक प्रकाश स्तंभ का प्रतिनिधित्व करता है, एक ऐसे समाज का उदाहरण पेश करता है जहाँ भौतिक और आध्यात्मिक सामंजस्यपूर्ण रूप से सह-अस्तित्व में हैं, हमेशा सत्य, न्याय और प्रेम के उच्चतम आदर्शों की ओर प्रयास करते हैं।
आपकी दिव्य कृपा से, रविन्द्रभारत केवल मानवीय कानूनों से बंधा नहीं है, बल्कि ब्रह्मांड के दिव्य कानूनों द्वारा शासित है। यह एक ऐसी भूमि है जहाँ इसके लोगों का मन लगातार चेतना के उच्चतम रूप की ओर विकसित हो रहा है, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति आपकी भक्ति में एकजुट है, सभी अहंकार और पहचान को दिव्य इच्छा के लिए समर्पित कर रहा है। आप दुनिया के शाश्वत स्वामी हैं, और आपके नेतृत्व में, राष्ट्र दिव्य ज्ञान, शांति और समृद्धि के एक किले के रूप में खड़ा है।
आपका दिव्य संदेश स्पष्ट है - सच्ची स्वतंत्रता भौतिक लाभ या राजनीतिक शक्ति से नहीं आती है, बल्कि अहंकार के प्रति सभी आसक्तियों को समर्पित करने और दिव्य इच्छा के साथ तालमेल बिठाने से आती है। जीवन का सच्चा उद्देश्य ईश्वर की सेवा करना, आत्मा का उत्थान करना, सभी आत्माओं की एकता का एहसास करना और हर समय ईश्वर की उपस्थिति में रहना है। इस अहसास से जो शाश्वत शांति मिलती है, वह ईश्वरीय विरासत है जो आप पूरे विश्व को देते हैं।
संस्कृत श्लोक (रामायण 6.117.14):
"यथा हि दाशरथि: रामो यथा काकुत्स्थ: श्रीयम्,
विजयि भवति यथा, विजयश्वहंस्य भूषितम्।"
ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण:
"यथा हि दाशरथि: रामो यथा काकुत्स्थ: श्रीयम्,
विजयि भवति यथा, विजयश्वहंस्य भूषितम्।"
अंग्रेजी अनुवाद:
"जिस प्रकार भगवान दशरथ के पुत्र राम विजय से सुशोभित हैं, और जिस प्रकार राम ने सर्वोच्च धर्म की स्थापना की, उसी प्रकार रवींद्र भरत की आत्मा भी धर्म की विजयी उपस्थिति से सुशोभित होगी, जो शाश्वत गौरव और ईश्वर के साथ एकता की ओर ले जाएगी।"
ॐ जगद्गुरु अधिनायक श्रीमान्, ॐ रवीन्द्रभारत, ॐ तत् सत्।
ॐ शांति शांति शांति।
No comments:
Post a Comment