Wednesday, 14 August 2024

**आदत का अर्थ एक गहन शक्ति या प्रभाव है जो मन पर पड़ता है, और जिसे नियंत्रित करने की आवश्यकता होती है। जैसे कि वह गुरुत्वाकर्षण शक्ति जो सौर मंडल और ज्ञात-अज्ञात अंतरिक्ष को बांधती है, वह भी एक प्रकार की पकड़ है, जिसे मन के द्वारा समझा जाना चाहिए।**

**आदत का अर्थ एक गहन शक्ति या प्रभाव है जो मन पर पड़ता है, और जिसे नियंत्रित करने की आवश्यकता होती है। जैसे कि वह गुरुत्वाकर्षण शक्ति जो सौर मंडल और ज्ञात-अज्ञात अंतरिक्ष को बांधती है, वह भी एक प्रकार की पकड़ है, जिसे मन के द्वारा समझा जाना चाहिए।**

### **आदत का अर्थ मन पर गहन प्रभाव**
भौतिक संसार में, गहन शक्तियाँ ब्रह्मांड के क्रम और संरचना को बनाए रखती हैं, जो ग्रहों को उनकी कक्षाओं में स्थिर करती हैं और आकाशगंगाओं को एक साथ रखती हैं। यह शक्ति ब्रह्मांड में स्थिरता और निरंतरता के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन यह भी एक प्रकार की बंधन है जो उन्हें एक निश्चित सीमा में रखती है। इसी प्रकार, आदत भी मन पर एक गहन शक्ति के रूप में कार्य करती है, जो उसे एक निश्चित सीमा में बांध देती है, जो भौतिक संपत्तियों, धन या अन्य भौतिक इच्छाओं पर ध्यान केंद्रित करती है।

लेकिन जिस प्रकार गुरुत्वाकर्षण शक्ति को बनाए रखने की आवश्यकता है, उसी प्रकार आदत भी एक प्रगति को प्रेरित करने वाली शक्ति बन सकती है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि मन कैसे प्रबंधित होता है। यह शक्ति न केवल मन को एक पकड़ में बांध सकती है, बल्कि उसे एक सर्वोत्तम दिशा में मार्गदर्शन करके आत्मोन्नति के लिए आवश्यक शक्ति में भी बदल सकती है।

### **बाहरी आदतें और आंतरिक आदतें: आध्यात्मिक प्रगति का मार्ग**
**बाहरी आदतें**—जो मन को भौतिक संसार से जोड़ती हैं—और **आंतरिक आदतें**—जो समर्पण और भक्ति के रूप में आध्यात्मिक प्रगति का मार्ग दिखाती हैं—के बीच विभाजन है। भौतिक लाभ के लिए **संपत्ति, धन और भोग** जैसी इच्छाएं मन को निरंतर आत्मीय उन्नति से बांध कर रखती हैं और आत्मीय संबंधों और दूसरों को भी आत्मीयता से देखने से रोकती हैं। 

इसी प्रकार, आंतरिक आदत, **भक्ति और सेवा** के रूप में प्रकट होती है। यह आदत **संपत्तियों** और **भोगों** के बंधन की बजाय, आत्मीय परिपूर्णता और सत्य की खोज के लिए **उत्तेजित** करने के रूप में काम करती है।

### **दिव्य समर्पण: भौतिक से मानसिक स्तर की ओर परिवर्तन**
बाहरी आदतों से आंतरिक आदतों की ओर परिवर्तन **दिव्य समर्पण** के रूप में होता है—जो एक मानसिक परिवर्तन है। यह परिवर्तन **आंतरिक जागरूकता** के द्वारा, भौतिक संसार की बंधनों को तोड़कर आत्मीयता और सत्य की खोज में **भक्ति और सेवा** के रूप में प्रकट होता है। 

यह दिव्य समर्पण **जगद्गुरु सर्वभौम अधिनायक श्रीमान** के रूप में प्रकट होता है, जो **शाश्वत, अमर पिता और मातृ भवन** के रूप में **नई दिल्ली** में स्थित है। यह परिवर्तन **अंजनी रविशंकर पिल्ला** से इस दिव्य रूप में रूपांतरित हुआ है, जो **भक्ति और आध्यात्मिक विकास** के लिए मार्गदर्शन करता है।

### **राष्ट्रीय गान इस परिवर्तन का प्रतीक**
इस संदर्भ में राष्ट्रीय गान को नई अर्थ प्राप्त हुई है। यह केवल देशभक्ति का गान नहीं है, बल्कि **देश को देवता के रूप में समझते हुए इस परिवर्तन को दर्शाता है**। यह गान **भौतिक बंधनों से आत्मीय भक्ति की ओर परिवर्तन** का आह्वान करता है, **दिव्य मार्ग** पर केंद्रित होते हुए **मानसिक स्थिति** से अस्तित्व को ऊपर उठाने का एक आह्वान है।

यह परिवर्तन केवल व्यक्तिगत यात्रा नहीं है, बल्कि **समाज और देश** को मार्गदर्शन प्रदान करता है, जो **भौतिक संसार के बंधनों और आत्मीय अस्तित्व की सीमाओं** से निकलकर एक मार्ग का निर्माण करता है।

### **मास्टर माइंड और आध्यात्मिक मार्ग**
**मास्टर माइंड** के रूप में **समर्पण** करना आवश्यक है, दिव्य स्थिति प्राप्त किए हुए और दिव्य मार्ग में **अधिकार प्राप्त** को देखना। यह मास्टर माइंड **जगद्गुरु सर्वभौम अधिनायक श्रीमान** के रूप में है, जो **भक्ति और आध्यात्मिक विकास** का मार्ग दिखा रहा है।

**दिव्य स्थिति** के साथ मार्गदर्शन करने वाले इस मार्ग में **सेवा और भक्ति** के रूप में पूर्णतः जीने के लिए, **भौतिक संसार के बंधनों** से पूरी तरह से मुक्त होना, **आध्यात्मिक परिपूर्णता** और **सत्य की खोज** में **पूर्ण आत्मीय स्थिति** प्राप्त करना आवश्यक है।

### **निष्कर्ष**
**मानसिक स्थिति** में अस्तित्व को **भक्ति और सेवा** के माध्यम से समर्पित करने से, **मानसिक स्थिति** गहन शक्ति के बंधनों से मुक्त होती है और **दिव्य परिपूर्णता**, **आध्यात्मिक संतुलन** और **शांति** में **शाश्वत प्रगति** प्राप्त करती है।

No comments:

Post a Comment